7 अक्टूबर को भड़के इस हिंसक दौर ने, फ़लस्तीनी लोगों पर क़हर बरपाया है.
खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, ग़ाज़ा में हर चार में से एक घर, खाद्य असुरक्षा या अकाल जैसी स्थिति का सामना कर रहा है.
निवासियों का कहना है कि जंगल में उगने वाले यह पौधे ज़्यादा पोषक नहीं होते हैं और इनकी बिक्री बढ़ने से इनकी क़ीमतें भी तेज़ी से बढ़ी हैं.
युद्ध से पहले स्थानीय तौर पर ‘ख़ुबीज़ेह’ के नाम से जाने जाने वाले ये जंगली पौधे, लोग मुफ़्त में बीनकर खा सकते थे.
लेकिन खाद्य भंडार ख़त्म होने के कारण, अपने परिवारों की भूख शान्त करने के लिए, वह इन्हें ख़रीदने के लिए मजबूर हैं.
एफ़एओ के मुताबिक़, ग़ाज़ा पट्टी में 46 प्रतिशत से अधिक खेती योग्य भूमि नष्ट हो गई है और 97 प्रतिशत पानी, मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त है.
UNRWA की रिपोर्ट के अनुसार, ग़ाज़ा पट्टी में आने वाली सहायता सामग्री, आबादी की केवल 3 % ज़रूरतें ही पूरी कर पाती है.
इस युद्ध से पहले, हर रोज़ मानवीय आपूर्ति के 500 ट्रक ग़ाज़ा में प्रवेश करते थे. आज यह संख्या घटकर, औसतन 98 ट्रक रह गई है.
संयुक्त राष्ट्र 23 जनवरी के बाद से ग़ाज़ा के उत्तरी इलाक़े में कोई भी सहायता पहुँचाने में असमर्थ रहा है.
यहाँ अकाल जैसी स्थिति पैदा हो गई है और लोगों को जीवित रहने के लिए जानवरों के चारे का सहारा लेना पड़ रहा है.
उत्तरी ग़ाज़ा जाने वाले सहायता क़ाफ़िले, लगातार गोलीबारी की चपेट में आ रहे हैं और इसराइली अधिकारियों द्वारा प्रवेश से रोके जा रहे हैं.