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‘पार्टी से निकाले जाने से पहले ही भेज चुका था इस्तीफा’ संजय निरुपम ने ‘जय श्री राम’ बोलकर गांधी परिवार और कांग्रेस पर साधा निशाना

‘पार्टी से निकाले जाने से पहले ही भेज चुका था इस्तीफा’ संजय निरुपम ने ‘जय श्री राम’ बोलकर गांधी परिवार और कांग्रेस पर साधा निशाना

Maharashtra Loksabha Chunav 2024: अनुशासनहीनता के चलते कांग्रेस (Congress) ने निष्कासित किए जाने के एक दिन बाद संजय निरुपम (Sanjay Nirupam) ने गुरुवार को कहा कि निष्कासन से पहले ही वो पार्टी से इस्तीफा दे चुके थे। कांग्रेस ने महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता को बुधवार देर रात पार्टी से 6 साल के लिए निकाल दिया था। उनपर ये कार्रवाई लोकसभा चुनाव के लिए शिवसेना (यूबीटी) के साथ सीट बंटवारे की बातचीत के बीच पार्टी विरोधी बयान देने के लिए की गई है।

पूर्व सांसद निरुपम ने X पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को भेजे गए अपने इस्तीफे के मेल का स्क्रीनशॉट शेयर किया। उन्होंने पोस्ट के साथ लिखा, “ऐसा लगता है कि पार्टी को कल रात मेरा इस्तीफा मिलने के तुरंत बाद, उन्होंने मेरा निष्कासन जारी करने का फैसला किया। ऐसी तत्परता देखकर अच्छा लगा।”

पत्रकार से नेता बने 59 साल के निरुपम ने बाद में मीडिया को संबोधित किया और मुंबई की उत्तर-पश्चिम सीट से ‘खिंचड़ी चोर’ अमोल कीर्तिकर को उम्मीदवार बनाने के लिए महा विकास अगाढ़ी (MVA) पर हमला किया।

‘जय श्री राम’ के नारे से शुरुआत करते हुए निरुपम ने कहा, “MVA ने एक खिचड़ी चोर को अपना उम्मीदवार बनाया। बीजेपी को भ्रष्ट जनता पार्टी कहा जाता था, जब आप एक खिचड़ी चोर को टिकट देते हैं, तो आपकी बीजेपी को ये कहने की क्या औकात है? मुझे उम्मीद थी कि मेरी पार्टी इस पर ध्यान देगी। मैंने रात 10.43 बजे खड़गे जी को अपना इस्तीफा भेज दिया था।”

उन्होंने कांग्रेस को एक दिशाहीन पार्टी करार दिया। उन्होंने कहा पार्टी में संगठनात्मक ताकत नहीं है। गांधी परिवार और पार्टी आलाकमान पर निशाना साधते हुए निरुपम ने कहा कि कांग्रेस के पास पांच पावर सेंटर हैं।

उन्होंने कहा, “सभी पांचों-सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और केसी वेणुगोपाल- की अपनी-अपनी लॉबी हैं और उनके एक-दूसरे से टकराव हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि अब उनका धैर्य खत्म हो गया है। निरुपम ने कहा, “पार्टी कार्यकर्ताओं में भारी निराशा है। वैचारिक मोर्चे पर भी कांग्रेस खुद को धर्मनिरपेक्ष कहती है। महात्मा गांधी सर्वधर्म समभाव में विश्वास करते थे। सभी विचारधाराओं की एक समय सीमा होती है। धर्म को नकारने वाली नेहरूवादी धर्मनिरपेक्षता खत्म हो गई है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस इसे मानने को तैयार नहीं है।”

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