शॉपिंग करने में क्रेडिट कार्ड काफी हेल्प करता है। सबसे बड़ा फायदा यह है कि शॉपिंग से पहले एटीएम जाने की जरूरत नहीं पड़ती है। ऑनलाइन शॉपिंग में भी यह बहुत काम आता है। लेकिन, इसके ऑनलाइन इस्तेमाल में काफी रिस्क है। उदाहरण के लिए रिटेल पेमेंट पेज पर कार्ड की डिटेल डालने से कार्ड से जुड़ी सेंसेटिव जानकारियों के ऑनलाइन चोरी होने और फिर उनका दुरूपयोग होने का डर रहता है। इसके बावजूद क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। ड्रॉपशॉपिंग ऐप Oberlo के मुताबिक, 2023 में डिजिटल बायर्स की संख्या 2.64 अरब पहुंच गई। यह दुनिया की कुल आबादी का 33.3 फीसदी है। Statista के मुताबिक, इंडिया में 2027 तक ऑनलाइन शॉपिंग करने वाले लोगों की संख्या 42.5 करोड़ पहुंच जाने का अनुमान है।
क्या है वर्चुअल क्रेडिट कार्ड?
जब ऑनलाइन शॉपिंग सहित हर तरह की शॉपिंग के लिए क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल बढ़ रहा है तब पेमेंट का सुरक्षित होना बहुत अहम हो जाता है। इसलिए सेंसेटिव डेटा की सुरक्षा और सुरक्षित शॉपिंग के लिए वर्चुअल क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल एक अच्छा ऑप्शन है। वर्चुअल कार्ड का मतलब ट्रेडिशनल क्रेडिट कार्ड के डिजिटल वर्जन से है। फिजिकल की जगह सिर्फ डिजिटल वर्ल्ड में इसका वजूद होता है। किसी रेगुलर क्रेडिट कार्ड की तरह एक वर्चुअल कार्ड का भी अपना नंबर होता है। इसकी एक्सपायरी डेट होती है। सीवीवी कोड होता है। लेकिन, इसका कोई फिजिकल कार्ड नहीं होता है।
यह कैसे काम करता है?
वर्चुअल कार्ड किसी क्रेडिट या डेबिट कार्ड से लिंक्ड होता है। इससे पेमेंट के वक्त असल क्रेडिट कार्ड के डेटा डिसक्लोज होने का डर नहीं रह जाता है। इससे सिक्योरिटी का अतिरिक्त लेयर उपलब्ध होता है। कंज्यूमर को रिटेल पेमेंट पेज पर वर्चुअल कार्ड का डेटा डालना होता है। रियल कार्ड डेटा की मैपिंग क्रेडिट कार्ड इश्यू करने वाले बैंक या पेमेंट सर्विस प्रोवाइडर की तरफ से की जाती है। टेंपररी वर्चुअल कार्ड्स वर्चुअल क्रेडिट कार्ड्स के सबसे कॉमन टाइप हैं। यह या तो सिंगल ट्रांजेक्शन के लिए वैलिड होता है या सीमित समय के लिए वैलिड होता है।
इसका इस्तेमाल कितना सुरक्षित है?
ऑनलाइन शॉपिंग के वक्त कंज्यूमर टेंपररी वर्चुअल कार्ड की डिटेल मोबाइल बैंकिंग या इंटरनेट बैंकिंग के जरिए हासिल कर सकता है। अगर यह डिटेल इंफॉर्मेशन किसी गलत व्यक्ति के हाथ लग जाती है तो भी कंज्यूमर को बहुत सीमित नुकसान होने की आशंका रहती है। इसका दूसरा फायदा यह है कि यह कंज्यूमर को ट्रांजेक्शन के मामले में कंट्रोल रखने की सुविधा देता है। उदाहरण के लिए, ट्रांजेक्शन की संख्या लिमिटेड होने, ट्रांजेक्शन के समय की सीमा और किसी खास कैटेगरी के मर्चेंट के लिए इस्तेमाल तय होने से फर्जीवाड़े की आशंका घट जाता है।