कांस्य युग से ही, सिन्धु व उसकी सहायक नदियाँ, भारतीय उपमहाद्वीप पर मानव सभ्यता का पोषण करती रही हैं.
सैकड़ों साल बीतने के बाद, आधुनिक पाकिस्तान में आज भी जल, भोजन, रोज़गार – और देश की पहचान भी बहुत हद तक इस नदी पर निर्भर है. सिन्धु नदी, तिब्बती पठार से अरब सागर तक, 3,000 किलोमीटर की लम्बाई में बहती है.
लेकिन सिन्धु और उसके जल के स्रोत, विशाल हिमालय हिमनद, तेज़ी से एक अप्रत्याशित ख़तरे का सामना कर रहे हैं: हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली घातक बाढ़ से अनगिनत बार नदी क्षेत्र प्रभावित हुआ है.
इन आपदाओं के कारण पर्यावरण को नुक़सान पहुँचने की चिन्ता है, जिसके मद्देनज़र, ‘Living Indus’ पहल के तहत तेज़ी से काम किया जा रहा है. यह पहल, नदी के ख़राब पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली और लाखों लोगों के जीवन एवं आजीविकाओं को सुरक्षित करने का एक महत्वाकाँक्षी प्रयास है.
इसमें सिन्धु डेल्टा में मैन्ग्रोव उगाने से लेकर, पहाड़ों की ऊँचाईयों पर छोटे ग्लेशियर तैयार करने के लिए पारम्परिक तौर-तरीक़ों का सहारा लिया जा रहा है, जिससे जल आपूर्ति बढ़ाई जा सके.
पाकिस्तानी सरकार के नेतृत्व में कार्यान्वित इस पहल को, इस वर्ष विश्व पुनर्बहाली फ्लैगशिप पुरस्कार प्रदान किया गया है. यह पुरस्कार, पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक का हिस्सा है और इसमें उन पहल को सम्मानित किया जाता है जो प्राकृतिक दुनिया की रक्षा एवं पुनर्बहाली में मदद कर रहे हैं.
इस पहल के तहत, 10 लाख हैक्टेयर से अधिक क्षेत्र को बहाल करने में सफलता हासिल की गई है. इस परियोजना के ज़रिए, 2030 तक 2.5 करोड़ हैक्टेयर क्षेत्र की पुनर्बहाली की योजना है.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की कार्यकारी निदेशक, इंगेर ऐंडरसन ने कहा, “हाल के वर्षों में पाकिस्तान में जलवायु परिवर्तन के कारण आई आपदाएँ हृदयविदारक हैं. इनसे इतने बड़े पैमाने पर विनाश हुआ है जिसे कोई भी देश स्वीकार नहीं कर सकता है, और ना ही करना चाहिए.”
उन्होंने कहा कि ‘Living Indus’ पहल जैसी परियोजनाओं को पहचानना और उनका समर्थन करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे पाकिस्तान व पूरे क्षेत्र में उम्मीद व सहनसक्षमता का संचार कर सकती हैं.
एक राष्ट्रव्यापी आन्दोलन
2021 में आरम्भ हुई इस पहल का लक्ष्य, सिन्धु घाटी के प्राकृतिक संसाधनों के लिए बचाव उपायों का विस्तार करना है. यह पाकिस्तान की 90 प्रतिशत आबादी का घर है, और इसकी 80 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि की सिंचाई का प्रमुख स्रोत भी है.
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पाकिस्तान को अधिक सहनसक्षम बनाना इसका प्रमुख लक्ष्य है. घरों, खेतों और कारख़ानों के लिए जल आपूर्ति सुनिश्चित करने के अलावा, इस पहल के ज़रिये वर्ष 2030 तक पाकिस्तान के भीतर 40 प्रतिशत सिन्धु घाटी क्षेत्र की बहाली और 2 लाख से अधिक हरित रोज़गार पैदा करना है.
वनीकरण एवं संरक्षित क्षेत्र स्थापित करके अब तक लगभग 13 लाख हैक्टेयर भूमि बहाल की जा चुकी है. इन क़दमों से, हिम तेंदुओं से लेकर नदी डॉल्फ़िन तक सभी लुप्तप्राय वन्यजीवों के संरक्षण में मदद मिलने की उम्मीद है.
आपदा प्रबन्धन
2022 में, मूसलाधार बारिश के बाद आई बाढ़ से पाकिस्तान में लगभग 3.3 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे. 1,700 से अधिक लोग मारे गए थे और 30 अरब अमेरिकी डॉलर का नुक़सान हुआ. इस वर्ष भी बाढ़ से अब तक सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है.
पीड़ितों में से अनेक लोग सिन्ध प्रान्त में घनी आबादी वाले निचले इलाक़ो के निवासी थे. इसीलिए इस पहल के तहत, आर्द्रभूमि जैसे प्राकृतिक बुनियादी ढाँचों को बहाल करने और जलवायु-कुशल कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया है.
इससे बाढ़, तूफ़ान, अत्यधिक गर्मी व अन्य जलवायु-सम्बन्धी जोखिम भी घटाए जा सकते हैं, मगर पहाड़ों की ऊँचाईयों पर ख़तरा जारी रहता है.
गिलगिट-बाल्टिस्तान क्षेत्र के हसनाबाद की एक स्कूली छात्रा, कोमल शेर को 2022 का वो दर्दनाक दिन आज भी याद है, जब राजमार्ग पुल समेत उसके शहर का एक बड़ा हिस्सा, सिन्धु की सहायक नदी श्योक के पानी पिघलने से आई बाढ़ में बह गया था.
वो ईंटों के उस ढेर को देखते हुए कहती है, जहाँ कभी उसका घर हुआ करता था, “बाढ़ से न केवल मेरा घर और सम्पत्ति बह गई, बल्कि मेरे बचपन की सारी यादें भी चली गईं.”
बाढ़ की वजह थी, बेहद उच्च तापमान, जिससे शिस्पर ग्लेशियर का पानी पिघलकर, उसके पीछे एक झील बन गई. इस उफ़नती झील का पानी अंततः किनारे तोड़कर बह निकला, जिससे नीचे घाटी में पानी एवं मलबे की खौफ़नाक लहर फैल गई.
विशेषज्ञों को चिन्ता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय एवं अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में ऐसी हिमनदी झीलों से बाढ़ आने की सम्भावना बढ़ती जा रही है. अक्टूबर 2023 में, भारत के सिक्किम राज्य में आई बाढ़ में कथित तौर पर 90 से अधिक लोगों की मौत हो गई, एक जलविद्युत बाँध तबाह हो गया और बांग्लादेश तक की दूरी पर गाँव जलमग्न हो गए.
Living Indus पहल के समन्वयक, जेहानज़ेब ने कहा कि यह प्रयास समुदाय-आधारित आपदा जोखिम प्रबन्धन, बाढ़ सुरक्षा व प्रारम्भिक चेतावनी प्रणालियों पर केन्द्रित है.उन्होंने कहा, “वास्तव में इसका उद्देश्य है, किसी भी तरह की आपदा से निपटने के लिए समुदाय की क्षमता में वृद्धि करना.”
नदी का सम्मान
Living Indus पहल के तहत 25 क्षेत्रों में परियोजना लागू की गई है और इसमें 11-17 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत आने का अनुमान है. विश्व पुनर्बहाली फ्लैगशिप पुरस्कार के रूप में मान्यता पाने के साथ, इस पहल को अब संयुक्त राष्ट्र से अतिरिक्त तकनीकी एवं वित्तीय सहायता पाने का अधिकार होगा.
जेहानज़ेब ने कहा कि इस समर्थन से लाभ उठाकर, कार्यक्रम को आगे बढ़ाने से, पाकिस्तान सिन्धु घाटी को शायद कुछ वापस दे सके.
उन्होंने कहा, “[सिन्धु] पाकिस्तान की रीढ़ है. हम जो कुछ भी हैं वह सिन्धु के कारण हैं. तो, सवाल वास्तव में यह है: क्या हम अगले 100 वर्षों तक सिन्धु का समर्थन करने के लिए सक्षम हैं?