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निराशा के बादलों में आशा की किरण: विकट हालात में ग़ाज़ा की एक माँ का संघर्ष

निराशा के बादलों में आशा की किरण: विकट हालात में ग़ाज़ा की एक माँ का संघर्ष

*पहचान छुपाने के लिए नाम बदल दिए गए हैं.

ग़ाज़ा पट्टी में रहने वाली 28 वर्षीय नादिया* ने यूएन एजेंसी को बताया, “युद्ध के दौरान मेरी गर्भावस्था का समय बहुत कठिन रहा. मुझे अपने बच्चे की सलामती को लेकर बहुत डर लगता था.”

उत्तरी ग़ाज़ा की निवासी नादिया विस्थापित होने की वजह से वर्तमान में दक्षिणी शहर ख़ान युनिस में रह रही हैं. जनवरी 2024 में जब युद्ध तेज़ हुआ, तभी चार बच्चों की माँ नादिया को मालूम हुआ कि वो एक बार फिर गर्भवती हैं. 

“मुझे डर था कि तनाव और बार-बार एक जगह से दूसरी जगह विस्थापित होने के कारण उसे कुछ हो न जाए.”

ग़ाज़ा के ही निवासी, नादिया के पति रामी*, युद्ध से पहले इसराइल में एक मज़दूर के रूप में काम कर रहे थे. लेकिन इसराइली सैन्य बलों ने, नवम्बर 2023 में, उन्हें ग़ाज़ा के बहुत से अन्य मज़दूरों के साथ 18 दिनों के लिए हिरासत में ले लिया. इस घटना ने नादिया की दुनिया को हिला कर रख दिया.

उन्हें बार-बार विस्थापन के कारण आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएँ हासिल करने में कठिनाई हुई. हालाँकि उन्होंने संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी, UNRWA द्वारा संचालित क्लीनिक में जाँच के लिए नियमित रूप से जाने की कोशिश की, लेकिन यात्रा में अक्सर बहुत ख़तरे का सामना करना पड़ता था. 

इसके अलावा, ग़ाज़ा में आसमान छूती क़ीमतों के कारण युद्ध की शुरुआत से अब तक परिवहन लागत दस गुनी बढ़ चुकी है, जिसे वहन करना, नादिया की सामर्थ्य से बाहर था.

संकट के बीच आपातस्थिति

युद्ध और अस्थिरता की इस स्थिति का नादिया पर गहरा असर पड़ा और उन्हें समय से एक महीने पहले ही प्रसव पीड़ा शुरू हो गई. उन्होंने बताया, “मुझे लगता है कि ऐसा, डर और थकान की वजह से हुआ, क्योंकि हमें सुरक्षित जगह ढूँढने के लिए लगातार पैदल चलना पड़ रहा था.” 

“मुझे प्रसव पीड़ा के दौरान अपने तम्बू से अस्पताल तक पहुँचने में लगभग डेढ़ घंटा लग गया. मैं टैक्सी नहीं ले सकती थी, क्योंकि मेरे पास बिल्कुल धन नहीं था.”

नादिया ने अगस्त में, ख़ान युनिस के UNFPA समर्थित नासेर अस्पताल में शिशु को जन्म दिया. लेकिन जल्द ही उनके नवजात शिशु को साँस लेने में कठिनाई होने लगी और उसे इनक्यूबेटर में रखना पड़ा. बिजली की क़िल्लत और बार-बार कटौती से स्थिति और गम्भीर हो रही थी.

‘समर्थन व जीने की राह’

नादिया की व्यथा ग़ाज़ा में माताओं व गर्भवती महिलाएँ के सामने मौजूद असीम कठिनाइयाँ उजागर करती है. साथ ही, माँग के बोझ तले दबी स्वास्थ्य सेवाओं एवं संसाधनों की कमी पर प्रकाश डालती है. 

युद्ध, विस्थापन, भुखमरी, और स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुँच के कारण समय से पहले प्रसव और गर्भपात के मामलों में तेज़ी आई है.

UNFPA द्वारा ग़ाज़ा और पश्चिमी तट में कमज़ोर महिलाओं को महत्वपूर्ण राहत सहायता प्रदान की जा रही हैं. इनमें नक़दी सहायता भी शामिल है, ताकि वे अपनी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा कर सकें और आवश्यक सेवाओं, ख़ासतौर पर स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सकें. 

यह विशेष रूप से उन 4,000 से अधिक गर्भवती महिलाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण है जो आगामी कुछ महीनों में बच्चों को जन्म देने वाली हैं. साथ ही यह लिंग-आधारित हिंसा के उन पीड़ितों के लिए भी अहम है, जिनके पास सहायता के लिए विकल्पों का अभाव है.

नादिया, नक़दी सहायता मिलने से पहले डेढ़ घंटे का सफ़र करके अपने बेटे से मिलने अस्पताल जाती थीं. जब वो थोड़ी-बहुत रक़म बचा पातीं, तो टैक्सी या गधा-गाड़ी में सफ़र करने के लिए किराए की बचत कर पाती थीं. 

वर्तमान में इसमें लगभग 10 डॉलर किराया लगता था, जो युद्ध से पहले मात्र एक डॉलर में हो जाता था. अस्पताल में सोना लगभग असम्भव था क्योंकि वह पहले से ही मरीज़ों व सुरक्षा की तलाश में आए लोगों के कारण पूरा भरा था.

उन्होंने बताया, “UNFPA वाउचर से अब मैं टैक्सी का किराया दे पाती हूँ, डायपर ख़रीद सकती हूँ व अन्य आवश्यक ज़रूरतें पूरी कर पाती हूँ.” 

‘आशा की किरण’

ग़ाज़ा के आधे से अधिक अस्पताल बन्द हो चुके हैं. जब भी पहुँच हासिल होती है और संसाधन उपलब्ध होते हैं, तो UNFPA, काम कर रहे 12 अस्पतालों में चिकित्सा आपूर्ति, गरिमा एवं स्वच्छता किट, दवाइयाँ तथा उपकरण प्रदान करता है.

जनवरी 2024 से, UNFPA की नक़दी सहायता कार्यक्रम ने इसराइल के क़ब्ज़े वाले फ़लस्तीनी क्षेत्र में 12 हज़ार से अधिक महिलाओं तक सहायता पहुँचाई है, जिसमें लिंग आधारित हिंसा के पीड़ितों, गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं को प्राथमिकता दी गई है. 

विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) के साथ साझेदारी के ज़रिए, यह धनराशि पारम्परिक तरीक़ों व मोबाइल भुगतान विधियों द्वारा वितरित की जा रही है.

नादिया कहती हैं, “मैं हताश थी और यह मदद मेरे लिए जीवनरक्षक साबित हुई. अब मैं अपने बेटे को देख सकती हूँ, उसे गले लगा सकती हूँ और उसके साथ समय बिता सकती हूँ. मुझे उम्मीद है कि जब ये तकलीफ़ भरे हालात ख़त्म होंगे, तो मैं ग़ाज़ा से बाहर जाकर, अपने बेटे का उचित इलाज करा सकूंगी.”

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