यूएन स्वास्थ्य एजेंसी –(WHO) के स्वास्थ्य आपातकालीन अधिकारी शॉन केसी ने, युद्धग्रस्त क्षेत्र ग़ाज़ा की पाँच सप्ताह से अधिक की यात्रा के बाद बात करते हुए यह जानकारी दी है.
उन्होंने बताया है कि क़ाफ़िलों को पहुँच और सुरक्षा बाधाओं के साथ-साथ, आवाजाही की सीमितताओं का भी सामना करना पड़ रहा है.
शॉन केसी ने बुधवार को न्यूयॉर्क में पत्रकारों से कहा, “पिछले सप्ताह जब मैं ग़ाज़ा में था, तो हमने उत्तरी इलाक़े और ग़ाज़ा शहर तक ईंधन और सामान की आपूर्ति करने के लिए सात दिनों तक हर दिन कोशिश की. और हर दिन समन्वित आवागमन के उन अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया गया.
पीड़ा और हताशा
तीन महीने से अधिक के युद्ध के बाद ग़ाज़ा के 36 अस्पतालों में से केवल 16 अस्पताल ही “न्यूनतम या आंशिक रूप से काम कर रहे हैं”.
अस्पताल हज़ारों मरीज़ों और युद्ध से सुरक्षा की ख़ातिर भागे हुए लोगों से भरे हुए हैं, जिससे लगभग 85 प्रतिशत आबादी यानि लगभग 19 लाख लोग विस्थापित हो गए हैं.
ग़ाज़ा के 25 हज़ार स्वास्थ्य पेशेवरों में से बहुत से स्वास्थ्य विशेषज्ञ, उजड़े हुए लोगों में शामिल हैं, जिससे उनके लिए काम पर जाना मुश्किल हो गया है.
शॉन केसी ने कहा, “मैंने हर दिन अस्पतालों में गम्भीर रूप से जले हुए, खुले फ्रैक्चर वाले मरीज़ देखे हैं, देखभाल के लिए घंटों या कई दिनों तक इन्तजार करते हुए,और वे अक्सर मुझसे भोजन या पानी मांगते थे. यह स्थिति हताशा के स्तर को दर्शाती है, जो हम देखते रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि हालाँकि चिकित्सा कर्मचारियों और सहायता सामग्री दोनों की अधिक पहुँच की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा, “कुल मिलाकर, सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता वास्तव में युद्धविराम की है क्योंकि इसके अलावा जो कुछ भी है वह दिन-प्रतिदिन के आधार पर ज़रूरतों को पूरा करना है.”
अस्पताल भारी दबाव में और संसाधनों वंचित
शॉन केसी ने उत्तर में स्थित ग़ाज़ा शहर में अल-शिफ़ा सहित छह अस्पतालों का दौरा किया.
700 से अधिक बिस्तरों वाला ग़ाज़ा का यह सबसे बड़ा अस्पताल, “अब एक आपातकालीन कक्ष है जो गम्भीर रूप से घायल मरीज़ों से भरा हुआ है और वहाँ केवल पाँच या छह डॉक्टरों व नर्सें मौजूद हैं.” हज़ारों विस्थापित लोग ऑपरेशन थिएटरों, गलियारों और सीढ़ियों पर ठहरे हुए हैं.
ग़ाज़ा के उत्तरी इलाक़े के ही एक अन्य अल-अहली अस्पताल में, मरीज़ों को “बेंच पर लेटे हुए देखा जो दरअसल मौत के इन्तज़ार में हैं. यह एक ऐसा अस्पताल है जिसमें ना ईंधन है, ना बिजली, ना पानी; चिकित्सा सामग्री भी बहुत कम है और मरीज़ों की देखभाल के लिए केवल मुट्ठी भर कर्मचारी ही बचे हैं.”
इसके अलावा दक्षिण इलाक़े में, ख़ान यूनिस में नासिर चिकित्सा परिसर में, मरीज़ों की भारी संख्या के बीच, पिछले सप्ताह केवल 30 प्रतिशत कर्मचारी ही बचे थे.
शॉन केसी ने कहा कि यूएन स्वास्थ्य एजेंसी (WHO) ग़ाज़ा में अतिरिक्त सर्जनों, डॉक्टरों और नर्सों को जुटाने और फ़ील्ड अस्पताल स्थापित करने के लिए भी काम कर रही है.
युद्धविराम की नई अपील
इस बीच फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूएन सहायता एजेंसी UNRWA के प्रमुख फ़िलिपे लज़ारिनी ने बुधवार को ग़ाज़ा में तत्काल मानवीय युद्धविराम के लिए अपना आहवान दोहराया. उन्होंने 7 अक्टूबर को इसराइल के दक्षिणी इलाक़े में हमास के हमले के बाद शुरू हुए युद्ध में, अपनी चौथी यात्रा करने के बाद ये पुकार लगाई है.
उन्होंने कहा, “यह (युद्ध) बहुत लम्बे समय से चल रहा है. ऐसे युद्धों में कोई भी पक्ष विजेता नहीं होता. इनमें अन्तहीन अराजकता और बढ़ती निराशा होती है.”
भय, मृत्यु और आघात
उन्होंने दक्षिणी ग़ाज़ा में रफ़ाह के आसपास की स्थिति की तरफ़ ध्यान आकर्षित किया,जो ग़ाज़ा पट्टी में सहायता वितरण के लिए एक सीमा चौकी है, और वहाँ की आबादी लगभग चौगुनी होकर 12 लाख से अधिक हो गई है.
उन्होंने कहा, “सड़कों सहित हर जगह प्लास्टिक शीट की अस्थाई संरचनाएँ खड़ी हो गई हैं,” क्योंकि लोग ख़ुद को बारिश से बचाने की कोशिश कर रहे हैं. इनमें से कुछ आश्रयस्थलों में 20 से अधिक लोग रह रहे हैं.
फ़िलिपे लज़ारिनी ने कहा, “मैं जिस किसी व्यक्ति से भी मिला, उसके पास साझा करने के लिए भय, मृत्यु, हानि, आघात की एक व्यक्तिगत कहानी थी.”
“100 दिनों में, ग़ाज़ा के लोग सब कुछ खोने के सदमे से, जीवित रहने और अपने प्रियजनों की रक्षा करने के लिए एक दुर्बल संघर्ष की ओर बढ़ गए हैं, कुछ मामलों में लोगों ने अपने परिवार का प्रत्येक सदस्य खो दिया है.”