7 अक्टूबर 2023 को इसराइल पर हमास व अन्य चरमपंथी गुटों के हमलों के बाद, इसराइली सैन्य कार्रवाई को शुरू हुए एक वर्ष से अधिक समय बीत चुका है.
इस पृष्ठभूमि में, ग़ाज़ा में विनाशकारी मानवीय हालात हैं, अब तक 43 हज़ार फ़लस्तीनियों की जान गई है और 19 लाख विस्थापित हुए हैं, जिनमें क़रीब 43 हज़ार गर्भवती महिलाएँ भी हैं.
मौजूदा परिस्थितियों में डेढ़ लाख से अधिक गर्भवती व स्तनपान करा रही महिलाओं के लिए सीमित स्तर पर ही प्रसव-पश्चात व परिवार नियोजन सेवाएँ उपलब्ध हैं.
प्रसव से पहले, उसके दौरान और बाद में पर्याप्त स्तर पर चिकित्सा देखभाल उपलब्ध ना होने की वजह से उन्हें गम्भीर स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है.
गर्भावस्था व प्रसव के दौरान जटिलताएँ व जोखिम बढ़े हैं जबकि सुरक्षित सेवाओं की सुलभता में गिरावट आई है, विशेष रूप से ग़ाज़ा के उत्तरी हिस्से में.
यूएन एजेंसी, UNFPA का यह ऐलर्ट ऐसे समय में जारी हुआ है जब ग़ाज़ा में 70 फ़ीसदी बुनियादी ढाँचा बर्बाद हो चुका है, यहाँ की पूरी आबादी भोजन, स्वच्छ जल, स्वास्थ्य देखभाल और बुनियादी आश्रय व्यवस्था के बिना ही गुज़र-बसर करने के लिए मजबूर है.
ग़ाज़ा में स्वास्थ्य प्रणाली भी दरक चुकी है और क़रीब 50 फ़ीसदी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएँ ठप हैं.
वैक्सीन अभियान की सफलता
इस बीच, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा है कि उत्तरी ग़ाज़ा में लगभग हर 10 में से 9 बच्चे को पोलियो वैक्सीन की दूसरी ख़ुराक दी जा चुकी है.
2-4 नवम्बर की अवधि में 10 वर्ष से कम आयु के एक लाख पाँच हज़ार बच्चों को टीके लगाए गए, जोकि कुल लक्ष्य का 88 प्रतिशत है. 84 हज़ार बच्चों को ‘विटामिन ए’ भी दिया गया है.
क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े के लिए यूएन प्रतिनिधि डॉक्टर रिक पीपरकोर्न ने मंगलवार को जिनीवा में पत्रकारों को बताया कि यह एक असाधारण उपलब्धि है.
यह मुहिम पहले उत्तरी ग़ाज़ा तक ही सीमित थी, जिसे अब घनी आबादी वाले चार इलाक़ों में 5 नवम्बर को भी संचालित किया जाएगा.
मध्य व दक्षिणी ग़ाज़ा में दूसरे चरण के अभियान को पहले ही पूरा कर लिया गया था, मगर उत्तरी ग़ाज़ा में इसराइली सैन्य कार्रवाई व बमबारी, घेराबन्दी, जगह ख़ाली करने के आदेशों के कारण टीकाकरण कार्य में देरी हुई.
पोलियो वायरस के फैलाव को टालने के लिए, हर समुदाय व इलाक़े में कम से कम 90 फ़ीसदी बच्चों को वैक्सीन की ख़ुराक दी जानी ज़रूरी होता है. आमतौर पर दूसरी ख़ुराक को छह सप्ताह के भीतर दिया जाना होता है, मगर इसमें देरी होने से टीके का असर कम हो जाता है और प्रतिरोधक क्षमता में कमी आती है.