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ग़ाज़ा: ‘अनाथालय शहर’ में युद्ध प्रभावित बच्चों को आसरा

ग़ाज़ा: ‘अनाथालय शहर’ में युद्ध प्रभावित बच्चों को आसरा

फ़लस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, युद्ध में हुई मौतों की संख्या 41 हज़ार का आँकड़ा पार कर चुकी है, जिनमें अधिकतर महिलाएँ एवं बच्चे हैं. वहीं ग़ाज़ा की 23 लाख की आबादी में से अधिकाँश लोग जबरन विस्थापित हुए हैं और भागकर, केवल 10 प्रतिशत भाग में बसने के लिए मजबूर हो गए हैं. 

लेकिन युद्ध के इस अन्धकार के बीच, कुछ नई पहलों ने थोड़ी उम्मीद की किरण जगाई है.

ख़ान यूनिस के पश्चिम में स्थित अल-मवासी क्षेत्र के शिक्षक महमूद कल्लाख ने उन परिवारों को राहत देने के लिए एक शिविर स्थापित किया, जिन्होंने अपने परिवार के पुरुषों और कमाने वालों को खो दिया था.

वर्तमान में, यह अल-बराक़ा अनाथालय शिविर, दक्षिणी ग़ाज़ा से विस्थापित होकर आए 400 फ़लस्तीनी परिवारों की देखभाल कर रहा है. 

यूएन न्यूज़ संवाददाता, ज़ियाद तालेब के साथ एक साक्षात्कार में, महमूद कल्लाख ने इसे एक ‘अनाथालय शहर’ का नाम देते हुए बताया कि इस पहल के ज़रिए शरण लेने वाले परिवारों को उचित देखभाल प्रदान की जा रही है. 

इसमें, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) जैसी संस्थाओं की मदद से, आश्रय, भोजन एवं पेय पदार्थ, शैक्षिक व सामाजिक सेवाएँ तथा चिकित्सा देखभाल की सुविधाएँ मुहैया करवाना शामिल है. 

महमूद कल्लाख ने कहा,”हमारे पास यूनीसेफ़ के ज़रिए, संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रायोजित एक समर्पित चिकित्सा केंद्र एवं एक स्कूल है, जो स्कूल के लिए आवश्यक संसाधन प्रदान करता है, छात्रों को स्टेशनरी देता है तथा शिक्षकों के वेतन का प्रबंध करता है. हम इस स्कूल को पूरी तरह से स्थापित करना चाहते हैं,  इन छोटे टेंटों को हटाकर हम एक पक्का स्कूल बनाना चाहते हैं, ताकी छात्रों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए बेहतर व आरामदायक माहौल मिल सके.”

ग़ाज़ा में जारी युद्ध में, तालीन अल-हिन्नावी के पिता की मौत हो गई और अब वह अल-बराक़ा अनाथालय शिविर में रहती है.

ग़ाज़ा में 17,000 से अधिक बच्चे अनाथ

इस स्कूल में पढ़ रहे बच्चों की संख्या, ग़ाज़ा में अनाथ हुए बच्चों की तुलना में, समुद्र में एक बूंद की तरह है. इन बच्चों को सुरक्षा की ज़रूरत हैं. ग़ाज़ा में असुरक्षित अनाथ बच्चों की संख्या 17,000 से 18,000 के बीच हो गई है, जिनमें से कईयों के परिवार का कोई सदस्य नहीं बचा है.

तालीन अल-हिन्नावी ने युद्ध में अपने पिता को खो दिया और अब वो अल-बराक़ा अनाथालय शिविर में अपने नए जीवन से तालमेल बैठाने की कोशिश कर रही हैं. यूएन न्यूज़ से बात करते हुए जब उनके पिता का ज़िक्र आया, तो उनके चेहरे पर सदमे व उदासी के भाव साफ़ नज़र आ रहे थे.

उन्होंने कहा, “बाबा [पिताजी] बहुत स्नेही थे. मुझे अभी भी नहीं लगता कि बाबा शहीद हो गए हैं.”

इस युवा लड़की का जीवन के प्रति दृष्टिकोण अब पूरी तरह बदल चुका है.

उन्होंने कहा, युद्ध “पूरे के पूरे परिवारों का सफ़ाया करने” की कोशिश कर रहा है.

तालीन अल-हिन्नावी ने कहा कि वह ग़ाज़ा शहर में स्थित अपने घर लौटना चाहती है ताकि उनका जीवन सामान्य हो सके, वो अन्य लोगों की तरह पढ़ाई तक सके और हर किसी की तरह क़ुरान के पाठ याद कर सके. “पहले हम अपने घर में रहते थे. हमने कभी किसी को परेशान नहीं किया और हम अपने-आप में ही व्यस्त रहते थे.”

नाडा अल-घारीब के तम्बू पर हुए हमले में उनके पिता और इकलौते भाई की मौत हो गई, तथा वो और उनकी माँ भी घायल हो गईं.

‘हमने उन्हें खो दिया’

इस युद्ध ने मुझसे मेरे पिता और इकलौते भाई को छीन लिया.”

इन शब्दों के साथ, युवा नाडा अल-घारीब ने अपनी कहानी बतानी शुरू की. वह और उसकी माँ भी ख़ान यूनिस में उस तम्बू पर हुए हमले में घायल हो गईं थी, जहाँ उनके परिवार ने शरण ली था. तीन दिनों तक वो अन्दर फंसे रहे.

नाडा ने बताया कि उनका परिवार उत्तरी ग़ाज़ा से विस्थापित होकर ख़ान यूनिस आया था “क्योंकि कब्ज़ा करने वालों ने हमें यही आदेश दिया था.”

उन्होंने बताया, “हम यहाँ आकर फंस गए. मेरे पिता व मेरा इकलौता भाई शहीद हो गए, तथा मैं और मेरी माँ घायल हो गए.”

ग़ाज़ा के ख़ान यूनिस के पश्चिम में स्थित अल-मवासी पर हुए इसराइली हवाई हमले से, विस्थापित लोगों के एक अस्थाई शिविर में एक बड़ा गड्ढा बन गया है.

हम यहाँ भाई-बहन की तरह रहते हैं’

तम्बू से निकलने में कामयाब होने के बाद, नाडा और उनकी माँ, ख़ान यूनिस के पश्चिम में स्थित औद्योगिक क्षेत्र में चले गए, जहाँ उनका इलाज हुआ लेकिन इसके बाद वो एक बार फिर फंस गए. उन्होंने बताया कि वो इसराइली चौकियों से होकर गुज़रे, फिर वो रफ़ाह में दाखिल हुए, लेकिन उन्हें वहाँ से भी भागना पड़ा. बचते-बचाते वो अंत में अल-बराक़ा अनाथालय शिविर पहुँचे.

उन्होंने कहा कि उन्हें और उनकी माँ को मानो इस शिविर में दूसरा घर मिला, “क्योंकि हमारे आस-पास सभी लोगों की दुखभरी कहानी एक सी हैं.”

उन्होंने कहा, ”हम यहाँ भाई-बहन की तरह रहते हैं. सभी माताएँ हमारी माँ के समान हैं, और सभी बच्चे हमारे भाई-बहन हैं. हम यहाँ एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं. हमें अपना जीवन बहुत प्यारा है. भले ही यह कठिन है और [हमारे प्रियजनों का] नुक़सान सह पाना हमारे लिए बहुत मुश्किल है, लेकिन हम उनके लिए जीने की कोशिश करते हैं.”

नाडा ने बताया कि उनके पिता एक महान, दयालु व्यक्ति थे जो अपने परिवार से बहुत प्यार करते थे.

उन्होंने बताया, ”वह हमें कभी कोई मुश्किल काम नहीं करने देते थे. अब, हालात कठिन हैं. हमें पानी लाना पड़ता है और वो सभी काम करने पड़ते हैं जो पुरुष करते थे. लेकिन हमारे पास कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि हम उन्हें खो चुके हैं.”

बढ़ता टकराव

यूनीसेफ़ का कहना है कि ग़ाज़ा पट्टी में बढ़ते टकराव से, बच्चों एवं परिवारों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ रहा है, और बच्चों की मौत की दर चिन्ताजनक रूप से बढ़ रही है. फ़लस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, युद्ध में 14,000 से अधिक बच्चे मारे गए हैं, और हज़ारों अन्य घायल हुए हैं.

अनुमानित 19 लाख लोग – यानि लगभग 10 ग़ाज़ावासियों में से 9, पर्याप्त पानी, भोजन, ईंधन और दवाओं के अभाव में, आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं, जिनमें से आधे से अधिक बच्चे हैं.

संयुक्त राष्ट्र एजेंसी, तात्कालिक एवं स्थाई मानवीय युद्धविराम, उत्तरी पट्टी समेत ग़ाज़ा के भीतर मौजूद सभी ज़रूरतमन्द बच्चों एवं परिवारों तक त्वरित, सुरक्षित व निर्बाध मानवीय पहुँच, सभी अपहृत बच्चों की तत्काल, सुरक्षित तथा बिना शर्त रिहाई और बच्चों के विरुद्ध, हत्या व अपंगता जैसे किसी भी गम्भीर उल्लंघन का अन्त करने का आहवान कर रही है.

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