इस मुद्दे पर यूएन महासभा का 10वाँ आपात विशेष सत्र मंगलवार को पुनः आरम्भ हुआ था, जिसमें यह मसौदा प्रस्ताव पेश किया गया था और उस पर सदस्य देशों ने अपने विचार रखे थे. इस प्रस्ताव बुधवार को मतदान हुआ.
महासभा के इस सत्र में चर्चा का मुद्दा – क़ाबिज़ पूर्वी येरूशेलम और शेष क़ाबिज़ फ़लस्तीनी क्षेत्र में, इसराइली गतिविधियों की वैधता पर विचार करना था.
प्रस्ताव भारी समर्थन से पारित
सदस्य देशों के राजदूतों ने प्रस्ताव पर विस्तार से अपनी राय रखी. ये प्रस्ताव 124 मतों के समर्थन से पारित हुआ. इसके विरोध में 14 वोट पड़े और 43 सदस्य देशों ने मतदान में शिरकत नहीं की.
यूएन महासभा ने, इस नव पारित प्रस्ताव के ज़रिए “मांग करती है की है कि इसराइल क़ाबिज़ फ़लस्तीनी क्षेत्र पर अपने अवैध क़ब्ज़े को बिना किसी देरी के ख़त्म करे.
इस क़ब्ज़े में इसराइल की अन्तरराष्ट्रीय ज़िम्मेदारियों का उल्लंघन करने के जोखिम वाली ग़लत कार्रवाइयाँ भी शामिल हैं, और इसराइली क़ब्ज़े का यह अन्त, इस प्रस्ताव के पारित होने से 12 महीनों के भीतर होना चाहिए”.
यूएन महासभा ने यह भी मांग की है कि इसराइल, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून की तहत अपनी ये क़ानूनी ज़िम्मेदारियाँ निभाए, जिनका आदेश अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय ने भी दिया है.
इनमें प्रमुख हैं:
(क) क़ाबिज़ फ़लस्तीनी क्षेत्र से, अपनी तमाम सेनाओं को हटाए, जिनमें वहाँ के वायु क्षेत्र और समुद्री क्षेत्र को ख़ाली किया जाना भी शामिल है,
(ख) इसकी (इसराइल की) अवैध नीतियों और गतिविधियों का तत्काल अन्त करना, जिनमें (फ़लस्तीनी क्षेत्र में इसराइल द्वारा) चलाई जा रही यहूदी बस्तियों को बसाने सम्बन्धी गतिविधियों को तत्काल रोका जाना, क़ाबिज़ फ़लस्तीनी क्षेत्र में बसाए गए तमाम यहूदी बाशिन्दों को हटाया जाना और इसराइल द्वारा बनाई गई दीवार के, फ़लस्तीनी क्षेत्र में स्थित हिस्से को ध्वस्त किया जाना शामिल है.
साथ ही ऐसे क़ानूनों और उपायों को भी रद्द व ख़त्म किया जाए, जो इस अवैध स्थिति को बरक़रार रखने के लिए बनाए गए हैं.
अन्तरराष्ट्रीय क़ानून की साख़ दाँव पर
ग़ौरतलब है कि अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने फ़लस्तीनी क्षेत्र पर इसराइल के क़ब्ज़े को अवैध बताने वाला ऐतिहासिक निर्णय क़रीब 50 दिन पहले सुनाया था.
संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने इस सन्दर्भ में बुधवार को चेतावनी भरे शब्दों में कहा है कि अधिकतर देश, न्यायालय के इस निर्णय को लागू कराने की अपनी अन्तरराष्ट्रीय ज़िम्मेदारियाँ निभाने में नाकाम रहे हैं. ऐसे में, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून की साख़, चाकू की धार पर टिकी हुई है.
मानवाधिकार विशेषज्ञों के एक समूह ने बुधवार को एक वक्तव्य जारी किया है जिसमें अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय के परामर्श पर अमल सुनिश्चित करने के लिए, कुछ कार्रवाई बिन्दु सुझाए गए हैं.
इस वक्तव्य के अनुसार, न्यायालय के परामर्श में कहा गया है कि क़ाबिज़ फ़लस्तीनी क्षेत्र में, इसराइली गतिविधियाँ और कार्रवाइयाँ, (फ़लस्तीनी क्षेत्र) को छीने जाने के बराबर हैं.
न्यायालय की राय में ध्यान दिलाया गया है कि इसराइली कार्रवाइयों और गतिविधियों में, आबादी का जबरन हस्तान्तरण, नस्लीय भेदभाव और आबादी को अलग-थलग रखा जाना, जो रंगभेद के दायरे में भी आती हैं, और फ़लस्तीनी लोगों के आत्म-निर्णय के अधिकार का हनन किया जाना शामिल हैं.
न्यायालय के परामर्श में ये भी कहा गया है कि इन मानवाधिकार उल्लंघनों के, फ़लस्तीनी बच्चों की आने वाली पीढ़ियों पर पड़ने वाले प्रभाव विशेष रूप से चिन्ताजनक हैं, और महिलाओं, विकलांगजन व वृद्ध जन पर भी इनका बहुत प्रतिकूल असर पड़ रहा है.