जनता दल-यूनाइटेड (जद-यू) के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने एकबार फिर से पाला बदलने के बाद रविवार को रिकॉर्ड नौवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
कुमार ने ‘महागठबंधन’ और विपक्षी दलों के ‘इंडिया’ गठबंधन से संबंध विच्छेद करने के बाद भाजपा के साथ मिलकर राज्य में नयी सरकार बनाई, जिससे लगभग डेढ़ साल पहले उन्होंने नाता तोड़ लिया था।
बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने राज भवन में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा की उपस्थिति में कुमार को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलायी। कुमार ने दिन में यह कहते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था कि बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन और विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन में उनके लिए ‘‘चीजें ठीक नहीं चल रही थीं’’।
भाजपा नेता सम्राट चौधरी और विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने भी मंत्री पद की शपथ ली।
दोनों उप मुख्यमंत्री बनाए गए हैं।
इससे पहले, चौधरी और सिन्हा को भाजपा विधायक दल का क्रमश: नेता और उपनेता चुना गया। उन्होंने इस अवसर के लिए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का आभार व्यक्त किया और ‘‘लालू प्रसाद की पार्टी राजद के जंगलराज से बिहार की रक्षा करने का संकल्प लिया।’’
जद(यू) नेता विजय कुमार चौधरी, विजेंद्र यादव और श्रवण कुमार के साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की अगुवाई वाले हिंदुस्तान अवाम मोर्चा के संतोष कुमार सुमन और निर्दलीय विधायक सुमित सिंह ने भी मंत्री पद की शपथ ली।
कुमार और दोनों उपमुख्यमंत्री को बधाई देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि बिहार में नव गठित राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार राज्य के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
उन्होंने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि उन्हें विश्वास है कि बिहार में नयी सरकार पूरे समर्पण भाव से लोगों की सेवा करेगी।
बिहार में 243 सदस्यीय विधानसभा में सबसे बड़े दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का कोई नेता शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित नहीं था।
लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव ने कहा, ‘‘आगामी विधानसभा चुनावों में जद(यू) का सफाया हो जाएगा। हमारे लिए खेल अभी खत्म नहीं हुआ है। खेल अभी शुरू हुआ है।’’
कुमार के ‘महागठबंधन’ छोड़ने तक तेजस्वी यादव राज्य के उपमुख्यमंत्री थे।
तेजस्वी के बड़े भाई तेज प्रताप यादव और सिंगापुर में रहने वाली उनकीबहन रोहिणी आचार्य ने ‘एक्स’ पर कई पोस्ट कर जद(यू) अध्यक्ष की तुलना एक ‘गिरगिट’ से की।
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) (भाकपा-माले) ने कुमार पर ‘‘विश्वासघात’’ का आरोप लगाते हुए तीखा हमला किया।
भाकपा-माले ने महागठबंधन सरकार को बाहर से समर्थन दिया था।
पार्टी के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने फेसबुक पर तीखी टिप्पणी करते हुए आरोप लगाया कि कुमार ‘‘जिनका मुख्यमंत्री के रूप में सबसे लंबा कार्यकाल रहा है’’, उन्हें आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ)-भाजपा अपने ‘‘मोहरे के रूप में’’ इस्तेमाल करेंगे।
राजनीतिक रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर ने भी कुमार पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘पाला बदलना उनकी राजनीति का हिस्सा बन गया है’’ और भाजपा को जदयू प्रमुख का समर्थन करने के लिए ‘‘भारी कीमत’’ चुकानी पड़ सकती है, जिन्होंने अगस्त 2020 में भी उसे धोखा दिया था।
इससे पहले, कुमार ने अपना इस्तीफा सौंपने के बाद पत्रकारों से कहा था, ‘‘अभी तक जो सरकार थी, वह अब समाप्त हो गयी है। मैंने इस्तीफा दे दिया है।’’
कुमार (72) ने संकेत दिया कि वह राज्य में महागठबंधन और ‘इंडिया’ में हो रही चीजों से खुश नहीं थे। उन्होंने कहा कि उन्होंने ‘इंडिया’ को आकार देने में मदद की, लेकिन उनके प्रयासों को उचित रूप से नहीं सराहा गया।
कुमार ने कहा, ‘‘आप सभी जानते हैं कि मैं इस गठबंधन में कैसे आया और मैंने इतने सारे दलों को एक साथ लाने के लिए कैसे काम किया, लेकिन हाल में चीजें ठीक नहीं चल रही थीं। मेरी पार्टी के नेताओं को भी यह अच्छा नहीं लग रहा था।’’
उन्होंने पिछले कुछ दिनों से राज्य में राजनीतिक उथल-पुथल पर अपनी गहरी चुप्पी का भी अप्रत्यक्ष जिक्र दिया।
कुमार ने जद(यू) विधायक दल की एक बैठक के बाद इस्तीफा दे दिया था।
कुमार अगस्त 2022 में महागठबंधन में शामिल हुए थे। उन्होंने भाजपा पर जद (यू) को ‘‘विभाजित’’ करने की कोशिश का आरोप लगाते हुए उससे नाता तोड़ लिया था।
उन्होंने बहुदलीय गठबंधन के साथ नयी सरकार बनाई थी, जिसमें राजद, कांग्रेस और तीन वामपंथी दल शामिल थे।
जद (यू) सुप्रीमो ने 2000 में राज्य के मुख्यमंत्री पद की पहली बार शपथ ली थी, लेकिन उनकी सरकार एक सप्ताह के भीतर ही गिर गयी थी। वह 2005 में फिर मुख्यमंत्री बने और पांच साल बाद 2010 में पुन: सत्ता में लौटे।
भाजपा से 2013 में नाता तोड़ने के बाद भी कुमार सत्ता में बने रहे, क्योंकि जद(यू) को राजद के एक अंसतुष्ट वर्ग के अलावा कांग्रेस और भाकपा जैसे दलों से बाहर से समर्थन मिल गया था। उस समय जद (यू) के पास बहुमत के आंकड़े से कुछ ही सदस्य कम थे।
हालांकि, एक साल से भी कम समय बाद उन्होंने लोकसभा चुनाव में जद(यू) की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था।
एक साल से भी कम समय बाद, जीतन राम मांझी को हटाकर उन्होंने नवंबर 2015 में मुख्यमंत्री के रूप में वापसी की। उस समय जद(यू), राजद और कांग्रेस गठबंधन ने विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की थी।
जद (यू), कांग्रेस और राजद को लेकर बनाए गए महागठबंधन ने 2015 के विधानसभा चुनाव में जबर्दस्त जीत हासिल की, लेकिन यह सरकार महज दो साल में गिर गई।
उन्होंने 2017 में तत्कालीन उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप के खिलाफ कदम उठाते हुए भाजपा के साथ नयी सरकार बनाने के लिए इस्तीफा दे दिया था। वह 2020 के विधानसभा चुनाव में फिर मुख्यमंत्री बने।
इस चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने जीत हासिल की थी, जबकि जद(यू) ने खराब प्रदर्शन किया था।
मौजूदा 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में जद(यू) के 45 और भाजपा के 78 विधायक हैं। कुमार को एक निर्दलीय सदस्य का भी समर्थन हासिल है। जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाला हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा पहले से ही राजग का हिस्सा है। उसके चार विधायक हैं।
राजद (79 विधायक), कांग्रेस(19 विधायक) और वाम दलों (16 विधायकों) के विधायकों को मिलाकर महागठबंधन के 114 विधायक हैं, जो बहुमत से आठ कम है।
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