पर्यावरण

भारत: तटीय राज्यों में मैन्ग्रोव बहाली की बागडोर सम्भालती महिलाएँ

महाराष्ट्र के पालघर ज़िले के नवघर गाँव में केकड़ा पालन समूह ‘हेल्दी हार्वेस्ट’ की सदस्य वंदना पाटिल बताती हैं कि पहले वो केकड़ा और मछली पकड़ने पर आश्रित थी, मगर उसकी मात्रा का अनुमान लगाना कठिन था. इसलिए, हमें आजीविका के अन्य स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता था.”

स्थानीय समुदायों का कहना है कि केकड़ा और मछली की घटती मात्रा का एक प्रमुख कारण, अवैध तरीक़े से मैन्ग्रोव की कटाई है, जो तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करके, उनके जीवन को ख़तरे में डालता है.

मैन्ग्रोव से घिरा, केकड़ा पालन खेत.

भारत की तटरेखा, विशेषकर पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र में, एक वैविध्यपूर्ण मैन्ग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र से परिपूर्ण है. ये मैन्ग्रोव, 720 वर्ग किलोमीटर के तटरेखा को ढंकते हैं, मात्र पेड़ नहीं हैं — वे तट की रक्षा करते हैं, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाते हैं और जैवविविधता को समर्थन देते हैं. 

महाराष्ट्र के सात तटीय ज़िलों में 2.86 करोड़ लोग रहते हैं. यहाँ मैन्ग्रोव बाढ़ को रोकते हैं, कार्बन को अवशोषित करते हैं, नर्सरी व मछलियों की प्रजनन भूमि के रूप में कार्य करते हैं, और समुदायों के लिए रोज़गार पैदा करते हैं.

हालाँकि, मैन्ग्रोव की अवैध कटाई और हानि के विनाशकारी परिणाम हुए हैं. बाढ़, लवणीय अतिक्रमण और मिट्टी का कटाव, तटीय समुदायों की ज़िन्दगी और आजीविका को बाधित कर रहे हैं. 

महिलाएँ, जो आमतौर पर फ़सल और मछली की आजीविका का प्रबंधन करती हैं जबकि पुरुष बेहतर अवसरों के लिए शहरी क्षेत्रों में प्रवास करते हैं, इन परिवर्तनों का सबसे बड़ा बोझ उठाती हैं.

मैन्टग्रोव तटों की रक्षा करते हैं, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाते हैं और जैव विविधता को समर्थन देते हैं.

यूएनडीपी की परियोजना

इन चुनौतियों से निपटने के लिए, भारत सरकार ने ‘ग्रीन क्लाइमेट फंड’ और यूएनडीपी के साथ मिलकर एक परियोजना शुरू की है जो भारत के तटीय समुदायों की जलवायु प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देने पर केंद्रित है. यह पहल, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और उड़ीसा राज्यों में आरम्भ की गई है. 

इस पहल में, मैन्ग्रोव समेत समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों के संरक्षण व पुनर्बहाली, और जलवायु-सम्वेदनशील आजीविकाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है. 

इसकी सफलता के लिए एक समुदाय-आधारित दृष्टिकोण अपनाया जाना प्रमुख है, जिसके तहत, गाँव के सदस्यों, ग्राम पंचायत और महिलाओं की भागेदारी से,  मैन्ग्रोव सह-प्रबंधन समिति का गठन किया गया है.

नवघर में, मैन्ग्रोव के महत्व के बावजूद, कई परिवारों को उनकी आजीविका से जुड़े इसके सम्बन्ध के बारे में जानकारी नहीं थी. इसलिए परियोजना में 2021 में एक मैन्ग्रोव सह-प्रबंधन समिति का गठन किया, जिसने महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को आजीविका आधारित गतिविधियों और मैन्ग्रोव बहाली पर प्रशिक्षण दिया. 

इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, केकड़ा पालन पर केन्द्रित आजीविका समूहों का निर्माण हुआ और मैन्ग्रोव की रक्षा के लिए सुरक्षा उपायों को लागू किया गया.

2023 तक, दो समूह, ‘हेल्दी हार्वेस्ट’ और ‘वाइल्ड क्रैब एक्वा फार्म’, स्थापित किए गए. ये समूह अब 2 एकड़ तटीय इलाक़े में कीचड़ के केकड़े का पालन करते हैं और अवैध कटाई से केकड़ा फार्म की रक्षा करते हैं.

खेत से पकड़ा गया केकड़ा.

सफलता की कहानी

आज, नवघर में मैन्ग्रोव, मज़बूती के साथ खड़े हैं, जो पर्यावरणीय क्षति के विरुद्ध एक रक्षा कवच के रूप में कार्य करते हैं. 

वंदना बताती हैं, “परियोजना ने हमारी बहुत मदद की. पहले, महिलाएँ यह [मछली उत्पादन] व्यवसाय केवल मौसम के आधार पर करती थीं, और बाकी महीनों में हमें रोज़गार नहीं मिलता था.” 

“अब जब हमें पूरे साल रोज़गार मिल रहा है, तो यह लगभग ₹85,000 की अतिरिक्त आय हमारे बच्चों को अच्छी शिक्षा देने में मदद करती है. इसके अलावा, पहले हमें केकड़ा [पालन] के लिए दूर-दूर तक यात्रा करनी पड़ती थी, अब हम इसे स्थानीय रूप से कर सकते हैं.”

नवघर गाँव की कहानी, परिवर्तन की कहानी है, जो यहाँ की महिलाओं की अडिग भावना द्वारा प्रेरित है. 

अपने परिवार के साथ वंदना पाटिल.

मैन्ग्रोव की रक्षा के प्रति उनके समर्पण के माध्यम से, उन्होंने न केवल अपनी आजीविका को सुरक्षित किया है बल्कि अपने समुदाय के लिए एक स्थाई भविष्य भी सुनिश्चित किया है. 

सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए छह वर्षों से भी कम समय बचा है. इस स्थिति में, ये प्रयास न केवल लक्ष्य 13 (जलवायु कार्रवाई) और लक्ष्य 5 (लैंगिक समानता) में प्रगति को तेजी से बढ़ाते हैं, बल्कि सभी सतत विकास लक्ष्यों में भी योगदान देते हैं.

यह लेख पहले यहाँ प्रकाशित हुआ.

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