मानवीय सहायता एजेंसियों ने ग़ाज़ा सिटी में एक अन्य स्कूल पर इसराइल के एक और हमले की निन्दा की है, जिसमें विस्फोट को, 12 किलोमीटर दूर से देखा जा सकता था.
फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूएन सहायता एजेंसी – UNRWA के अनुसार, बुधवार को जिस स्कूल पर हमला किया गया, वो इसराइली हमलों का तीसरी बार निशाना था.
इससे पहले दिसम्बर और जुलाई में भी हमले हो चुके हैं. इस स्कूल का संचालन UNRWA ही करती है.
यूएन एजेंसी के महाआयुक्त फ़िलिपे लज़ारिनी ने कहा कि एक दिन पहले ग़ाज़ा सिटी के इस आश्रय स्थल में तब्दील किए गए स्कूल पर इसराइली हमले में अनेक बच्चे हताहत हुए हैं, कुछ बच्चों की तो जलकर मौत हो गई.
यूनीसेफ़ ने कहा है कि ग़ाज़ा पट्टी में गत अक्टूबर में युद्ध शुरू होने के समय से, विस्थापित लाखों लोगों को पनाह देने के लिए जिन स्कूलों को आश्रय स्थल में तब्दील किया गया, उनमें से आधे से भी अधिक स्कूलों को सीधे तौर पर इसराइली हमलों का निशाना बनाया गया है.
UNRWA के 10 में से 7 स्कूल इसराइली हमलों का निशाना बने हैं. उन हमलों में 500 से अधिक लोग मारे गए हैं और 1,700 से अधिक लोग घायल हुए हैं, जबकि ये लोगों को अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून के तहत संरक्षण प्राप्त था.
UNRWA का कहना है, “एक बार फिर, सुरक्षा की तलाश कर रहे लोगों को केवल मृत्यु और विध्वंस मिला. युद्ध का कोई भी पक्ष, स्कूलों और अन्य सिविल ढाँचे को युद्धक या सैन्य उद्देश्यों के लिए प्रयोग नहीं कर सकता है.”
ग़ाज़ा के स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि ग़ाज़ा में दस महीनों से भी अधिक समय के दौरान इसराइली हमलों में 40 हज़ार से फ़लस्तीनी मारे जा चुके हैं.
हर चीज़ की क़िल्लत
संयुक्त राष्ट्र के आपदा राहत समन्वय एजेंसी – OCHA ने बताया है कि क्लोरीन की इतनी मात्रा बची है जो केवल एक महीने काम आ सकती है, जबकि जल शुद्धि को कारगर बनाने के लिए दोगुनी मात्रा इस्तेमाल किए जाने की ज़रूरत है.
एजेंसी ने कहा है कि विशेष रूप से बच्चे, जलजनित बीमारियों के जोखिम में हैं और अगर ग़ाज़ा के लोगों को आगामी सर्दी के महीनों में अत्यधिक भीड़ वाले स्थानों पर रहने के लिए मजबूर किया जाता है तो उस दौरान ख़तरा और भी बढ़ने की आशंका है क्योंकि उन स्थानों पर जल स्वच्छता सेवाओं की समुचित मात्रा की कमी होगी.
यूएन एजेंसी ने कहा है कि हाथ धोने वाले साबुन, कपड़े धोने वाले पाउडर और शैम्पू व संक्रमण फैलने से रोकने वाले तरल पदार्थों की भारी कमी के कारण, बीमारियाँ आसानी से फैल रही हैं.
OCHA ने कहा है कि अगर ये चीज़ें बाज़ार में उपलब्ध भी हैं तो भी लोगों के पास उन्हें ख़रीदने के लिए रक़म नहीं है.