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भारत: दृष्टिबाधिता से निपटने और नेत्र देखभाल सेवाओं पर केन्द्रित नई पहल

भारत: दृष्टिबाधिता से निपटने और नेत्र देखभाल सेवाओं पर केन्द्रित नई पहल

पाँच साल पहले की बात है जब प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक मोहन रोंगपेह को ब्लैकबोर्ड पढ़ने में कठिनाई होने लगी थी. पिछले एक दशक से उन्हें अपने चारों ओर दुनिया धुँधली दिखाई दे रही थी, लेकिन उन्होंने इसे उम्र बढ़ने का स्वाभाविक हिस्सा मानकर स्वीकार कर लिया. लेकिन जब उनकी कमज़ोर होती दृष्टि उनके पढ़ाने की क्षमता को प्रभावित करने लगी, तो उन्हें अपना रोज़गार खोने का डर सताने लगा और वो तनाव में आ गए.

इसके बावजूद, मोहन रोंगपेह ने कोई मदद नहीं ली, क्योंकि वो अपनी पत्नी, सुंदुकी तारांग को चिन्तित नहीं करना चाहते थे. लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि कपड़ों पर ख़ूबसूरत पारम्परिक पैटर्न बुनने का काम करने वाली उनकी पत्नी भी, अपनी कमज़ोर होती दृष्टि को लेकर परेशान हैं और उन्हें बताने में हिचक रही थी.

यह समस्या केवल उन्हीं तक सीमित नहीं है. सही ना किया गया अपवर्तक दोष (Uncorrected Refractive Errors) सभी आयु वर्गों में दृष्टि बाधित करने वाले प्रमुख कारणों में से एक है. आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस नेत्र समस्या से पीड़ित है और बाल व वयस्क आबादी में दृष्टि धुंधली हो जाने की एक मुख्य वजह है.

इस अवस्था में आँखें किसी तस्वीर पर स्पष्टता से ध्यान नहीं केन्द्रित कर पाती हैं और दृष्टि धुंधली होती जाती है.

भारत में, आधी से अधिक आबादी किसी न किसी प्रकार की अपवर्तक दोष से सम्बन्धित दृष्टिबाधिता का सामना कर रही है. हालाँकि इसका इलाज बहुत आसान है – इसके लिए सही नम्बर का एक चश्मा ही पर्याप्त होता है.

फिर भी, वैश्विक स्तर पर दूर की नज़र के लिए अपवर्तक दोष (मायोपिया) से पीड़ित केवल 36% लोगों को उपयुक्त चश्मा मिल पाता है, जबकि 80 करोड़ से अधिक लोग, निकट दृष्टि बाधा से पीड़ित हैं, जिसे आसानी से पढ़ने वाले चश्मे से ठीक किया जा सकता है. 

इस प्रकार के किफ़ायती चश्मे तक पहुँच की कमी से ना केवल जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है, बल्कि कामकाज के दौरान दृष्टिबाधिता से उत्पादकता प्रभावित होती है और हर साल अनुमानित 411 अरब डॉलर की हानि होती है.

जैमिना रोंगचोंग अपनी आँखों की जाँच करवा रही हैं.

© WHO India/Sanchita Sharma

अनूठी पहल

इस कमी को पूरा करने तथा गुणवत्तापूर्ण, किफ़ायती एवं जन-केन्द्रित अपवर्तक दोष सेवाएँ प्रदान करने के लिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHOSPECS 2030 नामक एक कार्यक्रम शुरू किया है. इसका वैश्विक लक्ष्य है – 2030 तक अपवर्तक दोष को दूर करने के लिए कवरेज में 40 फ़ीसदी तक की बढ़ोत्तरी करना.

भारत में WHO SPECS 2030 पहल की शुरूआत असम के गुवाहाटी शहर में की गई. इसमें शिक्षा, सामाजिक न्याय, स्वास्थ्य अनुसंधान और स्वास्थ्य सेवा (सार्वजनिक, निजी और गैर सरकारी संगठनों) के प्रमुख हितधारकों के साथ-साथ, असम सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और WHO ने भाग लिया.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), असम सरकार को SPECS 2030 के चरणबद्ध कार्यान्वयन में सहयोग प्रदान कर रहा है. इसकी शुरुआत, विविध स्वास्थ्य सेवा ढाँचों में इसे लागू करने की व्यवहार्यता एवं प्रभावशीलता प्रदर्शित करने से की जा रही है. 

इसका एक मॉडल, गुवाहाटी में स्थित श्री सँकरदेव नेत्रालय है, जिसकी समुदाय-केन्द्रित पहल के तहत, ग्रामीण व दूरदराज़ के क्षेत्रों में घर-घर जाकर आँखों की जाँच की जाती है. जाँच के बाद अपवर्तक दोष सुधारने के लिए निशुल्क चश्मे प्रदान किए जाते हैं, और उपचार/सर्जरी के लिए अन्य विशेषज्ञों से इलाज के लिए भेजा जाता है. 

इस पहल के तहत मोहन रोंगपेह और सुंदुकी तारांग की उनके घर पर ही, मान्यता प्राप्त सामाजिक नेत्र देखभाल कार्यकर्ताओं द्वारा जाँच की गई और अपवर्तक दोष सुधारने के लिए निशुल्क चश्मे दिए गए.

इससे लाभ उठाने वाली एक अन्य व्यक्ति, मोनी राम इंगती सोनापुर में एक टोकरी बुनने का काम करते हैं. उन्होंने चश्मे मिलने पर  कहा, “मैं बिना चश्मे के भी काम कर रहा था, लेकिन अब बेहतर तरीक़े से काम कर पा रहा हूँ. मेरे भाई ने भी मेरा चश्मे आज़माया और उन्हें भी बेहतर दिखाई दिया. अब वह भी अपना चश्मा लेना चाहते हैं.”

नया चश्मा पाने के बाद आराम से टोकरी बुनते, मोनी राम इंगती.

© WHO India/Sanchita Sharma

जागरूकता की कमी के कारण कम ही लोग अपनी दृष्टि की देखभाल की अहमियत समझते हैं. इसके साथ ही, गैर-संचारी रोग सेवाओं में नेत्र देखभाल सेवाओं को शामिल नहीं किया गया है. मानव संसाधनों की कमी, ऊँची लागत, तथा ख़राब डेटा प्रणाली भी प्रमुख चुनौतियाँ हैं.

भारत में WHO के प्रतिनिधि, डॉक्टर रोड्रिको एच ऑफ़्रिन ने कहा, “यह पहल व्यक्तियों और समुदायों को उनकी पूरी क्षमता तक पहुँचाने में उन्हें सशक्त बनाएगा.” 

“सरकारी एजेंसियों, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, गैर-सरकारी संगठनों और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग, SPECS कार्यान्वयन के लिए एक मज़बूत और टिकाऊ मॉडल बन सकता है, जिसे भारत व अन्य स्थानों पर दोहराया जा सकता है.”

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