संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने शुक्रवार को यह आहवान करते हुए कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान ने लगभग तीन वर्ष से, महिलाओं और लड़कियों को खेलकूद में शिरकत करने से रोक रखा है, जोकि महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों का एक ऐसा दमन है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता. ऐसा दमन किसी अन्य देश में नहीं होता.
मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि महिलाओं और लड़कियों पर यह प्रतिबन्ध, उनकी यौन और लैंगिक भेदभाव व दमन की संस्थागत व्यवस्था है, जो मानवता के विरुद्ध अपराधों के दायरे में गिनी जा सकती है.
अलबत्ता एक सकारात्मक घटनाक्रम ये है कि इस प्रतिबन्ध के बावजूद, पेरिस ओलिम्पिक और पैरा-लिम्पिक खेलों में, अफ़ग़ानिस्तान की उन महिला ऐथलीटों ने भाग लिया है जो निर्वासन में जीवन जी रही हैं. इसमें अन्तरराष्ट्रीय ओलिम्पिक समिति ने उनकी मदद की है.
अफ़ग़ानिस्तान की ओलिम्पिक टीम में तीन महिला और तीन पुरुष ऐथलीट हैं मगर वो देश के मौजूदा सत्तारूढ़ प्रशासन तालेबान के चिन्ह नहीं प्रदर्शित कर रहे हैं. मगर तालेबान में इस टीम की महिला सदस्यों को मान्यता नहीं दी है.
यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि यह बहुत ज़रूरी है कि प्रतिभाशाली अफ़ग़ान महिला ऐथलीट, पेरिस ओलिम्पिक के खेल मैदानों के साथ-साथ अन्य प्रतिस्पर्धाओं में भी नज़र आएँ. ऐसा किया जाना इन हालात में विशेष रूप से ज़रूरी है जबकि उन्हें अपने ही देश में सार्वजनिक जीवन से ग़ायब किया जा रहा है.
उनका कहना है कि खेलकूद में उनकी भागेदारी, तालेबान द्वारा महिलाओं व लड़कियों के व्यवस्थागत दमन और बहिष्करण के विरुद्ध एक रुख़ पेश करती है.
यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने, अन्तरराष्ट्रीय ओलिम्पिक समिति (IOC) को लिखे एक पत्र में यह सुनिश्चित करने का आहवान किया है कि अफ़ग़ान महिलाओं के लिए पूरे ओलिम्पिक आन्दोलन से समर्थन व संसाधन बढ़ाए जाएँ. इनमें अन्तरराष्ट्रीय खेलकूद संघ और राष्ट्रीय ओलिम्पिक समितियाँ भी शामिल हों.
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने, खेलकूद संस्थाओं को भी, संयुक्त राष्ट्र के दिशा-निर्देश सिद्धान्तों के अन्तर्गत अपनी मानवाधिकार ज़िम्मेदारियों की तरफ़ ध्यान आकर्षित किया है.
उन्होंने साथ ही चिन्ता भी व्यक्त की है कि ओलिम्पिक आन्दोलन के कुछ सदस्य, महिलाओं और लड़कियों की समान और भेदभाव रहित शिरकत के अधिकार के सम्बन्ध में, अपनी संगठनात्मक ज़िम्मेदारियाँ पूरी करने में या तो समर्थ नहीं या इच्छुक नहीं हैं.
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि अफ़ग़ान महिलाओं और लड़कियों को उनके अधिकारों से वंचित किए जाने के चलन को रोकना होगा, जिसमें खेलकूद से उन्हें बाहर रखा जाना भी शामिल है.
“संस्कृति को मानवाधिकार उल्लंघन के लिए एक बहाना नहीं बनाया जाना चाहिए, जिनमें खेलकूद में शिरकत करने का सांस्कृतिक अधिकार भी शामिल है.”
विशेषज्ञों का कहना है, “अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं की यह ज़िम्मेदारी है कि वो तालेबान की दमनकारी नीतियों को चुनौती दें और अफ़ग़ान महिला खिलाड़ियों समर्थन दें, वो जहाँ भी हों.”