उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय की पहाड़ियों में बसा उत्तरकाशी, कभी अपनी समृद्ध कृषि परम्परा के लिए प्रसिद्ध था. लेकिन हाल के वर्षों में किसानों का शहरों की ओर पलायन का सिलसिला, यहाँ की पहचान बनने लगा था.
इन ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी ढलानों पर खेती करने वाली पीढ़ियाँ, अब बेहतर जीवन के लिए शहरों का रुख़ करने लगी थीं.
लेकिन एक स्थानीय महिला किसान स्वतंत्रि बंधानी ने इन कठिन परिस्थितियों के बीच, वह देखा जो शायद अन्य लोगों ने नज़रअन्दाज़ कर दिया था: अपार सम्भावनाएँ.
स्वतंत्रि बंधानी ने टिकाऊ खेती पर दृढ़ विश्वास के साथ, अपने समुदाय की कृषि परम्परा को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया, जिससे समुदाय का जीवन ही बदल गया.
लाल चावल की ओर वापसी
स्वतंत्रि का सफ़र आरम्भ हुआ एक सामान्य से विचार से और वो था – लाल चावल की खेती की ओर वापिस लौटना. लाल चावल एक बेहद सहनसक्षम एवं पोषक फ़सल होती है, जो आधुनिक व्यावसायिक फ़सलों की खेती की ओर मुड़ने के बाद लगभग ग़ायब ही हो गई थी.
उन्होंने इसके लिए शुरुआत में स्वयं जैसे 30 किसानों को एकजुट किया, जो उनकी ही तरह उत्तरकाशी की कृषि परम्पराओं को पुनर्जीवित करने में विश्वास रखते थे.
स्वतंत्रि बताती हैं, “कई लोगों ने कहा कि हम पागल हैं जो कम उपज और अधिक देखभाल की आवश्यकता वाली फ़सलों में निवेश कर रहे हैं. लेकिन हमने हार नहीं मानी और स्वस्थ भोजन, सतत प्रथाओं एवं समुदाय के सशक्तिकरण का साझा दृष्टिकोण लेकर, इस समूह ने अपना काम जारी रखा.
जैविक खेती: परम्परा और प्रकृति का संगम
उनका मिशन था, जैविक खेती की ओर रुख़ करना. पारम्परिक खाद बनाने, और पीढ़ियों से चली आ रही विधियों का उपयोग करके, वो पूरी मेहनत से अपनी फ़सलों को संवारते रहे.
इस प्रक्रिया में मेहनत बहुत थी, और प्रारम्भिक उपज भी हतोत्साहित करने वाली थी – उच्च-उपज वाली चावलों की व्यवसायिक क़िस्मों से 30% कम.
लेकिन उन्होंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा और दीर्घकालिक लाभ पर ध्यान केन्द्रित किया. उनकी मेहनत रंग लाई. धीरे-धीरे 30 किसानों का यह छोटा समूह बढ़कर 300 का हो गया.
उत्तरकाशी के लाल चावलों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली. किसानों ने गर्व से इसे भारत के अन्तरराष्ट्रीय व्यापार मेले में प्रदर्शित किया, जहाँ उन्हें ‘एक ज़िला, एक उत्पाद’ (One District One Product) प्रतियोगिता में दूसरा स्थान हासिल हुआ.
मान्यता मिलने से उन्होंने अन्य लोगों की नज़र में भी अपनी जगह बनाई, जिससे उन्हें अपने बाज़ार का विस्तार करने में मदद मिली और अन्य किसानों भी इस आन्दोलन से जुड़ने की प्रेरणा मिली.
प्राकृतिक आपदाओं के बीच संघर्ष
उत्तरकाशी में खेती करना कोई आसान काम नहीं है. ऊँचाई वाले क्षेत्रों में खेती करना बहुत जोखिम भरा होता है. स्वतंत्रि बताती हैं, “इन पहाड़ी ढलानों पर काम करते हुए सूखा और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं का ख़तरा हमेशा बना रहता है. सीमान्त किसानों के रूप में, प्रकृति की चरम घटनाएँ हमारा संघर्ष परिभाषित करती हैं.”
लम्बे समय से प्राकृतिक आपदाओं के कारण स्थानीय किसानों की आजीविकाओं को ख़तरा रहा है. लेकिन प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना (PMFBY) जैसे सरकारी कार्यक्रमों के तहत उन्हें फ़सल बीमा जैसी आर्थिक सुरक्षा प्राप्त हुई, जो उनके लिए किसी जीवनरेखा से कम नहीं हैं.
इन योजनाओं के ज़रिए किसानों को फ़सल नष्ट होने की चिन्ता किए बिना, टिकाऊ तरीक़े अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.
महिला नेतृत्व, समुदायिक विकास
उत्तरकाशी में लाल चावल क्रान्ति के पीछे एक बड़ा सबक़ है कि जब महिलाओं के पास संसाधनों, प्रशिक्षण और अवसरों तक पहुँच होती है, तो वो दुनिया बदल सकती हैं. स्वतंत्रि के नेतृत्व ने न केवल खोई हुई फ़सल को पुनर्बहाल किया, बल्कि सैकड़ों परिवारों को आर्थिक स्थिरता प्रदान करने में मदद की.
वह कहती हैं, ”जब महिलाएँ नेतृत्व करती हैं, तो समुदाय फलते-फूलते हैं. हमने साबित कर दिया है कि टिकाऊ खेती हमारे भविष्य को सुरक्षित तथा हमारी विरासत को संरक्षित कर सकती है.”
आज उत्तरकाशी की लहलहाती लाल चावल की फ़सलें, उनके विश्वास और दृढ़ संकल्प का सबूत पेश करती हैं. स्वतंत्रि के शब्दों में: “जब हम साथ मिलकर खेती करते हैं, तो हम केवल फ़सलें नहीं उगाते, हम आने वाली पीढ़ियों के लिए उम्मीद भी उगाते हैं.”
कभी कठिनाइयों से घिरे ऐसे क्षेत्र में, एक महिला और उनके किसान समूह ने, दुनिया को दिखा दिया कि अवसरों तक उचित पहुँच हो तो महिलाएँ दुनिया बदला सकती हैं.