राजनीति

क्या होता है श्वेत पत्र? 2016 में इसे लाने का विचार क्यों टाला गया, अब इसे लाए जाने की बात के पीछे की वजह?

चुनाव पूर्व लोकलुभावन बजट की उम्मीदें टूटने के एक दिन बाद केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार हर तरह से सशक्तिकरण के सिद्धांत, सबका साथ, सबका विश्वास, सबका विकास को क्रियान्वित कर रही है। उन्होंने कहा कि अंतरिम बजट इस स्पष्ट समझ के साथ प्रस्तुत किया गया था कि पिछले 10 वर्षों में नागरिकों के सशक्तिकरण को ध्यान में रखकर शुरू किए गए कई कार्यक्रम जमीन पर पहुंच रहे हैं और लाभार्थी पहले से ही इसके बारे में खुद बोल रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार मुद्रास्फीति पर नजर रखते हुए निरंतर विकास का लक्ष्य रख रही है, जल्द ही एक श्वेत पत्र जारी किया जाएगा  जिसमें यूपीए के वर्षों के दौरान अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन और पीएम मोदी के तहत होने वाले सुधारों का विवरण दिया जाएगा। श्वेत पत्र लाने के पीछे मोदी सरकार की क्या मंशाहै? अब क्यों इसे लाए जाने की बात कही जा रही है? क्या यह विपक्ष को मात देने के लिए एक और अहम फैक्टर साबित होगा?

श्वेत पत्र होता क्या है

श्वेत पत्र की शुरुआत 99 साल पहले 1922 में ब्रिटेन में हुई थी। ये किसी विषय के बारे में ज्ञात जानकारी या एक सर्वे के परिणाम का सारांश होता है। एक श्वेत पत्र किसी भी विषय के बारे में हो सकता है। लेकिन ये हमेशा चीजों के काम करने के तरीके को बेहतर बनाने के लिए सुझाव देता है। ये आमतौर पर सरकार द्वारा अनुवर्ती कार्रवाई या कम से कम एक निष्कर्ष के लिए प्रकाशित किया जाता है। श्वेत पत्र सरकार द्वारा तैयार किए गए नीतिगत दस्तावेज़ हैं जो भविष्य के कानून के लिए उनके प्रस्ताव निर्धारित करते हैं। श्वेत पत्रों को अक्सर कमांड पेपर के रूप में प्रकाशित किया जाता है और इसमें किसी विधेयक का मसौदा संस्करण शामिल हो सकता है जिसकी योजना बनाई जा रही है। यह इच्छुक या प्रभावित समूहों के साथ आगे के परामर्श और चर्चा के लिए एक आधार प्रदान करता है और किसी विधेयक को औपचारिक रूप से संसद में पेश किए जाने से पहले अंतिम बदलाव करने की अनुमति देता है।

अब क्यों लाने का किया जा रहा विचार

वित्त मंत्री ने कहा कि एक श्वेत पत्र लेकर आएं जिसमें बताया जाए कि भारतीय अर्थव्यवस्था नाजुक स्थिति में क्यों पहुंच गई। हमारे बैंक इतने ब्लैक होल क्यों बन गए हैं। सभी बैंक गहरे संकट में थे। एनपीए की संख्या और एनपीए के मूल्य पर नजर डालें तो वे किस हद तक पहुंच गए। चाहे वह बैंक हो, चाहे वह समग्र अर्थव्यवस्था हो, चाहे वह रक्षा खरीद हो, चाहे वह दूरसंचार का महत्वपूर्ण क्षेत्र हो, खनिज ही क्यों, हर क्षेत्र समस्याओं से भरा नजर आया। 

2016 में इसे लाने का विचार त्याग दिया गया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका जवाब देते हुए खुद ही कहा था कि जब एनडीए 2014 में सत्ता में आया तो उन्होंने यूपीए के 10 साल के शासन के बाद अर्थव्यवस्था की स्थिति पर एक श्वेत पत्र लाने के बारे में सोचा था, लेकिन उन्होंने इस डर से ऐसा करने से परहेज किया कि इससे देश के हित को नुकसान पहुंचेगा। जुलाई 2014 में एनडीए सरकार के पहले बजट की प्रस्तुति से ठीक पहले, मोदी ने कहा था कि राजनीतिक समझ ने उन्हें अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य को पेश करने की सलाह दी, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की अनिश्चित स्थिति और बजट संख्या के साथ समस्याएं शामिल थीं। लेकिन राष्ट्रीय हित ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। पीएम मोदी ने कहा था कि देशहित ने मुझे बताया कि इस जानकारी से निराशा बढ़ेगी, बाज़ार बुरी तरह प्रभावित होगा, अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगेगा और भारत के बारे में दुनिया का नज़रिया ख़राब होगा। उन्होंने तब कहा था कि मैंने राष्ट्रीय हित में राजनीतिक नुकसान के जोखिम पर चुप रहना चुना। 

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