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भारत: आसमान छूने के सपने में, ‘उत्थान’ से मदद

भारत: आसमान छूने के सपने में, ‘उत्थान’ से मदद

रोज़ाना, जहाँ आरा बेगम की नीन्द, हवाई जहाज़ों की उड़ानों के शोर से खुलती है. उनका घर दिल्ली अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के नज़दीक है. हवाई जहाज़ों को इतनी पास से उड़ते हुए देखना, उन्हें हमेशा से मोहित करता रहा है.

“मैं हमेशा से देखना चाहती थी कि हवाई जहाज़ अन्दर से कैसा दिखता है, और उसमें बैठकर आकाश में उड़ना कितना अदभुत अहसास होता होगा.”

उनके घर का आंगन, प्लास्टिक और कार्डबोर्ड कचरे की बोरियों से भरा हुआ है और वो सूखे व गीले कचरे को अलग-अलग करके, आगे बेचकर धन कमाते हैं.

जहाँ आरा अपने पति अब्दुल के साथ काम करती हैं, जो आस-पड़ोस के अन्य सफ़ाई साथियों द्वारा एकत्र किए गए सामान को ख़रीदकर आगे भेजने में मदद करते हैं.

जहाँ आरा को अहसास था कि हवाई जहाज़ में घूमने के अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्हें सरकार द्वारा जारी एक वैध पहचान पत्र की आवश्यकता होगी.

जहाँ आरा कहती हैं कि उन्हें बहुत पहले ही यह समझ में आ गया था कि हर किसी को, चाहे वह सफ़ाई साथी हो या कोई और, सभी के पास उचित पहचान पत्र व अन्य प्रमाण पत्र होने चाहिएँ, ताकि वे सरकारी सामाजिक योजनाओं का लाभ उठाकर सुरक्षित रह सकें.

जहाँआरा ने अपने पति व बच्चों समेत सभी के पहचान पत्र व स्वास्थ्य कार्ड के लिए आवेदन भरा.

उनके पति अब्दुल ने थोड़ी धनराशि की बचत करके आधार कार्ड बनवाने की कोशिश की. इसके लिए वह दर-दर भटकते रहे लेकिन सफलता नहीं मिली. आधार कार्ड के ज़रिए उन्हें अपने बच्चों को स्कूल में दाख़िला दिलवाने में मदद मिलती. फिर कोविड-19 महामारी आई और उनकी योजनाएँ धरी की धरी रह गईं.

“महामारी के दौरान, हमारे पास कोई कामकाज नहीं था, और हमारे पास जो थोड़ी-बहुत बचत थी, हम उसी से गुज़ारा चला रहे थे.” 

इस दौरान उन्होंने स्थानीय ग़ैर सरकारी संगठनों से मदद के तौर पर राशन व अन्य सामान भी प्राप्त किया. 

फिर एक स्थानीय संस्था से उन्हें उत्थान के बारे में जानकारी मिली. उत्थान परियोजना का उद्देश्य, सफ़ाई साथियों को पहचान प्रमाण पत्र के ज़रिए, जीवन में सुधार के लिए आवश्यक दस्तावेज़ प्रदान करना है, जिससे उनकी राजनैतिक एवं आर्थिक मज़बूती और सामाजिक संरक्षण सम्भव हो.

जहाँ आरा ने अपने पति व बच्चों के साथ, पहचान पत्र के लिए आवेदन किया. साथ ही, ईश्रम व स्वास्थ्य कार्ड के लिए भी नामांकन भरा.

उत्थान परियोजना के तहत, उन्होंने एक साझा जनधन बैंक खाता भी खोला और अपने दोनों बच्चों के बाल आधार कार्ड उससे जोड़े.

“मैं अपने बच्चों के पहचान पत्र मिलने पर बहुत ख़ुश हुई. इससे अब हमारे बच्चों के लिए दिल्ली के एक स्कूल में शिक्षा पाना अब सम्भव लग रहा था. साथ ही, अब हम बीमा से सुरक्षित महसूस करते हैं और दुर्घटना की स्थिति में स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच भी हासिल है, क्योंकि हमारे कार्यक्षेत्र में यह बहुत आम है.”

लेकिन उनको असली आश्चर्य तब हुआ, जब अब्दुल ने उनके लिए हवाई यात्रा का टिकट ख़रीदा. अब्दुल बताते हैं, “पहचान पत्र होने के कारण अब मैं पूरे परिवार के लिए टिकट बुक करवा सकता था.” 

सभी ने दिल्ली से असम राज्य में अपने गृहनगर तक की हवाई यात्रा की, और महामारी के बाद लगभग दो साल बाद अपने परिवार व दोस्तों से मुलाक़ात की.

अब जब भी बच्चे हवाई जहाज़ घर के ऊपर से उड़ते देखते हैं, तो प्रसन्नता से उसकी तरफ़ हाथ हिलाते हुए हवाई यात्रा का अपना अनुभव साझा करते हैं.

जहाँआरा कहती हैं कि अब वो अपने बच्चों को स्कूल भेजने का सपना पूरा कर पाएँगी.

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