‘जैव विविधता’ का अर्थ क्या है और यह महत्वपूर्ण क्यों है?
सरल शब्दों में, जैव विविधता का तात्पर्य, पृथ्वी पर मौजूद सभी प्रकार के जीवन से है. जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (CBD) में इसका वर्णन, “प्रजातियों के भीतर, प्रजातियों के बीच और पौधों, जानवरों, बैक्टीरिया व कवक समेत पारिस्थितिक तंत्र की विविधता” के रूप में किया गया है. ये तीन प्रारूप, साथ मिलकर, पृथ्वी पर जीवन की समस्त जटिलताओं का पर्याय हैं.
प्रजातियों की विविधता, वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बनाए रखती है, और मनुष्यों को प्राकृतिक रूप से, भोजन, स्वच्छ पानी, दवा एवं आश्रय सहित जीवित रहने के लिए आवश्यक सभी वस्तुएँ प्रदान करती है. वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का आधे से अधिक हिस्सा, पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर है. एक अरब से अधिक लोग अपनी आजीविका के लिए वनों पर निर्भर हैं.
जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ हमारी सबसे मज़बूत प्राकृतिक सुरक्षा है. समस्त कार्बन उत्सर्जन के आधे से अधिक भाग को अवशोषित करके, भूमि और महासागर के पारिस्थितिकी तंत्र, “कार्बन अवशोषक” के रूप में कार्य करते हैं.
जैव विविधता संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र की साहसिक योजना को लागू करने के लिए वर्ष का पहला बड़ा प्रयास, 23 से 25 जनवरी के बीच स्विटजरलैंड की राजधानी बर्न शहर में होगा.
यूनेप के क़ानूनी विभाग की निदेशक पेट्रीसिया कामेरी-एमबोटे ने सम्मेलन के बारे में जानकारी देते हुए आगाह किया कि जैव विविधता की रक्षा के प्रयासों में लगे विभिन्न संगठनों के सामने मौजूद सबसे “गम्भीर चुनौती” समन्वय की कमी है, जिसे तत्काल दूर करने की आवश्यकता है – “क्योंकि हम 2050 तक एक ऐसे विश्व के निर्माण के प्रयास कर रहे हैं, जो प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर सके.”
सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य होगा, दुनिया भर में हो रही विभिन्न पहलों के मेल से समस्या का हल निकालना.
क्या यह संकट गम्भीर है?
हाँ. यह बहुत गम्भीर स्थिति है और इससे निपटने की तत्काल ज़रूरत है.
अगर उपर्लिखित प्राकृतिक एवं भूमि समुद्री कार्बन अवशोषकों की बात की जाए, तो उनका क्षरण जारी है: उदाहरणों में, अमेज़ॉन के वनों की कटाई, और नमक दलदल व मैन्ग्रोव दलदल का ग़ायब होना शामिल है, जो कार्बन की बड़ी मात्रा सोख़ने का काम करते हैं. भूमि और समुद्र के उपयोग के हमारे तरीक़े, जैव विविधता हानि के सबसे बड़े कारकों में से एक हैं.
1990 के बाद से, अन्य उपयोगों के लिए भूमि के परिवर्तन के कारण लगभग 42 करोड़ हैक्टेयर वन नष्ट हो गए हैं. कृषि विस्तार, वनों की कटाई, वन क्षरण तथा वन्य जैव विविधता हानि का मुख्य चालक बना हुआ है.
प्रजातियों में गिरावट के अन्य प्रमुख चालकों में, अत्यधिक मत्स्य पालन व आक्रामक विदेशी प्रजातियों (ऐसी प्रजातियाँ जो अपने प्राकृतिक आवास से बाहर के पर्यावरण में प्रवेश या स्वयं को स्थापित कर चुकी हैं, जिससे स्थानीय प्रजातियों की गिरावट या विलुप्ति का ख़तरा हो तथा पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़े) का आगमन शामिल है.
यूनेप के अनुसार यह गतिविधियाँ, पौधों और जानवरों की लगभग दस लाख प्रजातियों को विलुप्ति के कगार पर धकेल रही हैं. इनमें गम्भीर रूप से लुप्तप्राय, दक्षिण चीनी बाघ और इंडोनेशियाई ऑरंगुटान से लेकर, जिराफ़ और तोते जैसे कथित “आम” जानवर व पौधे, तथा शाहबलूत वृक्ष, नागफ़नी व समुद्री शैवाल शामिल हैं. डायनासोर की विलुप्ति के बाद, यह सबसे बड़ी जीवन की क्षति मानी जा सकती है.
बढ़ते प्रदूषण के साथ-साथ, प्राकृतिक आवास के क्षरण और जैव विविधता हानि का दुनिया भर में समुदायों पर गम्भीर प्रभाव पड़ रहा है. जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, उपजाऊ घास के मैदान, रेगिस्तान में बदल रहे हैं, और समुद्र में, सैकड़ों तथाकथित “मृत क्षेत्र” बन रहे हैं, जहाँ कदाचित ही कोई जलीय जीवन बचता है.
जैव विविधता हानि, पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यशैली को प्रभावित करती है, जिससे प्रजातियाँ पर्यावरण में बदलाव से तालमेल बैठाने में सक्षम नहीं हो पातीं, और प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं. यदि किसी पारिस्थितिकी तंत्र में जीवों की व्यापक विविधता है, तो सम्भावना रहती है कि उन सभी पर समान प्रभाव नहीं पड़ेगा; यदि एक प्रजाति नष्ट होती है, तो उसी प्रकार की दूसरी प्रजाति उसकी जगह ले सकती है.
जैव विविधता योजना क्या है?
आधिकारिक तौर पर कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क नामक यह योजना, संयुक्त राष्ट्र के द्वारा संचालित एक ऐतिहासिक समझौता है, जिसे 2030 तक प्रकृति पर वैश्विक कार्रवाई का मार्गदर्शन करने के लिए 196 देशों ने अपनाया था. इसका मसौदा, 2022 में चीन के कुनमिंग शहर और कैनेडा के मॉन्ट्रियल शहर में हुई विभिन्न बैठकों में तैयार किया गया था.
योजना का उद्देश्य, जैव विविधता के नुक़सान से निपटना, पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली व स्थानीय समुदाय के अधिकारों की रक्षा करना है. आदिवासी लोग, जैविक विविधता की हानि व पर्यावरणीय क्षरण से असमान रूप से पीड़ित हैं; उनके जीवन, अस्तित्व, विकास की सम्भावनाओं, ज्ञान, पर्यावरण एवं स्वास्थ्य स्थितियों को पर्यावरणीय क्षरण से ख़तरा है. साथ ही, बड़े पैमाने पर औद्योगिक गतिविधियों, विषाक्त अपशिष्ट, संघर्ष एवं मजबूरन प्रवासन के साथ-साथ, कृषि और निष्कर्षण के लिए वनों की कटाई जैसे भूमि-उपयोग व भूमि-आवरण में बदलाव से जोखिम खड़ा हो गया है.
प्रकृति की हानि रोकने और उलटने के लिए ठोस उपाय मौजूद हैं, जिसमें 2030 तक ग्रह के 30 प्रतिशत हिस्से और 30 प्रतिशत ख़राब पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण सुनिश्चित करना शामिल है (वर्तमान में 17 प्रतिशत भूमि और लगभग आठ प्रतिशत समुद्री क्षेत्र संरक्षित हैं). योजना में विकासशील देशों – (जोकि बातचीत के दौरान एक प्रमुख मुद्दा रहे) – और स्थानीय समुदायों के लिए वित्त बढ़ाने के प्रस्ताव भी शामिल हैं.
देशों को वैश्विक लक्ष्यों की महत्वाकांक्षा के अनुरूप, राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीतियाँ एवं कार्य योजनाएँ बनानी होंगी और राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारित या संशोधित करने होंगे.
इस वर्ष जैव विविधता की संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र और क्या करेगा?
“विश्व पर्यावरण संसद” के रूप में जाने जाने वाली संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA) की अगले महीने, नैरोबी स्थित संयुक्त राष्ट्र कार्यालय में बैठक होगी. इस आयोजन में, सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दों को उजागर करने और पर्यावरण के वैश्विक संचालन में सुधार लाने के लिए सरकारें, नागरिक समाज समूह, वैज्ञानिक समुदाय व निजी क्षेत्र एकजुट होते हैं. UNEA 2024 में, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता हानि और प्रदूषण पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा.
हालाँकि, मुख्य कार्यक्रम यानि संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन, अक्टूबर 2024 में कोलम्बिया में आयोजित किया जाएगा. यहाँ प्रतिनिधि इस बात पर विचार-विमर्श करेंगे कि भूमि व समुद्र की बहाली किस तरह की जाए, जिससे ग्रह की रक्षा तथा स्थानीय समुदायों के अधिकारों का सम्मान सम्भव हो.