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नए तापमान रिकॉर्ड की ओर बढ़ रही है दुनिया, WMO की चेतावनी

नए तापमान रिकॉर्ड की ओर बढ़ रही है दुनिया, WMO की चेतावनी

यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी ने बुधवार को वैश्विक तापमान रुझानों पर केन्द्रित अपना नया विश्लेषण जारी किया है.

इसके अनुसार अगले पाँच वर्ष के दौरान कम से कम एक साल में, पूर्व-औद्योगिक काल के स्तर की तुलना में वार्षिक औसत वैश्विक तापमान के 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार करने की सम्भावना क़रीब 80 फ़ीसदी है.

यूएन एजेंसी की उपमहासचिव को बैरेट ने आगाह किया कि 1.5 डिग्री के स्तर को अस्थाई तौर पर पार करने की आवृत्ति बढ़ने की सम्भावना है. इस स्तर को कई बार किसी एक महीने के दौरान पहले ही पार किया जा चुका है.

उन्होंने स्पष्ट किया कि अस्थाई तौर पर औसत तापमान का इस सीमा के पार जाने का अर्थ यह नहीं है कि पेरिस समझौते में उल्लिखित 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य हमेशा के लिए पहुँच से बाहर हो चुका है. इसका अर्थ अगले कई दशकों में तापमान में दीर्घकालिक वृद्धि से है.

वर्ष 2024 से 2028 के दौरान, वैश्विक औसत निकट सतह तापमान, 1850-1900 की अवधि की तुलना में 1.1 डिग्री से 1.9 डिग्री अधिक होने की सम्भावना जताई गई है.

WMO के वैश्विक वार्षिक से दशकीय अपडेट के अनुसार, इस बात की सम्भावना 47 प्रतिशत है कि इन पाँच वर्षों की अवधि में औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक पहुँच जाए. 

यूएन विशेषज्ञों का कहना है कि तापमान में यह उछाल आने की आशंका वर्ष 2015 के बाद से ही बढ़ रही है, जब इसकी प्रायिकता को क़रीब शून्य माना गया था. वहीं 2017 से 2021 के दौरान इस सीमा को पार करने की सम्भावना 20 फ़ीसदी थी, जोकि 2023 से 2027 के लिए बढ़कर 66 प्रतिशत पर पहुँच गई.

विनाशकारी प्रभावों की आशंका

यूएन एजेंसी की वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इन आँकड़ों के पीछे एक कटु वास्तविकता है कि पेरिस समझौते में तय किए गए लक्ष्यों को पाने से हम दूर हैं. 

को बैरेट ने देशों की सरकारों से आग्रह किया है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में कटौती के लिए और प्रयास किए जाने होंगे. चरम मौसम घटनाओं की एक बड़ी क़ीमत हज़ारों अरबों डॉलर के आर्थिक नुक़सान और लाखों प्रभावित ज़िन्दगियों से चुकानी पड़ रही है. साथ ही पर्यावरण और जैवविविधता को बड़ी हानि पहुँचती है.

वर्ष 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में देशों की सरकारों ने दीर्घकालिक वैश्विक औसत तापमान को पूर्व-औद्योगिक काल के स्तर की तुलना में 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने का संकल्प व्यक्त किया था. 

साथ ही, कहा गया था कि इस सदी के अन्त तक इसे 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के लिए क़दम उठाए जाएंगे. वैज्ञानिक समुदाय ने बार-बार आगाह किया है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान वृद्धि की स्थिति में गहन जलवायु असर देखने को मिलेंगे और चरम मौसम घटनाएँ बढ़ेंगी.

वैश्विक तापमान में वृद्धि के मौजूदा स्तर पर ही, अधिक संख्या में ताप लहरें, अत्यधिक वर्षा, सूखे समेत अन्य विनाशकारी जलवायु प्रभाव नज़र आ रहे हैं. जमे हुए जल की चादर की मात्रा घट रही है, समुद्री जलस्तर में बढ़ोत्तरी हो रही है और महासागरों का तापमान बढ़ रहा है.

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