पिछले दो वर्ष से प्लास्टिक प्रदूषण पर क़ानूनी रूप से बाध्यकारी उपाय के लिए अन्तर-सरकारी स्तर पर वार्ता जारी थी, जिसमें भूमि व समुद्री पर्यावरणों का भी ध्यान रखा गया, और उसके बाद यह बैठक बुलाई गई है.
संयुक्त राष्ट्र के शीर्षतम अधिकारी एंतोनियो गुटेरेश ने एक वीडियो सन्देश के ज़रिये प्रतिनिधियों से समझौते को आकार देने का आग्रह किया.
“हमारी दुनिया प्लास्टिक प्रदूषण में डूब रही है. हर वर्ष, हम 46 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन करते हैं, जिसमें से अधिकाँश को जल्दी ही फेंक दिया जाता है.”
उन्होंने आगाह किया कि वर्ष 2050 तक, महासागर में प्लास्टिक की मात्रा, मछलियों से अधिक पहुँच सकती है. हमारी रक्तधारा में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण ऐसी स्वास्थ्य समस्याओं की वजह बन बन रहे हैं, जिनके बारे में हमने अभी समझना शुरू ही किया है.
कार्रवाई का समय
यूएन पर्यावरण कार्यक्रम की कार्यकारी निदेशक इंगेर ऐंडरसन ने ऐतिहासिक समझौते की आशा व्यक्त करते हुए कहा कि कार्रवाई करने का समय आ गया है.
“पृथ्वी पर कोई भी व्यक्ति अपने किनारों पर प्लास्टिक को लहरों के साथ आते हुए, प्लास्टिक कणों को अपने शरीर या अपने अजन्मे बच्चों में प्रवाहित होते हुए नहीं देखना चाहता.”
UNEP प्रमुख ने बताया कि औद्योगिक देशों के समूह जी20 में भी इसी भावना को व्यक्त किया गया था.
170 से अधिक देशों और 600 पर्यवेक्षक संगठनों के प्रतिनिधि, दक्षिण कोरिया के बन्दरगाह शहर, बुसान में एक सप्ताह के लिए जुटे हैं, जहाँ राष्ट्रपति यून सुक येऑल ने शून्य प्लास्टिक प्रदूषण की ओर बढ़ने के उपाय पर सहमति बनाने की पुकार लगाई है.
उन्होंने कहा कि आगामी सप्ताह में सदस्य देशों को एकजुटता दर्शाते हुए भावी पीढ़ियों की ख़ातिर, प्लास्टिक प्रदूषण पर सन्धि को अन्तिम रूप देकर, एक नए ऐतिहासिक अध्याय की शुरुआत करनी होगी.
‘महत्वाकाँक्षी, न्यायसंगत’ समझौता ज़रूरी
आधिकारिक रूप से इस मुद्दे पर बैठक को पाँचवी अन्तर-सरकारी समिति की वार्ता कहा गया है ताकि समुद्री पर्यावरण समेत, प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए क़ानूनी रूप से बाध्यकारी उपाय की व्यवस्था की जा सके.
इस विषय में बातचीत की शुरुआत, 1,000 दिन पहले उरुग्वे में हुई थी और चार सत्रों की वार्ता के बाद अब यह बैठक बुलाई गई है, जिसमें समझौते की अपेक्षा है.
यूएन प्रमुख ने ज़ोर देकर कहा है कि प्लास्टिक प्रदूषण पर सन्धि को महत्वाकाँक्षी, विश्वसनीय और न्यायसंगत बनाना होगा.
किसी भी समझौते में प्लास्टिक के जीवन चक्र का ध्यान रखा जाना होगा, एकल-इस्तेमाल और कम अवधि की प्लास्टिक की समस्या से निपटना होगा. साथ ही, कचरा प्रबन्धन को मज़बूती देते हुए वैकल्पिक सामग्री को बढ़ावा दिया जाना होगा.
इसके ज़रिये सभी देशों की टैक्नॉलॉजी तक पहुँच सुनिश्चित की जानी होगी, भूमि व समुद्री पर्यावरणों को बेहतर बनाना होगा और यह सुनिश्चित किया जाना होगा कि प्लास्टिक पर निर्भर समुदायों को साथ लेकर चला जाए.