संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि दुनिया भर के देश, केवल एकजुट होकर ही बहुपक्षीय समर्थन का लाभ उठा सकते हैं और समृद्धि को एक वास्तविकता बना सकते हैं. उन्होंने गुरूवार, 12 सितम्बर को दक्षिण-दक्षिण सहयोग दिवस के अवसर पर कहा है कि इस दिन दुनिया, विकासशील देशों के दरम्यान एकता व एकजुटता की रूपान्तरकारी शक्ति का जश्न मनाती है.
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस दिवस पर अपने वीडियो सन्देश में ज़ोर देकर यह भी कहा है कि दक्षिण-दक्षिण सहयोग, वैश्विक विषमताओं से निपटने में मदद के लिए, धनी देशों की ज़िम्मेदारी को कम नहीं करता है.
“मगर सभी के लिए एक बेहतर भविष्य बनाने की ख़ातिर, तिहरे सहयोग के साथ-साथ मज़बूत दक्षिण-दक्षिण साझेदारियाँ बहुत अहम हैं.”
उन्होंने कहा कि इस तरह की साझेदारियाँ एक ऐसे न्यायसंगत और समावेशी वैश्विक वित्त व्यवस्था का रास्ता साफ़ कर सकते हैं जो विकासशील देशों के सामने दरपेश चुनौतियों का मुक़ाबला करने में मदद करे.
इन साझेदारियों से सतत विकास के लिए, डिजिटलीकरण, डेटा और विज्ञान पर आधारित समाधानों की शक्ति का लाभ उठाने में मदद मिल सकती है.
इन साझादारियों से, आज और भविष्य की पीढ़ियों के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनने, सहनशीलता विकसित करने और महिलाओं व युवजन को मज़बूत करने में मदद मिल सकती है.
यूएन प्रमुख ने कहा कि सितम्बर में हो रहा भविष्य शिखर सम्मेलन, दक्षिण-दक्षिण व तिहरे सहयोग के लिए हमारी प्रतिबद्धता को फिर से पुष्ट करने, एकजुटता को अपनाने और परस्पर सहयोग का एक अवसर है.
क़ाबिल ग़ौर शक्ति का जश्न
यूएन महासभा अध्यक्ष फ़िलिमॉन यैंग ने दक्षिण-दक्षिण सहयोग दिवस पर यूएन मुख्यालय में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में कहा कि यह दिन, वैश्विक दक्षिण के देशों के दरम्यान एकजुटता की शक्ति व सम्भावना को याद दिलाने का एक मौक़ा है. साथ ही यह दिन दक्षिण-दक्षिण सहयोग की क़ाबिले ग़ौर शक्ति का जश्न मनाने का एक अवसर भी है.
उन्होंने कहा कि इस विचार के पीछे यह शक्तिशाली सिद्धान्त है: वो ये कि वैश्विक दक्षिण के देशों में, एक साथ मिलकर काम करने से, अपने भाग्य की डोर अपने हाथों में लेने, अपनी सामाजिक-आर्थिक प्रगति, की क्षमता और संसाधन मौजूद है, और ये भी कि वो साझा चुनौतियों का सामना करने के लिए कन्धे से कन्धा मिला सकते हैं.
महासभा अध्यक्ष फ़िलिमॉन यैंग ने कहा कि वैश्विक दक्षिण के देशों का एक साझा इतिहास रहा है, उनके पास अनोखे अनुभव हैं, और ना केवल असरदार बल्कि सतत समाधान विकसित करने के लिए, सामाजिक-आर्थिक सन्दर्भ भी उनके पास है.
विकासशील देशों के दरम्यान तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देने और उस पर अमल करने के लिए 1978 में अपनाए गई ब्यूनस आयर्स कार्रवाई योजना (BAPA) में, आपसी समर्थन की ये भावना नज़र आती है.
उन्होंने कहा कि इस वर्ष इस दिवस की थीम – “A Better Tomorrow with South-South Cooperation” बहुत सामयिक और तात्कालिक है. यह एक ऐसा समय है जब हम टिकाउ विकास के 2030 एजेंडा की मंज़िल की तरफ़ आधे पड़ाव पर पहुँच चुके हैं, मगर सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के रास्ते में कामयाबी असमान रही है.
वैश्विक दक्षिण के देश विशालकाय चुनौतियों का सामना कर रहे हें, जिनमें जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, कोविड-19 महामारी के प्रभाव, और भारी-भरकम क़र्ज़ दबाव प्रमुख हैं. “आज के दौर में दरपेश वैश्विक संकटों के मद्देनज़र, एक ऐसी सामूहिक कार्रवाई की ज़रूरत है जो चुनौतियों की ही तरह, गतिशिल व सहनसक्षम हो.”
भारत, ब्राज़ील, दक्षिण अफ़्रीका का योगदान
दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिए यूएन कार्यालय (UNOSSC) की निदेशक दीमा अल ख़तीब ने इस विशेष कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए, एक बेहतर व ख़ुशहाल भविष्य सुनिश्चित करने की ख़ातिर, भौगोलिक सीमाओं की परवाह नहीं करते हुए, एकजुटता व सहयोग की भावना को आगे बढ़ाने की महत्ता पर ज़ोर दिया.
उन्होंने कहा कि दुनिया 2030 विकास एजेंडा का रास्ते पर आधे पड़ाव पर पहुँच चुकी है, मगर सतत विकास लक्ष्यों में से केवल 17 प्रतिशत की प्राप्ति की राह पर हैं.
उन्होंने कहा कि दुनिया वर्तमान में अनेक तरह के बढ़ते संकटों का सामना कर रही है जिनमें टकराव और युद्ध, भूराजनैतिक व व्यापार तनाव शामिल हैं और जलवायु परिवर्तन के निरन्तर प्रभावों ने, टिकाऊ विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए बड़ी बाधा उत्पन्न कर दी है.
दुनिया के सबसे निर्बल हालात वाले लोगों को इन संकटों की मार का दंश सबसे अधिक झेलना पड़ रहा है.
हालाँकि दीमा अल ख़तीब ने, सहनशीलता निर्माण, नवाचार, और सहकारिता के क्षेत्र में, विकासशील देशों की प्रगति को उल्लेखनीय क़रार दिया, जिससे ये बात साबित होती है कि दक्षिण-दक्षिण व तिहरे सहयोग के ज़रिए अन्तरराष्ट्रीय एकजुटता और वैश्विक साझेदारी को सक्रिय करके, टिकाई विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में तेज़ी लाई जा सकती है.
इस सन्दर्भ में उन्होंने भारत की तरफ़ से संयुक्त राष्ट्र के साथ साझेदारी में, 30 देशों में टिकाऊ विकास को समर्थन देने के लिए चलाए जा रही 63 परियोजनाओं का ख़ास ज़िक्र किया.
दीमा अल ख़तीब ने बताया कि भारत ने इन परियोजनाओं के लिए क़रीब साढ़े पाँच करोड़ डॉलर की रक़म का योगदान दिया है जोकि टिकाऊ विकास के लिए बहुत अहम साबित हुआ है.
उन्होंने बताया कि भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ़्रीका के समर्थन से चलाए जा रहे – IBSA कोष ने भी दुनिया भर में बहुत से लोगों के जीवन में सुधार लाने के लिए, दक्षिण-दक्षिण व तिहरे सहयोग की शक्ति को साबित किया है.
भारत का विकास योगदान
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि राजदूत पर्वथानेनी हरीश ने, भारत दक्षिण-दक्षिण सहयोग दिवस को सम्बोधित करते हुए ध्यान दिलाया कि संयुक्त राष्ट्र के साथ विकास साझेदारी में देश जो विकास योगदान कर रहा है वो उसके सिद्धान्त – वसुदैव कुटुम्बकम से प्रेरित है, जिसका अर्थ है कि पूरी दुनिया एक परिवार है.
राजदूत हरीश ने कहा कि आपस में जुड़ी-गुँथी आज की दुनिया अनेकानेक ऐसी चुनौतियों से घिरी जो किन्हीं सीमाओं को नहीं जानतीं इसलिए ऐसे में देशों के बीच सहयोग किया जाना बहुत अहम है.
उन्होंने बताया कि वर्ष 2017 से, यूएन के साथ विकास साझेदारी कोष को, भारत का लगभग 15 करोड़ डॉलर का योगदान पहले ही 60 देशों में 82 परियोजनाओं को वित्तीय समर्थन दे चुका है और विकास के लिए, देश की प्रतिबद्धता को साबित करता है.
राजदूत हरीश ने याद दिलाया कि आज के समय में मौजूद चुनौतिया विशाल और जटिल हैं, जबकि संसाधन सीमित हैं. इस सन्दर्भ में, भारत-यूएन विकास साझेदारी कोष और IBSA कोष जैसे कार्यक्रम, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के लिए उम्मीद की मशाल और प्रेरणा के प्रतीक हैं.
इनसे साबित होता है कि जब देश विश्व को एक बेहतर स्थान बनाने के लिए, एकजुट होकर, साझा नज़रिए और संकल्प के साथ काम करते हैं तो बहुत ख़ास प्रगति हासिल की जा सकती है.
भारतीय राजदूत ने इस कार्य में यूएन एजेंसियों के सहयोग का शुक्रिया अदा करते हुए, भारत-यूएन विकास साझेदारी से सबक़ लेने और सभी के लिए एक बेहत भविष्य बनाने की ख़ातिर साथ मिलकर काम करने का आहवान भी किया.