इस वर्ष का यह पुरस्कार पाने वालों में सिसटर रोसिटा मिलेसी एक ब्राज़ीलियन नन भी शामिल हैं जोकि एक वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और आन्दोलन निर्माता भी हैं जिन्होंने पिछले 40 वर्षों से ऐसे लोगों के अधिकारों व गरिमा के लिए काम किया है जो विस्थापन के शिकार रहे हैं.
चार अन्य महिलाओं को क्षेत्रीय विजेता घोषित किया गया है.
यूएन शरणार्थी एजेंसी – UNHCR के उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैंडी ने कहा है कि अक्सर महिलाओं को भेदभाव और हिंसा के अतिरिक्त जोखिम का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से जब उन्हें बेघर होकर इधर-उधर भटकना पड़ता है.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “मगर इन पाँच विजेताओं ने दिखाया है कि महिलाएँ किस तरह, मानवीय सहायता और समाधान तलाश करने में भी बहुत अहम भूमिका निभा रही हैं.”
फ़िलिपो ग्रैंडी नेस, अपने समुदायों में कार्रवाई को आगे बढ़ाने, धरातल स्तर पर समर्थन मुहैया कराने और यहाँ तक कि राष्ट्रीय नीतियों को आकार देने में भी उनकी प्रतिबद्धता के लिए उनकी सराहना की.
सिस्टर रोसिटा ने ऐसे हज़ारों लोगों की मदद की है जिन्हें अपने घरों से बेदख़ल होना पड़ा है या नए अवसरों की तलाश में अपने घरों से निकलना पड़ा है. सिस्टर रोटिसा ने ऐसे लोगों को क़ानूनी दस्वातेज़ों, आश्रय, भोजन, स्वास्थ्य देखभाल, भाषा का प्रशिक्षण और ब्राज़ील में श्रम बाज़ार तक पहुँच हासिल करने में मदद की है.
यूएन शरणार्थी एजेंसी का कहना है कि सिस्टर रोसिटा ने एक वकील के रूप में, सार्वजनिक नीति को आकार देने में भी सक्रिय भूमिका निभाई है.
उदाहरण के लिए, ब्राज़ील के 1997 के शरणार्थी क़ानून के लिए उनका काम व प्रयासों ने शरणार्थियों के अधिकारियों को, 1984 के कार्टामैग्ना शरणार्थी घोषणा-पत्र के समान लाने में मदद की है. यह क़ानून ये सुनिश्चित करता है कि जिन लोगों को मध्य अमेरिका क्षेत्र में इधर-उधर भटकना पड़ता है उनका अन्तरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप संरक्षण किया जाए, उन्हें मज़बूत बनाया जाए.
समर्पण का जीवन
79 वर्षीय सिस्टर रोसिटा का कहना है, “मैंने अपना जीवन प्रवासियों और शरणार्थियों को समर्पित करने का निर्णय लिया था. मैं शरणार्थियों का स्वागत करने और समाज में उनके समावेश के लिए मदद की बढ़ती ज़रूरत से प्रेरित हुई.”
उनका कहना है, “मैं कार्रवाई और प्रयास करने से नहीं घबराती, भले ही हमें मनचाहे परिणाम नहीं भी मिलें. अगर मैं किसी काम का बीड़ा उठाती हूँ तो मैं उसे पूरा करने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देती हूँ.”
क्षेत्रीय विजेता
अफ़्रीका क्षेत्र से इस वर्ष की विजेता मायमूना बा, बुर्कीना फ़ासो की एक कार्यकर्ता हैं. उन्होंने लगभग 100 विस्थापित बच्चों को, स्कूली शिक्षा के लिए कक्षाओं में वापिस पहुँचाने में मदद की है, और 400 से अधिक विस्थापित महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता के रास्ते पर आगे बढ़ाया है.
इस बीच योरोप से क्षेत्रीय विजेता जिन डावोड ने एक सीरियाई शरणार्थी होने के नाते अपने अनुभव का प्रयोग करते हुए एक ऑनलाइन मंच विकसित किया जिसने सदमे से पीड़ित हज़ारों लोगों को, चिकिस्वा पेशेवरों के सम्पर्क में भेजा जिन्होंने उन्हें मानसिक स्वास्थ्य सहायता मुहैया कराई.
सूडानी शरणार्थी नादा फ़दोल, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका क्षेत्र से विजेता हैं, जिन्होंने मिस्र से सुरक्षा की तलाश में भागने वाले हज़ारों शरणार्थी परिवारों को ज़रूरी सहायता मुहैया कराई.
और दीप्ति गुरूंग, एशिया-प्रशान्त से विजेता हैं, जिन्होंने यह जानने के बाद कि उनकी दो बेटियाँ नेपाल में अचानक देश विहीन हो गई थीं, तो वहाँ के नागरिकता क़ानून में सुधार के लिए आन्दोलन चलाया. उससे उनके लिए और ऐसे ही हालात वाले हज़ारों अन्य लोगों के ले नागरिकता का रास्ता खुला.
मॉल्दोवा के लोगों को, मानवता के लिए मशाल बनने के लिए, विशेष सम्मानजनक उल्लेख मिलेगा.
उन्होंने अपनी स्वयं की आर्थिक चुनौतियों को एक तरफ़ रखकर, स्कूलों, सामुदायिक स्थानों और घरों को, यूक्रेन युद्ध से जान बचाकर भागे लगभग एक लाख लोगों के लिए, बड़ी तेज़ी से आश्रय स्थलों में तब्दील कर दिया था.