इससे भारत, नेपाल व म्याँमार सहित उन 19 देशों का सूची में शामिल हो गया है जिन्होंने इस रोग से निजात पाने में कामयाबी हासिल की है.
यह सफ़र 1963 में भारत सरकार की परियोजना के साथ शुरू हुआ था जिसमें WHO और UNICEF अहम भागीदार रहे हैं.
वैश्विक स्तर पर अन्धेपन का एक प्रमुख कारण ट्रैकोमा, भारत में दशकों से एक विकट चुनौती बना हुआ था.
यह एक ऐसा नेत्र रोग है जो क्लैमाइडिया ट्रैकोमैटिस जीवाणु के संक्रमण से होता है. संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में दूषित उंगलियों, मक्खियों या संक्रमित व्यक्ति की आँख या नाक के स्राव से प्रभावित सतहों के ज़रिए फैलता है.
इसके फैलने के कुछ पर्यावरणीय कारण भी होते हैं, जिनमें स्वच्छता की कमी, घरों में ज़्यादा लोगों की मौजूदगी व पानी एवं साफ़-सफ़ाई तक अपर्याप्त पहुँच शामिल है.
बचपन में बार-बार संक्रमण होने से ऊपरी पलकों के अन्दरूनी हिस्से पर घाव हो जाते हैं, जिससे पलकों का किनारा अन्दर की ओर मुड़कर नेत्रगोलक (eyeball) को छूने लगता है.
यह एक पीड़ादायक स्थिति होती है, जिसे ट्रैकोमैटस ट्राइकियासिस के रूप में जाना जाता है. इलाज न होने पर इससे आँखों की रौशनी में कमी और अन्धापन भी हो सकता है.
अब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पुष्टि की है कि भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में ट्रेकोमा बिल्कुल ख़त्म हो चुका है.
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा, “भारत द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में ट्रेकोमा का उन्मूलन, इस भयानक बीमारी से लाखों लोगों को होने वाली पीड़ा को कम करने की देश की प्रतिबद्धता का प्रमाण है.”
“इस उपलब्धि में डब्ल्यूएचओ ने भारत के साथ मिलकर काम किया है, और हम सरकार, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं एवं भागीदारों को बधाई देते हैं जिन्होंने इसे सम्भव बनाने में अहम योगदान किया है.”
वहीं डब्ल्यूएचओ में दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र की क्षेत्रीय निदेशक साइमा वाजेद ने बताया कि भारत की सफलता, मज़बूत सरकारी नेतृत्व और नेत्र रोग विशेषज्ञों एवं स्वास्थ्य कर्मियों की प्रतिबद्धता का ही परिणाम है.
अहम उपलब्धि
इस उपलब्धि के साथ ही, भारत डब्ल्यूएचओ दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में, नेपाल व म्याँमार समेत और विश्व स्तर पर 19 अन्य देशों की उस सूची में शामिल हो गया है, जो इस रोग के पूर्ण उन्मूलन में सफलता प्राप्त कर चुके हैं.
वैसे तो ट्रेकोमा की रोकथाम सम्भव है, मगर ट्रेकोमा से होने वाले अन्धेपन को दूर करना बेहद मुश्किल है. ट्रेकोमा 39 देशों में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है और लगभग 19 लाख लोगों में अन्धेपन के लिए ज़िम्मेदार है.
प्रभावी निवेश
इस सफ़र की शुरूआत 1963 में तब हुई जब जब भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने, WHO और यूनीसेफ़ की मदद से एक ट्रेकोमा नियंत्रण परियोजना शुरू की.
इसके तहत ट्रेकोमा को ख़त्म करने के लिए एक व्यापक कार्यक्रम लागू किया गया, जो WHO द्वारा प्रस्तावित SAFE रणनीति पर आधारित था.
यानि Surgery, Antibiotics, Facial cleanliness, and Environmental improvement.
इसके तहत, ट्रेकोमा को ख़त्म करने के लिए समुदाय-आधारित हस्तक्षेपों में, संचरण घटाने के लिए व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देने वाली स्वास्थ्य शिक्षा के साथ-साथ सर्जिकल उपचार, सामयिक एंटीबायोटिक उपचार तथा पानी, स्वच्छता एवं साफ़-सफ़ाई (WASH) से जुड़ी पहलें शामिल की गईं.
इन कार्यक्रमों का विस्तार करके ग्रामीण क्षेत्रों को भी इसमें शामिल किया गया.
1976 में राष्ट्रीय नेत्रहीनता एवं दृष्टि हानि नियंत्रण कार्यक्रम (NPCBVI) शुरू होने के बाद, ट्रेकोमा नियंत्रण कार्यक्रम गतिविधियों को इसके साथ एकीकृत किया गया.
2005 में, भारत में नेत्रहीनता के 4% मामलों की वजह ट्रैकोमा थी.
एक क्षेत्रीय समीक्षा समूह ने भारत की इस उपलब्धि का आलेखन तैयार करके व गहन समीक्षा करके, विश्व स्वास्थ्य संगठन को सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के तौर पर ट्रेकोमा के राष्ट्रीय स्तर पर उन्मूलन को मान्यता देने का प्रस्ताव पेश किया.
भारत में WHO के प्रतिनिधि डॉक्टर रॉड्रिको एच ऑफ़्रिन ने कहा, “यह मील का पत्थर मज़बूत नेतृत्व और ट्रेकोमा से निपटने में राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर कई वर्षों के प्रयासों का परिणाम है.”
“डब्ल्यूएचओ की SAFE रणनीति के कार्यान्वयन, जिसमें स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा सर्जरी एवं दवाएँ देना का संचालन शामिल है तथा स्वच्छ भारत मिशन व जल जीवन मिशन जैसी भारत सरकार की पहलों से यह उपलब्धि हासिल हो सकी. भारत की सफलता, ट्रेकोमा को ख़त्म करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने का प्रयास कर रहे अन्य देशों के लिए एक प्रेरणा है.”