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प्रवासियों की सामूहिक क़ब्रगाह बनने से रोका जाना होगा, सुरक्षा परिषद से आग्रह

प्रवासियों की सामूहिक क़ब्रगाह बनने से रोका जाना होगा, सुरक्षा परिषद से आग्रह

संयुक्त राष्ट्र की दो एजेंसियों ने सोमवार को सुरक्षा परिषद को आगाह करते हुए कहा है कि सहारा रेगिस्तान और भूमध्यसागर क्षेत्रों को, “प्रवासियों के लिए सामूहिक क़ब्रगाह” बनने से रोकने के लिए बिल्कुल अभी ठोस कार्रवाई करनी होगी.

अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) के संयुक्त राष्ट्र के लिए निदेशक पार लिलजर्ट ने बताया कि IOM ने वर्ष 2023 में, दुनिया भर में कुल 8 हज़ार 542 प्रवासियों की मौत दर्ज की थी. 

यह संख्या, वर्ष 2014 में इस सम्बन्ध में आँकड़े जुटाने का काम शुरू किए जाने के बाद से सबसे बड़ी संख्या थी.

इनमें से 37 प्रतिशत मौतें, भूमध्यसागर में हुई थीं.

उन्होंने योरोपीय संघ के देशों में पहुँचने के प्रयास करने वाले प्रवासियों और शरणार्थियों द्वारा लिए जाने वाले घातक रास्तों में से कुछ का ज़िक्र किया.

निदेशक पार लिलजर्ट ने सोमवार को कहा कि इस त्रासदी का स्तर, पीड़ितों, परिवारों और समुदायों पर इसके प्रभाव, और रास्तों में जितनी तेज़ी से इस तरह के हादसों में मौतें हो रही हैं, वो इसे एक असहनीय, समाधान योग्य और मानवीय संकट बनाती हैं.

यूएन शरणार्थी एजेंसी – UNHCR के न्यूयॉर्क कार्यालय के निदेशक सिवंका धनापाला ने भी यही सन्देश दोहराते हुए, सुरक्षा परिषद को बताया कि समुद्री और ज़मीनी मार्गों में, जीवन को लील लेने वाली इस तरह की त्रासदियाँ, निरन्तर जारी हैं और उनका कोई निकट अन्त नज़र नहीं आ रहा है.

उन्होंने कहा कि UNHCR ने इस वर्ष अभी तक लगभग साढ़े तीन लाख शरणार्थियों का पंजीकरण किया है. उनमें से बहुत से सूडानी शरणार्थी हैं जो उत्तरी अफ़्रीका में शरण चाह रहे हैं.

जनवरी से अगस्त के दौरान, उत्तरी और पश्चिमी अफ़्रीका से, लगभग एक लाख 34 हज़ार शरणार्थी और प्रवासी, योरोप की तरफ़ निकले थे. यह संख्या वर्ष 2023 की तुलना में 24 प्रतिशत कम है.

 IOM की लापता व्यक्ति परियोजना के अनुसार, 17 सितम्बर (2024) तक 1,450 लोगों को घातक मार्गों से गुज़रते समय मृत या लापता दर्ज किया गया है. यह संख्या 2023 की तुलना में 44 प्रतिशत कम है.

सिवंका धनापाला ने कहा कि लीबिया में वर्ष 2023 के दौरान, 97 हज़ार सूडानी शरणार्थी पहुँचे, जिनमें हर दिन पहुँचने वालों की संख्या 300 से 400 होती थी. सूडान में अप्रैल 2023 में युद्ध भड़कने के बाद से इस संख्या में उछाल आया.

उनका कहना था कि अगर संख्या में कमी भी आ रही हो तो भी, चिन्ताएँ बरक़रार हैं.

संरक्षण, सुरक्षा और शरण का अभाव

सिवंका धनापाला ने कहा कि प्रवासन के मुख्य मार्गों में संरक्षण के लिए पहुँच में कोई बेहतरी नहीं हुई है. उसके अलावा क्षेत्र व पनाह तक पहुँच से सम्बन्धित चुनौतियों में वृद्धि हुई है.

IOM के निदेशक पार लिलजर्ट का कहना था कि असुरक्षित या घातक प्रवासन के प्राथमिक कारण, आर्थिक हैं, जिनका स्तर 44 प्रतिशत है. उसके बाद युद्ध और टकराव 29 प्रतिशत, और निजी या लक्षित हिंसा से बचने की ख़ातिर प्रवासन पर निकलने वाले लोगों की संख्या 26 प्रतिशत है.

इन कठिनाइयों में, जलवायु परिवर्तन से भड़की आपदी आपदाएँ भी इज़ाफ़ा करती हैं, और साथ ही मेज़बान देशों की चुनौतियों का भी इनमें बड़ा हाथ है. इस सम्बन्ध में पार लिलजर्ट ने लीबिया का उदाहरण दिया.

IOM ने जून और जुलाई में जिन प्रवासियों के साथ बातचीत की, उनमें से लगभग 70 प्रतिशत ने बताया कि खाद्य पदार्थों की आसमान छूती क़ीमतों के अनुभव ने देश छोड़कर निकल जाने के लिए विवश किया. जबकि 63 प्रतिशत ने कम या घटी हुई दैनिक आदमनी को वजह बताया.

इस बीच लीबिया में संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र तथ्यान्वेशी मिशन ने पाया कि देश को, मंज़िल के रूप में सुरक्षित नहीं देखा जाता है, क्योंकि वहाँ बन्दीकरण, उत्पीड़न और तस्करी जैसे मानवाधिकार उल्लंघन होते हैं.

पार लिलजर्ट ने बताया कि प्रवासीजन, योरोप पहुँचने के लिए, और भी बहुत ख़तरनाक रास्तों पर चल रहे हैं, जैसाकि पशअचिमी अफ़्रीकी अटलांटिक मार्ग से पहुँचने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी से नज़र आता है.

उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को सहारा रेगिस्तान और भूमध्यसागर को “प्रवासीजन के लिए सामूहिक क़ब्रगाह” नहीं बनने देना चाहिए. साथ ही, तलाश और बचाव अभियानों का अधिक ध्यान लोगों की ज़िन्दगियों को बचाना होना चाहिए.

“हमें प्रतिक्रियात्मक उपायों से आगे बढ़ना होगा… एक ऐसा तरीक़ा अपनाना होगा जो अनियमित प्रवासन के प्रतिकूल कारकों का सामना कर सके. ”

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