11 नवम्बर को अज़रबैजान की राजधानी बाकू में, जिस सन्दर्भ में यूएन का वार्षिक जलवायु सम्मेलन, COP29 आरम्भ हो रहा है,वह गम्भीर तो है, लेकिन पूरी तरह निराशाजनक नहीं.
सम्मेलन से कुछ ही दिन पहले जारी एक संयुक्त राष्ट्र जलवायु रिपोर्ट ने पुष्टि की है कि यदि तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो वैश्विक तापमान में वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाने की आशंका है और यह इस सदी के अन्त तक पूर्व औद्योगिक काल के स्तर की तुलना में 2.6-3.1°C तक पहुँच सकती है.
कार्रवाई ना होने पर, बार-बार ख़तरनाक चरम मौसम घटनाओं का सामना करना पड़ेगा.
ऐसे में, संयुक्त राष्ट्र ने तुरन्त सामूहिक कार्रवाई का आहवान किया है, और विकासशील देशों के जी20 समूह और प्रमुख उत्सर्जकों से आग्रह किया है कि वे इस संकट को रोकने के लिए साथ मिलकर, ठोस प्रयास करें.
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन क्या है?
जलवायु संकट किसी एक देश तक सीमित नहीं है. इससे निपटने के लिए अभूतपूर्व अन्तरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है, और इस बहुपक्षीय प्रयास में संयुक्त राष्ट्र और उसके महासचिव केन्द्रीय भूमिका में हैं.
वार्षिक संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP – Conferences of the Parties to the UN Framework Convention on Climate Change), निर्णय-निर्धारण हेतु विश्व के प्रमुख बहुपक्षीय मंच हैं, जिसपर दुनिया के लगभग सभी देश एकजुट होते हैं.
इन सम्मेलनों को, जलवायु संकट से निपटने, वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने, कमज़ोर समुदायों को बदलती जलवायु के अनुकूल ढालने में मदद करने और 2050 तक नैट-ज़ीरो उत्सर्जन हासिल करने पर सहमति बनाने के लिए दुनिया को एकजुट करने के अनुपम अवसरों के रूप में देखा जाता है.
कॉप सम्मेलन समावेशी होते हैं, और इनमें विश्व नेताओं व सरकारी प्रतिनिधियों से लेकर, समाज, व्यापारिक नेता, जलवायु वैज्ञानिक, तथा आदिवासी लोग एवं युवजन तक, समाज के विविध क्षेत्रों से विभिन्न लोग शामिल होते हैं. यह सभी लोग, अपने दृष्टिकोण व सर्वोत्कृष्ट प्रथाओं को साझा करते है, ताकि सर्वजन के हित के लिए जलवायु कार्रवाई को मज़बूत किया जा सके.
COP29 में प्रमुख मुद्दे क्या होंगे?
बाकू में वार्ता का एक प्रमुख मुद्दा, नए जलवायु वित्तपोषण लक्ष्य पर सहमति बनाना होगा, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी देशों के पास, मज़बूत जलवायु कार्रवाई, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती और सहनसक्षम समुदायों के निर्माण के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध हों.
सम्मेलन का उद्देश्य, विकासशील देशों को कार्बन उत्सर्जन घटाने, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और इससे हुए नुक़सान की भरपाई करने के लिए ज़रूरी ख़रबों डॉलर जुटाना है.
इस वर्ष की शुरुआत में आयोजित संयुक्त राष्ट्र का ‘भविष्य के लिए सम्मेलन’ में, अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय ढाँचे में सुधार पर हुई चर्चाओं को आगे बढ़ाया जाएगा. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने वर्तमान प्रणाली को “वर्तमान चुनौतियों का सामना करने में पूरी तरह से अनुपयुक्त” बताया है. उन्होंने कहा कि कई निर्धन देशों पर ऋण का असहनीय बोझ है, जिससे वे सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य देखभाल में निवेश करने में असमर्थ हैं. हालाँकि उन्हें निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर बदलाव के उपायों के लिए संसाधन जुटाना बेहद ज़रूरी है.
अगले दो सप्ताह में क्या-कुछ होगा?
हर बार की तरह, इस सम्मेलन में भी बातचीत, भाषण, प्रैस कॉन्फ्रेंस, आयोजन और पैनल चर्चाओं से भरे व्यस्त कार्यक्रम होंगे. इस कार्यक्रम को दो क्षेत्रों में बांटा गया है – ग्रीन ज़ोन, जो COP29 अध्यक्षता द्वारा संचालित होगा और आम जनता के लिए खुला होगा. इसके अलावा दूसरा ब्लू ज़ोन होगा, जिसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रबंधित किया जाएगा.
यहीं पर मुद्दों की बारीक़िया तय की जाएँगी, और विश्व के विभिन्न देशों के प्रतिनिधि सम्मेलन ख़त्म होने तक किसी समझौते पर पहुँचने का प्रयास करेंगे. अक्सर यह सहमति हासिल तो कर ली जाती है, लेकिन काफड़ी नाटकीयता के बाद, जिसमें कभी-कभी अन्तिम क्षण तक असहमति के कारण चर्चा निर्धारित समय सीमा से आगे बढ़ जाती है.
कॉप सम्मेलन क्यों महत्वपूर्ण हैं?
COP सम्मेलनों का महत्व सभी पक्षों को एकजुट करने की उनकी शक्ति में है. हालाँकि कई बार इनमें लिए गए निर्णय जलवायु संकट से निपटने में उतने क़ामयाब नहीं हो पाते, जितनी उम्मीद की जाती है. लेकिन इनका आधार सभी की सहमति होता है, जो गम्भीर मुद्दों पर मानक स्थापित करने व कार्रवाई आगे बढ़ाने के लिए दुनियाभर के देशों को, अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर समझौतों पर पहुँचने के लिए एकजुट करता है.
2015 में, पेरिस में COP21 के दौरान, एक ऐतिहासिक जलवायु समझौता हुआ था, जिसमें देशों ने वैश्विक तापमान वृद्धि को औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस नीचे रखने पर सहमति व्यक्त की थी और इसे 1.5 डिग्री तक सीमित रखने का प्रयास करने का वादा किया था. पेरिस समझौते के तहत, हर पाँच साल में जलवायु कार्य योजनाओं को आगे बढ़ाया जाता है.
अगली राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजनाएँ – जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित जलवायु योगदान (NDCs) कहा जाता है – 2025 में जारी की जाएँगी. इस प्रक्रिया से उत्सर्जन में धीरे-धीरे लेकिन महत्वपूर्ण कटौती और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने के प्रयासों को बढ़ावा मिला है.
प्रत्येक वर्ष, वार्ताकार पिछले वर्ष के COP में हुई प्रगति को आगे बढ़ाते हैं, महत्वाकाँक्षाओं और प्रतिबद्धताओं को मज़बूत करते हैं, और नवीनतम जलवायु विज्ञान प्रगति और संकट के दौरान मानव गतिविधि के आधार पर नए समझौतों को आकार देते हैं.
अगला क़दम क्या होगा?
सम्मेलन से परे भी, ऐसे कई सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं कि स्वच्छ ऊर्जा की ओर तेज़ी से बदलाव किया जा रहा है और इससे स्पष्ट तौर पर रोज़गार सृजन एवं स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को प्रोत्साहन मिलने जैसे लाभ मिल रहे हैं.
नवीकरणीय ऊर्जा एक अभूतपूर्व दर से ऊर्जा प्रणाली में प्रवेश कर रही है, और अधिकाँश स्थानों में पवन एवं सौर ऊर्जा से उत्पन्न बिजली, जीवाश्म ईंधनों से अधिक किफ़ायती हो गई है.
वह दिन दूर नहीं जब हमारा भविष्य पूर्णत: नवीकरणीय ऊर्जा से संचालित होगा. जो लोग आज निर्णायक क़दम उठाकर स्वच्छ तकनीकों में निवेश कर रहे हैं, वो आने वाले वर्षों में इसका सबसे अधिक लाभ पाने की उम्मीद कर सकते हैं.
COP29 समाप्त होने से पहले भी, प्रतिनिधि अपनी नवीन राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं के अन्तिम जामे पर काम कर रहे होंगे, जिनका प्रमुख लक्ष्य जीवाश्म ईंधनों से दूर हटकर वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री से कम पर बनाए रखना है.