उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि दमन व हिंसा के दौर के बाद देश में मानवाधिकारों को साकार करने के लिए साहस व शक्ति की आवश्यकता होगी, और पुरानी दरारों को भरने के लिए यह ज़रूरी है कि नागरिक समाज को फिर से जगह दी जाए.
“बांग्लादेश के इतिहास में यह अनूठा, अभूतपूर्व क्षण, सड़कों पर उतरने वाले युवा महिलाओं व पुरुषों का नतीजा है, जिन्होंने निजी जोखिम झेलने के बावजूद, यह दर्शाया कि अब उन्हें और नज़रअन्दाज़ या हाशिए पर नहीं धकेला जा सकता है.”
मानवाधिकार मामलों के लिए शीर्ष यूएन अधिकारी ने ध्यान दिलाया कि जिन आकाँक्षाओं के साथ, विविध पृष्ठभूमि से आए प्रदर्शनकारियों की भागीदारी से यह आन्दोलन हुआ, मौजूदा बदलाव उसी का नतीजा है.
इसके मद्देनज़र, एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाया जाना अहम है ताकि लैंगिक पहचान, नस्ल, राजनैतिक विचारधारा या धर्म की परवाह किए बग़ैर हर आवाज़ को सुना जाए.
वोल्कर टर्क ने कहा कि सामाजिक न्याय के आन्दोलनों के केन्द्र में महिलाएँ होती हैं और जुलाई में हुए प्रदर्शनों में भी यही देखा गया. अब उन्हें नेतृत्व व निर्णय-निर्धारण पदों पर रखना होगा. इसके समानान्तर, देश में व्यवस्था सुधार लाने की प्रक्रिया में जातीय, धार्मिक अल्पसंख्यकों और आदिवासी समुदायों की हिस्सेदारी भी अहम है.
मानवाधिकार मामलों के लिए यूएन के शीर्ष अधिकारी 29-30 अक्टूबर के लिए, बांग्लादेश के दौरे थे, जहाँ उनकी वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों समेत अन्य हितधारकों के साथ बातचीत की.
बदलाव का दौर
बांग्लादेश में सरकारी रोज़गारों में आरक्षण कोटा निर्धारित किए जाने के विरोध में, इस वर्ष जुलाई में विश्वविद्यालय परिसरों में विरोध प्रदर्शन भड़क उठे थे. इस आन्दोलन के दौरान सरकारी बलों पर दमनात्मक बल प्रयोग के आरोप लगे, जिनमें सैकड़ों लोग मारे गए व हज़ारों अन्य घायल हुए थे.
इन हालात में, तत्कालीन सरकार की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को इस्तीफ़ा देना पड़ा और उन्हें देश छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी थी. इसके बाद, एक अन्तरिम सरकार का गठन हुआ है, जिसका मुख्य सलाहकार, देश के नोबेल पुरस्कार अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस को बनाया गया.
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने बुधवार को डॉक्टर यूनुस से मुलाक़ात की और मानवाधिकार, सामाजिक न्याय व जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए उनकी प्रतिबद्धता का स्वागत किया.
उन्होंने बुधवार को निटॉल अस्पताल के अपने दौरे का ज़िक्र किया, जहाँ जुलाई में प्रदर्शनों के दौरान गोलीबारी में घायल हुए छात्रों का उपचार किया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारियों व अन्य लोगों के विरुद्ध जुलाई व अगस्त महीने में बर्बर हिंसा को अंजाम दिया गया, जिनमें बच्चों समेत बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए थे. ऐसी घटनाओं की जाँच को प्राथमिकता के तौर पर लिया जाना होगा.
“आपराधिक न्याय अहम है, मगर यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि आरोपों को जल्दबाज़ी में ना तय किया जाए. इस पूरी प्रक्रिया में समुचित प्रक्रिया व निष्पक्ष मुक़दमे के मानकों को बनाए रखना होगा.”
अल्पसंख्यकों पर हमलों के आरोप
यूएन हाई कमिश्नर ने बताया कि उनके कार्यालय की एक तथ्य-खोजी टीम, बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों के विरुद्ध 5 से 15 अगस्त के दौरान हुए हमलों के आरोपों की जाँच कर रही है.
वोल्कर टर्क ने कहा कि संक्रमणकाल में जोखिम हमेशा बने रहते हैं, विशेष रूप से निर्बल समुदायों के लिए. उन्होंने अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए छात्रों व अन्य लोगों द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की.
उन्होंने कहा कि यह ज़रूरी है कि ऐसी किसी भी घटना पर स्थानीय प्रशासन द्वारा तुरन्त कार्रवाई की जाएँ, विस्तार से इन मामलों की जाँच हो और दोषियों की जवाबदेही तय की जाए.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने बताया कि इससे अल्पसंख्यक समुदायों के साथ विश्वास पैदा करने में मदद मिलेगी, जोकि भ्रामक जानकारी, जानबूझकर फैलाई जाने वाली ग़लत जानकारी और सोशल मीडिया पर नफ़रत फैलाने की मुहिम के इस दौर में ज़रूरी है.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने रोहिंज्या शरणार्थियों के लिए बांग्लादेश की मेज़बानी की सराहना करते हुए अपना समर्थन व एकजुटता व्यक्त की है. उन्होंने चिन्ता जताई कि म्याँमार के राख़ीन प्रान्त में हालात बद से बदतर हो रहे हैं. इसलिए, बांग्लादेश पहुँचने वाले नए शरणार्थियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाया जाना होगा.
बताया गया है कि बांग्लादेश में यूएन मानवाधिकार कार्यालय अपनी मौजूदगी के ज़रिये, संक्रमणकालीन प्रक्रिया में ज़रूरी समर्थन मुहैया कराता रहेगा.