सुरक्षा परिषद की यह बैठक, ग़ाज़ा पट्टी में बद से बदतर होती मानवीय स्थिति और गहराते भूख संकट की पृष्ठभूमि में हुई है. इसराइली सैन्य बलों पर, ग़ाज़ा के लिए रवाना की गई सहायता सामग्री का रास्ता रोके जाने का आरोप है, और अकाल का जोखिम बढ़ रहा है.
इस बीच, इसराइली सेना द्वारा दक्षिणी ग़ाज़ा में स्थित रफ़ाह पर धावा बोलने की तैयारी करने की ख़बरें हैं, जहाँ लगभग 15 लाख लोगों ने, लड़ाई से जान बचाने के लिए शरण ली हुई है.
यूएन महासचिव की विशेष प्रतिनिधि प्रमिला पैटन ने सोमवार को सुरक्षा परिषद की बैठक के दौरान इसराइल और पश्चिमी तट में अपने हालिया मिशन के सम्बन्ध में जानकारी दी.
उन्होंने कहा कि इस मिशन का उद्देश्य जाँच करना नहीं था, बल्कि हिंसक टकराव सम्बन्धी यौन हिंसा पर रिपोर्ट एकत्र करना, और उनका विश्लेषण व सत्यापन करना था.
उन्होंने ग़ाज़ा में हालात की वजह से वहाँ जाने का अनुरोध नहीं किया था, जहाँ यूएन की अन्य संस्थाएँ सक्रिय हैं और यौन हिंसा की भी निगरानी की जा रही है.
प्रमिला पैटन ने अपना सम्बोधन आरम्भ करते हुए स्पष्ट किया कि महासचिव ने उनकी रिपोर्ट के निष्कर्षों को दबाने या चुप कराने की कोई कोशिश नहीं की है.
विशेष प्रतिनिधि की टीम में 9 यूएन विशेषज्ञ भी थे, जिन्होंने स्वतंत्रता और पारदर्शिता के अनुरूप अपने मिशन के कामकाज को पूरा किया.
उन्होंने बताया कि स्रोतों की विश्वसनीयता और भरोसे के आधार पर ही निष्कर्ष पर पहुँचा गया, और कुछ मामलों में पाया गया कि आरोप बेबुनियाद थे.
इसराइल का दौरा
प्रमिला पैटन की टीम ने 34 व्यक्तियों के साथ इंटरव्यू किए, जिनमें 7 अक्टूबर को हमलों में जीवित बच गए लोग भी थे.
कथित हमलों के चार घटनास्थलों का भी दौरा किया गया और प्रशासन व स्वतंत्र स्रोतों से प्राप्त पाँच हज़ार से अधिक तस्वीरों और 50 घंटे की वीडियो फ़ुटेज का आकलन किया गया.
यूएन टीम ने यौन हिंसा हमलों के भुक्तभोगियों से मुलाक़ात नहीं की.
विशेष प्रतिनिधि ने कहा कि उन्होंने जो इसराइल में देखा, वो स्तब्धकारी क्रूरता के साथ अंजाम दी गई ऐसी हिंसा के दृश्य थे, जिन्हें शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है, और जिनसे गहरी मानव पीड़ा हुई.
उन्होंने सदमे का सामना कर रहे समुदायों के साथ हुई बातचीत का उल्लेख करते हुए कहा कि वे अपने जीवन को फिर से शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं.
“मैंने उनकी आँखों में दर्द देखा.” उन्होंने कुछ रिपोर्टों के हवाले से बताया कि लोगों को गोलियाँ मारी गईं, लोगों को उनके घरों में ही जला दिया गया, लोगों को बन्धक बनाया गया, शवों को क्षत-विक्षत किया गया और बड़े पैमाने पर लूटपाट की गई.
“यह हत्याओं, यातनाओं और अन्य भयावह [कृत्यों] के सबसे चरम और अमानवीय रूपों का लेखाजोखा था.”
ग़ाज़ा में बन्धक
विशेष प्रतिनिधि ने कहा कि उनके पास इस बारे में स्पष्ट व ठोस जानकारी है कि बन्धकों के साथ बलात्कार, क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक बर्ताव समेत यौन हिंसा के मामलों को अंजाम दिया गया.
“हमारे पास ये मानने के तार्किक आधार हैं कि बन्धक बनाकर रखे लोगों के साथ अब भी ऐसी हिंसा जारी हो सकती है.”
उन्होंने कहा कि यह जानकारी, इस टकराव को जायज़ नहीं ठहराती है, बल्कि यह मानवतावादी युद्धविराम के लिए एक नैतिक अनिवार्यता की ज़मीन तैयार करती है, ताकि ग़ाज़ा में फ़लस्तीनी आबादी पर थोपी गई पीड़ा पर विराम लग सके और बन्धकों की घर वापसी हो सके.
पश्चिमी तट
प्रमिला पैटन की टीम ने, इसराइल द्वारा क़ाबिज़ पश्चिमी तट में रामल्लाह की भी यात्रा की, जहाँ यूएन संस्थाओं से प्राप्त जानकारी को उनकी रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा, जिसे अप्रैल में सुरक्षा परिषद में प्रस्तुत किया जाना है.
उन्होंने बताया कि क़ाबिज़ पश्चिमी तट में गहरे भय और असुरक्षा का माहौल था, महिलाएँ व पुरुष डरे हुए थे और ग़ाज़ा में घट रही त्रासदी से व्यथित थे.
लोगों की गहन तलाशी लिए जाने, अनचाहे ढंग से शरीरों को छुए जाने, महिलाओं को बलात्कार की धमकी देने और बन्दियों को जबरन नग्नावस्था में रखने पर चिन्ता व्यक्त की गई.
प्रमिला पैटन ने इसराइल सरकार के साथ ऐसी रिपोर्ट साझा किए जाने का ज़िक्र किया, जिन्होंने बताया कि ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए व्यवस्था है और नियमों की अवहेलना की जाँच कराए जाने की इच्छा व्यक्त की गई है.
उन्होंने निराशा जताई उनकी रिपोर्ट पर कुछ राजनैतिक पक्षों की तात्कालिक प्रतिक्रिया, इन कथित घटनाओं की जाँच शुरू करना नहीं, बल्कि सोशल मीडिया के ज़रिये उन्हें पूरी तरह से ख़ारिज करना था.
अहम सिफ़ारिशें
उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में कई अनुशंसाएँ प्रस्तुत की गई हैं, जिनमें सभी पक्षों द्वारा युद्धविराम के लिए सहमत होना और हमास द्वारा सभी बन्धकों को रिहा करना है.
विशेष प्रतिनिधि के अनुसार, इस टकराव में फँसे पक्षों ने अन्तरराष्ट्रीय क़ानून से अपनी आँखें मोड़ ली हैं.
इस क्रम में, उन्होंने इसराइल की सरकार से बिना देरी किए हुए, यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय और क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े पर अन्तरराष्ट्रीय जाँच आयोग को यात्रा की अनुमति देने का आग्रह किया.
साथ ही, इसराइल से 7 अक्टूबर को हुए मानवाधिकार हनन मामलों की पूर्ण रूप से जाँच कराए जाने के लिए कहा गया है. “सच्चाई ही शान्ति की ओर जाने वाला एकमात्र रास्ता है.”
उन्होंने, प्रासंगिक निकायों से ऐसी घटनाओं के दोषियों की जवाबदेही तय किए जाने की मांग की है.
उन्होंने कहा कि ना तो हमास द्वारा अंजाम दी गई सुनियोजित हिंसा को किसी भी प्रकार से जायज़ ठहराया जा सकता है, और ना ही ग़ाज़ा की आबादी को सामूहिक दंड को न्यायसंगत कहा जा सकता है.
“इसराइल और क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े में आम नागरिकों और उनके परिवारों को अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा उनके हाल पर, बेसहारा नहीं छोड़ा जा सकता है. यौन हिंसा में जीवित बचे लोगों और जोखिम का सामना कर रहे व्यक्तियों की रक्षा की जानी होगी और उनका समर्थन करना होगा.”
विशेष प्रतिनिधि के अनुसार भयावह घटनाओं और पीड़ा को दूर करके, मरहम, मानवता व उम्मीद को जगह देनी होगी. “बहुपक्षीय व्यवस्था की विश्वसनीयता इस पर टिकी है.”