यूएन महासचिव के उप प्रवक्ता फ़रहान हक़ ने सोमवार को न्यूयॉर्क में पत्रकारों को जानकारी देते हुए बताया कि उत्तरी ग़ाज़ा के अस्पताल, इन हमलों की चपेट में आए हैं, जिससे पहले से ही गम्भीर मानवीय संकट और चुनौतीपूर्ण हो गया है और हज़ारों लोगों की जान पर जोखिम है.
यूएन प्रमुख ने उत्तरी ग़ाज़ा में आम नागरिकों के लिए बिगड़ते हुए हालात पर गहरी चिन्ता जताते हुए कहा कि आम नागरिकों का सदैव सम्मान व संरक्षण सुनिश्चित करना होगा.
मगर, फ़िलहाल उन्हें सामूहिक विस्थापन से जूझना पड़ रहा है और उनके पास गुज़र-बसर के लिए आवश्यक सामान की क़िल्लत है.
“इस हिंसक टकराव में सभी पक्षों द्वारा ग़ाज़ा में जिस तरह से हम अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी क़ानून का उल्लंघन देख रहे हैं, वो अस्वीकार्य है. किसी भी पक्ष द्वारा अंजाम दिए गए अन्तरराष्ट्रीय अपराधों के लिए जवाबदेही तय की जानी ज़रूरी है.”
उधर, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) ने उत्तरी ग़ाज़ा में इसराइली सैन्य बलों की कार्रवाई पर गहरी चिन्ता जताई है. उन्होंने आगाह किया है कि इसराइली सैनिकों द्वारा किए जा रहे निरन्तर हमलों, जबरन विस्थापन और मानवीय सहायता पर गम्भीर पाबन्दियों की वजह से इस क्षेत्र की फ़लस्तीनी आबादी पूर्ण रूप से विध्वंस का शिकार हो सकती है.
यूएन मानवाधिकार कार्यालय के अनुसार, उत्तरी ग़ाज़ा में फँसे आम नागरिकों को बार-बार अपने स्थान से हटने के लिए आदेश दिए जा रहे हैं, जबकि अति-आवश्यक मानवीय सहायता आपूर्ति की सुलभता सीमित है.
इन हालात में बड़ी संख्या में फ़लस्तीनी लोगों के लिए भुखमरी जैसे हालात पैदा हो रहे हैं.
इसराइली सैन्य बलों ने सभी आम नागरिकों से उत्तरी ग़ाज़ा को छोड़कर जाने के लिए कहा है. इसके साथ ही, वहाँ निरन्तर बमबारी और हमले हो रहे हैं, विशेष रूप से जबालिया शिविर के इर्द-गिर्द.
इन हमलों की वजह से आम नागरिकों के लिए वहाँ से जान बचाकर भागना बेहद ख़तरनाक हो गया है. फ़लस्तीनी परिवारों को यह आशंका भी है कि एक बार यहाँ से जाने के बाद, उनके लिए अपने घरों को वापिस लौटना फिर सम्भव नहीं होगा.
बताया गया है कि इसराइली सेना ने आश्रय स्थलों के रूप में इस्तेमाल में लाए जा रहे घरों व स्कूलों को ध्वस्त कर दिया है, जिसके बाद अनेक लोगों के पास शरण के लिए स्थान नहीं बचा है, जबकि सर्दी का मौसम नज़दीक है.
शनिवार को एक घातक हवाई हमले में बेइत लाहिया में एक आवासीय परिसर को निशाना बनाया गया है, जिसमें ग़ाज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार कम से कम 87 लोगों की जान गई है.
अस्पतालों पर हमले
फ़लस्तीनी आबादी की पीड़ा और अधिक गहरी हो गई है चूँकि अस्पतालों में ज़रूरी ईंधन, मेडिकल आपूर्ति की क़िल्लत है, जबकि बचावकर्मियों का रास्ता या तो रोका जा रहा है या फिर जीवनरक्षक अभियान के दौरान उन पर हमले हो रहे हैं.
फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूएन एजेंसी (UNRWA) के महाआयुक्त फ़िलिपे लज़ारिनी ने सोशल मीडिया पर बताया कि अस्पतालों पर हमले हुए हैं, और अब वहाँ बिजली आपूर्ति ठप है. घायलों को ज़रूरी देखभाल नहीं मिल पा रही है.
उन्होंने सचेत किया कि मानवीय सहायता को ज़रूरतमन्दों तक पहुँचने से नकारना, और इसे एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल में लाना दर्शाता है कि नैतिक तौर पर हालात कितने ख़राब हैं. “सहायता करने के लिए या उसे पाने के लिए किसी को भी भीख नहीं मांगनी चाहिए.”
हर एक मिनट अहम
मानवतावादी मामलों में समन्वय के लिए यूएन कार्यालय (OCHA) ने इसराइली प्रशासन से आग्रह किया है कि मलबे में दबे लोगों को बचाने के लिए सहायताकर्मियों को जल्द से जल्द वहाँ पहुँचने की अनुमति देनी होगी.
यूएन कार्यालय ने सोशल मीडिया पर अपने एक सन्देश में लिखा कि, “हर एक मिनट अहम है…पहले, अनुमति में देरी के परिणामस्वरूप, बचाव टीमें केवल शवों को ही निकाल पाई थीं.”
इस इलाक़े में इंटरनैट व्यवस्था ठप है और कम से कम तीन फ़लस्तीनी पत्रकारों की जान जा चुकी है, जिससे वहाँ के हालात से जुड़ी सूचना के प्रवाह पर असर हुआ है.
मध्य पूर्व के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष समन्वयक टोर वैनेसलैंड ने भी रविवार को जारी अपने एक वक्तव्य में ग़ाज़ा में आम लोगों पर निरन्तर जारी हमलों की निन्दा की है. उन्होंने युद्ध को तत्काल रोके जाने और हमास की हिरासत में रखे गए बन्धकों की तत्काल रिहाई की पुकार लगाई है.
टोर वैनेसलैंड ने कहा है कि ग़ाज़ा में भयावह हालात और बिगड़ रहे हैं और उत्तरी ग़ाज़ा में इसराइल के लगातार ताबड़तोड़ हमलों के बीच, विनाश के भीषण दृश्य नज़र आ रहे हैं. मानवीय संकट और भी बदतर हो रहा है.