शान्तिरक्षकों के अथक प्रयासों में युद्धविराम समझौतों की निगरानी से लेकर नागरिकों की रक्षा, प्रमुख संरचनाओं का पुनर्निर्माण और राष्ट्रों व समुदायों को युद्ध से शान्ति की ओर ले जाने के लिए, चुनावी प्रक्रिया में मदद करना शामिल है.
जब हम शान्ति स्थापना की बात करते हैं, तो ज़ेहन में मध्यस्थता, सन्धियाँ और अन्तरराष्ट्रीय क़ानूनों की तस्वीर उभरती है. लेकिन शान्तिरक्षक, विश्व के कुछ सर्वाधिक नाज़ुक स्थानों में शान्ति बहाल करने के लिए विभिन्न प्रकार के तरीक़े अपनाते हैं. शान्तिरक्षकों के इस अन्तरराष्ट्रीय दिवस पर, हम ऐसे पाँच ग़ैर-परम्परागत तरीक़ों पर नज़र डाल रहे हैं, शान्तिरक्षक जिनका प्रयोग, समुदायों की रक्षा के लिए करते हैं.
1. हैलीकॉप्टर
सम्पूर्ण अफ़्रीका, अमेरिका, मध्य-पूर्व, योरोप और एशिया में, भौगोलिक बाधाओं को पार करने व विविध परिदृश्यों में समुदायों को मदद देने के लिए, शान्तिरक्षक, हैलीकॉप्टरों का प्रयोग करते रहे हैं.
हैलीकॉप्टरों को शान्तिरक्षा मिशनों में विमानन की महत्वपूर्ण सुविधाओं के तौर पर गिना जाता है, जिसके कई कारण हैं – इनसे शान्तिरक्षकों को उन दूर-दराज़ के गाँवों तक पहुँचना आसान हो जाता है, जहाँ सड़क या जल मार्ग से पहुँचना सम्भव नहीं होता. इनके ज़रिए, आपात स्थिति के दौरान तात्कालिक जवाबी कार्रवाई व निकासी सम्भव होती है, ज़रूरतमन्द समुदायों को आवश्यक आपूर्ति एवं राहत सहायता प्रदान की जाती है, और निगरानी तथा ख़ुफ़िया जानकारी एकत्र करने के लिए हवाई निगरानी सुविधा प्राप्त होती है. कुछ मामलों में, सशस्त्र हैलीकॉप्टर, हथियारबन्द समूहों के लिए चेतावनी का काम करते हुए, रोकथाम में असरदार पाए जाते हैं.
इसके अलावा, चुनावों के दौरान आवश्यक सामग्री पहुँचाकर, यह सुनिश्चित करने में , हैलीकॉप्टरों की अहम भूमिका रही है कि दूरदराज़ के स्थानों में रह रहे लोग, देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग ले सकें. शान्तिरक्षक कभी-कभार तो, दूरगामी जगहों पर पहले हैलीकॉप्टरों व बाद में पैदल या बैलगाड़ियों पर चलकर, लोगों तक समय पर सामग्री पहुँचाने के लिए बहुत मशक्कत करते हैं.
उनकी यह कर्मठता, लोगों को आवश्यक सहायता व सुरक्षा प्रदान करने में बहुत अहमियत रखती है. वर्तमान में विभिन्न शान्तिरक्षा मिशनों में 81 हैलीकॉप्टर तैनात हैं. संयुक्त राष्ट्र का चिह्न, हैलीकॉप्टरों के बाहरी व निचले हिस्से पर स्पष्ट दिखाई देता है – यह संकेत देने के लिए कि वो एक शान्तिरक्षा या मानवतावादी क़ाफ़िले का हिस्सा हैं.
लेकिन इसके बावजूद, संयुक्त राष्ट्र के हैलीकॉप्टरों पर हमले होते हैं – जिससे स्पष्ट होता है कि इन मिशनों में सुरक्षा स्थिति कितनी नाज़ुक होती है और शान्तिरक्षक किस तरह हर रोज़ अपने जीवन को ख़तरे में डालकर काम करते हैं. साल 2024 के शुरू में, काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य ((DRC) के पूर्वी प्रान्त उत्तरी कीवू में मेडिकल निकासी कर रहे एक हैलीकॉप्टर पर हथियारबन्द गुटों ने हमला किया था.
2. भारी मशीनरी
वास्तव में शान्तिरक्षा अभियानों के तहत, शान्ति स्थापना के लिए लोगों व उनकी ज़रूरतों पर ध्यान देना होता है. संघर्षरत देशों में, स्कूलों, चिकित्सा सुविधाओं, सड़कों, पुलों जैसे बुनियादी ढाँचों की क्षति या अभाव से, स्थाई शान्ति बनाने में समुदायों की मदद करने के रास्ते में बाधा आती है. इसीलिए, शान्तिरक्षा अभियानों में इंजीनियर और सैपर जैसे विशेषज्ञों की, युद्ध व प्राकृतिक आपदाओं के बाद, पुनर्निर्माण व पुनर्बहाली में लोगों की मदद करने में अहम भूमिका होती है.
दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र मिशन के लिए काम करने वाले इंजीनियर कैप्टन तैमूर अहमद ने बताया, “हम लोगों को गोलियों से नहीं, बल्कि बाढ़ से बचा रहे हैं.” उनकी टीम ने निकासी व अन्य निर्माण उपकरणों की मदद से, बेंतिऊ में विनाशकारी बाढ़ के कारण फँसे सैकड़ों लोगों की मदद के लिए तटबन्ध बनाए. साथ ही उन्होंने, तटबन्धों के किनारे सड़कें बनाकर यह भी सुनिश्चित किया कि आपदा के कारण विस्थापित लोगों तक आवश्यक मानवीय राहत आपूर्ति पहुँचाई जा सके.
दक्षिण सूडान की राजधानी जूबा के बाहर, शिक्षा तक सीमित पहुँच रखने वाले, ज़्यादातर खेती पर निर्भर स्थानीय समुदाय के लिए, शान्तिरक्षकों ने स्कूल में नई कक्षाएँ, फ़ुटबॉल का मैदान और खेल का मैदान बनाया. डीआरसी में, शान्तिरक्षकों ने उत्तरी कीवू में इबोला के उपचार के लिए एक चिकित्सा केन्द्र का निर्माण किया. साथ ही, देश में इस बीमारी के चरम प्रकोप के समय सुविधाएँ पहुँचाने के लिए, सड़क की मरम्मत व विस्तार किया.
3. ‘सैटेलाइट इमेजिंग’
पिछले दो दशकों में, संघर्षरत क्षेत्रों के बेहतर अवलोकन के लिए शान्तिरक्षा मिशनों में ‘सैटेलाइ इमेजिंग’ का उपयोग किया जाता रहा है, जिससे स्थिति की बेहतर निगरानी सम्भव हुई है. शान्तिरक्षा में निगरानी एवं भू-स्थानिक विशेषज्ञ, सैन्य गतिविधियों, विस्थापन के रुझान एवं प्रवाह, सम्भावित जोखिम तथा सशस्त्र गुटों की गतिविधियों व प्राकृतिक आपदाओं का असर नापने के लिए ‘सैटेलाइट इमेजिंग’ का उपयोग करते हैं.
इस अहम जानकारी के ज़रिए, उन्हें सूचित निर्णय लेने, प्रभावी गश्त योजनाएँ बनाने व उचित तरीक़े से कार्रवाई का समन्वय करने में मदद मिलती है. ‘सैटेलाइट इमेजरी’, शान्तिरक्षा के लिए उपलब्ध सबसे नवीन उपकरणों में से एक है, जो कई मिशनों में जानकारी बढ़ाने में मदद करता है. ख़ासतौर पर विशाल, दूरस्थ व कठिन इलाक़ों वाले देशों में. दुर्गम क्षेत्रों के लिए वास्तविक समय में इमेजरी, शान्तिरक्षकों को किसी भी नुक़सान या ज़रूरत की सीमा का अन्दाज़ा लगाकर, उसके अनुसार सहायता की प्राथमिकता तय करने में सक्षम बनाती है.माली में तैनात बहुआयामी एकीकृत स्थिरीकरण मिशन को उपग्रह चित्रों के ज़रिए, देश के उत्तर में तस्करों के मार्गों की पहचान करने में मदद मिली थी.
डीआरसी में, हथियारबन्द गुटों की गतिविधियों पर नज़र रखने, अवैध खनन गतिविधियों की निगरानी करने तथा नागरिकों पर संघर्ष के प्रभाव का आकलन करने के लिए भी इमेजरी का उपयोग किया जाता है. दक्षिण सूडान में, प्राकृतिक आपदा तैयारियों की निगरानी, प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई और पुनर्बहाली से लेकर, विस्थापन के रुझान और सीमा पार आन्दोलनों पर नज़र रखने तक, कई चीज़ों के लिए उपग्रह डेटा का उपयोग किया जाता है. साइप्रस में ग्रीक और तुर्की साइप्रस समुदायों के बीच युद्धविराम समझौते की निगरानी के लिए तैनात, संयुक्त राष्ट्र शान्तिरक्षा अभियान, बफ़र ज़ोन में गतिविधियों की निगरानी के लिए डेटा का उपयोग करता है.
4. माइन डिटेक्टर
दुनिया भर में बारूदी सुरंगों की पहचान करने वाले माइन डिटेक्टरों की अनगिनत लोगों की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है. अंगोला से कम्बोडिया तक, बारूदी सुरंगें युद्धों की भयावह विरासत बनी हुई हैं, जिनसे ज़्यादातर आम नागरिक या तो मारे जाते हैं या अपंग हो जाते हैं. आज, लगभग 70 देशों और क्षेत्रों में बारूदी सुरंगें मौजूद हैं. यूएन माइन एक्शन सेवा, इन सुरंगों का पता लगाकर, उन्हें नष्ट करने के लिए शान्तिरक्षा अभियानों समेत लगभग 20 देशों व क्षेत्रों में deminers तैनात करती है.
बारूदी सुरंगों को नष्ट करने से, न केवल ज़िन्दगियों व अंगों की रक्षा होती है, बल्कि वो क्षेत्र दोबारा सुरक्षित व उत्पादक बनता है, जिससे स्थानीय समुदाय उसे खेती करने, स्कूल या अस्पताल बनाने के लिए इस्तेमाल करके, अपने जीवन व आजीविकाओं का पुनर्निर्माण कर सकते हैं. दुर्भाग्यवश, इन बारूदी सुरंगों को साफ़ करने का काम बहुत जोखिम भरा होता है, जिसमें ये काम करने वाले विशेषज्ञों की जान भी जा सकती है. हाल ही के वर्षों में, अफ़ग़ानिस्तान, दक्षिण सूडान, सीरिया समेत कई जगहों पर बारूदी सुरंगे साफ़ करने वालों की मौत होने के कई मामले सामने आए हैं.
तो ऐसे में ‘डीमाइनर’ किस प्रकार अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं? इसके लिए वो व्यक्तिगत सुरक्षा वर्दियाँ पहनते हैं, जैसेकि ब्लास्ट-निरोधी पोशाकें, हैलमेट, दस्ताने व जूते. साथ ही वो मैटल डिटैक्टर और बारूदी सुरंगें नष्ट करने वाले वाहनों की मदद से, बारूदी सुरंगों की पहचान करके, उन्हें नष्ट करते हैं. ये डिटैक्टर, विद्युत चुम्बकीय तरंगों की मदद से, धातु का पता लगाकर, भूमि में दबी हुई सुरंगों की खोज करते हैं.
हालाँकि इन मैटल डिटैक्टरों की क्षमता भी सीमित होती है, लेकिन जोखिम घटाने में इनकी भूमिका बहुत अहम रही है. 1990 के दशक से लेकर अब तक, साढ़े 5 करोड़ से अधिक बारूदी सुरंगों को नष्ट किया जा चुका है, जिससे 30 से अधिक देशों को इन बारूदी सुरंगों से मुक्ति मिली है और हताहतों की संख्या में बहुत कमी आई है.
5. रेडियो
वर्तमान समय में जानकारी पाने के लिए, आपके ज़हन में सबसे पहले शायद रेडियो का नाम न आए, लेकिन रेडियो आज भी शान्तिरक्षा अभियानों की मौजूदगी वाले क्षेत्रों समेत, दुनिया के कई स्थानों में संचार का शक्तिशाली साधन माने जाते हैं.
1980 के दशक से ही रेडियो ने कई शान्तिरक्षा अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. यहाँ तक कि वर्तमान में तीन शान्तिरक्षा अभियानों ने अपने रेडियो स्टेशन भी स्थापित किए हैं – दक्षिण सूडान में रेडियो मिराया, काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) में रेडियो ओकापी और मध्य अफ़्रीकी गणराज्य में गुइरा एफ़एम.
रेडियो के कार्यक्रम निर्माता व संचार विशेषज्ञों पर कार्यरत शान्तिरक्षकों, रेडियों को अहम समाचार, जोखिमों की प्रारम्भिक चेतावनी, या फिर महत्वपूर्ण मुद्दों पर शिक्षाप्रद चर्चाओं के लिए इस्तेमाल करते हैं, जिससे स्थानीय समुदायों को सूचित निर्णय लेने में मदद मिल सके. साथ ही, वो स्थानीय लोगों की आवाज़ें व दृष्टिकोण के प्रसार के लिए अहम मंच प्रदान करते हैं, जिससे अक्सर बँटे हुए समुदायों के बीच सुलह-समाधान करवाने में आसानी होती है.
क्या वजह है कि रेडियो, अख़बारों, टैलीवीज़न या इंटरनैट से बेहतर काम करता है? रेडियो रिसीवर और फ़्रीक्वैन्सी, दूरदराज़ के इलाक़ों में भी किफ़ायती दामों पर, आसानी से उपलब्ध होते हैं. न्यूनतम साक्षरता दरों वाले इलाक़ों में रेडियो कार्यक्रम विस्तृत श्रोताओं तक पहुँचते हैं, जिससे वो जानकारी साझा करने का अधिक समावेशी साधन बन जाते हैं. रेडियो के माध्यम से, स्थानीय भाषाओं व वास्तविक समय में जानकारी उपलब्ध करवाना सम्भव होता है.
रेडियो की व्यापक पहुँच के मद्दनेज़र, यह ग़लत सूचनाओं व लोगों की सुरक्षा व स्वास्थ्य से सम्बन्धित अफ़वाहों को दूर करने का एक उपयुक्त साधन भी बन गया है. कोविड-19 महामारी के दौरान, दक्षिण सूडान के दो-तिहाई हिस्से तक पहुँचने वाले रेडियो मिराया ने, स्थानीय आबादी के बीच सामाजिक दूरी के विरोध से निपटने के लिए अनेक कार्यक्रम चलाए. डीआरसी में, रेडियो ओकापी ने देश की सरकार के साथ मिलकर, लगभग 2.2 करोड़ बच्चों को उनके घर में ही ‘ऑन-एयर’ शिक्षा प्रदान की – जिसमें आवश्यक फ्रैंच, गणित व पठन योग्य पाठों को प्रसारित करना शामिल था.