यूनेस्को के आँकड़ों के अनुसार, पत्रकारों को जान से मार दिए जाने के मामलों में सज़ा ना मिलने की वैश्विक दर 86 प्रतिशत है, जोकि स्तब्धकारी है.
जनवरी 2019 और जून 2022 के बीच, यूएन एजेंसी ने 70 देशों में 89 चुनाव प्रक्रियाओं के दौरान पत्रकारों पर हमलों के 759 मामले दर्ज किए. इनमें पाँच पत्रकारों को जान से मार दिए जाने की घटनाएँ भी हैं.
विश्लेषण के अनुसार, इनमें से अधिकाँश हमलों को पुलिस व सुरक्षा बलों ने अंजाम दिया, जिनमें मार-पिटाई और मनमाने ढंग से गिरफ़्तार किए जाने समेत अन्य मामले हैं.
गुरूवार को जारी इस रिपोर्ट में क़ानून प्रवर्तन अधिकारियों की भूमिका की पड़ताल की गई है, ताकि सार्वजनिक प्रदर्शनों और चुनावों के दौरान पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.
जनवरी 2015 से अगस्त 2021 के दौरान, यूनेस्को ने कम से कम 101 देशों में ऐसी घटनाएँ दर्ज की है, जिनमें विरोध प्रदर्शनों, सार्वजनिक सभाओं और दंगों की कवरेज कर रहे पत्रकारों पर हमले किए गए.
इन घटनाओं में कम से कम 13 पत्रकारों के मारे जाने पर जानकारी जुटाई गई है.
रिपोर्ट बताती है कि पत्रकार, पुलिस द्वारा ग़ैर-घातक असलहे, जैसेकि रबड़ की गोलियाँ, आँखों में मिर्ची लगाने वाली गोलियों का इस्तेमाल किए जाने की वजह से घायल हुए.
कई अन्य को गिरफ़्तार कर लिया गया, उनके साथ मार-पिटाई हुई और कुछ मामलों में अपमानित किया गया.
इसके अलावा, प्रदर्शनकारियों और विरोध मार्च में हिस्सा लेने वाले लोगों द्वारा भी पत्रकारों के विरुद्ध शारीरिक व शाब्दिक हमले किए जाने की बात कही गई है.
सच्चाई की मशाल
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने अन्तरराष्ट्रीय दिवस पर अपने सन्देश में कहा कि लोकतंत्र और सत्ता की जवाबदेही तय करने में पत्रकारों की बेहद अहम भूमिका है, मगर इसे निभाते समय उन्हें जोखिमों का सामना करना पड़ता है.
“आज, और हर दिन, हम पत्रकारों व सभी मीडिया पेशेवरों के आभारी हैं, जो हमें सूचित करने और सच्चाई को जीवित रखने के लिए अपने स्वास्थ्य व जीवन को जोखिम में डालते हैं.”
यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने यूनेस्को से प्राप्त आँकड़ों का उल्लेख करते हुए कहा कि 2022 में, अपना फ़र्ज़ निभाते समय 88 पत्रकार मारे गए, जोकि अतीत के वर्षों की तुलना में एक तेज़ वृद्धि को दर्शाता है.
उन्होंने सचेत किया कि मध्य पूर्व में इसराइल और क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े के बीच हिंसक टकराव, पत्रकारों के लिए भयावह समय है.
महासचिव गुटेरेश के अनुसार, अपनी जान गँवाने वाले अधिकाँश पत्रकार, युद्ध स्थल से ख़बरें नहीं दे रहे थे, बल्कि वे शान्त देशों में भ्रष्टाचार, तस्करी, मानवाधिकार हनन और पर्यावरणीय मुद्दों पर रिपोर्टिंग कर रहे थे.
इसके मद्देनज़र, उन्होंने बेहतर उपायों की पुकार लगाई है ताकि जनता तक सूचना पहुँचाने वाले पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.