संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने बुधवार को यह रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि 7 अक्टूबर के बाद से, भारी संख्या में पुरुषों, महिलाओं, बच्चों, डॉक्टरों, पत्रकारों और मानवाधिकार पैरोकारों को हिरासत में लिया गया है.
उनमें से अधिकतर लोगों को बिना किसी आरोप या मुक़दमे के हिरासत में रखा गया है और वो भी बहुत ख़राब परिस्थितियों में.
उन्होंने कहा कि हिरासत में रखे गए इन लोगों के साथ बुरा बर्ताव और उनका उत्पीड़न किए जाने और उचित क़ानूनी प्रक्रिया की गारंटी का हनन किए जाने की ख़बरें पर गम्भीर चिन्ता उठती है.
‘वॉटरबोर्डिंग’ के दावे
वोल्कर टर्क ने कहा, “मेरे कार्यालय और अन्य एजेंसियों को मिली गवाहियों व दस्तावेज़ों में, इसराइली अधिकारियों द्वारा हिरासत में रखे गए फ़लस्तीनी लोगों के साथ भयानक कारनामे करने के संकेत नज़र आते हैं, मसलन वॉटरबोर्डिंग और क़ैदियों पर कुत्ते छोड़ दिया जाना.”
ध्यान रहे कि वॉटरबोर्डिंग एक ऐसी पूछताछ प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति को ऐसी अवस्था मे लिटाया जाता है कि उसके पैर, उसकी सिर के स्तर से ऊँचे होते हैं. व्यक्ति के मुँह को कपड़े में ढँककर, उसके मुँह और नाक पर पर कुछ दूरी ऊपर से पानी डाला जाता है, जिसमें व्यक्ति को पानी में डूबने का अहसास होता है.
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) की इस रिपोर्ट में, 7 अक्टूबर (2023) को इसराइल में हमास के नेतृत्व में हुए हमलों के बाद से, चिकित्सा स्टाफ़, मरीज़ों, युद्ध से जान बचाकर भागने वाले लोगों और ग़ाज़ा पट्टी, पश्चिमी तट व इसराइल से हिरासत में लिए गए लड़ाकों के साथ बर्ताव का विवरण दिया गया है.
7 अक्टूबर के बाद से, इसराइली सैन्य ठिकानों व जेलों में, कम से कम 53 फ़लस्तीनी बन्दियों की मौत हो चुकी है.
रिपोर्ट तैयार करने वाले विशेषज्ञों ने लिखा है कि उन्हें नहीं मालूम की बन्दी बनाए गए ये लोग जीवित भी हैं या नहीं.
उन्होंने ऐसे परिवारों के अनुभवों का सन्दर्भ दिया है जिनके मुख्य रूप से पुरुष सदस्यों को इसराइली बलों ने हिरासत में लिया तो उन्हें हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ पहनाकर और उनकी आँखों पर पट्टी बाँधकर ले जाया गया.
“उसके बाद से इन बन्दियों के पते ठिकाने और उनके स्वास्थ्य या जीवन के बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिली है.”
अन्धाधुन्ध बन्दीकरण
रिपोर्ट में कहा गया है कि फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूएन सहायता एजेंसी – UNRWA के स्टाफ़ सहित, ग़ाज़ा में जो लोग गिरफ़्तार किए गए, उन्हें इस समय हिरासत में लिया गया जब स्कूलों, अस्पतालों और रिहायशी इमारतों में पनाह लिए हुए थे, या फिर लोगों को ग़ाज़ा के उत्तर से लेकर दक्षिणी इलाक़े में जबरन विस्थापन के दौरान बन्दी बनाया ग.
रिपोर्ट के अनुसार, “अधिकतर मामलों में तो पुरुषों व किशोर आयु के लड़कों को बन्दी बनाया गया, अलबत्ता कुछ महिलाओं को भी हिरासत में लिया गया, जिनमें अलज़ीमर से पीड़ित एक 80 वर्षीय महिला और एक लड़की भी शामिल थीं, जिनके सशस्त्र गुटों से कोई स्पष्ट सम्बन्ध स्थापित नहीं हुए.”
OHCHR की ये रिपोर्ट रिहा किए गए फ़लस्तीनी बन्दियों के साथ बातचीत के साथ-साथ, इसराइल द्वारा क़ाबिज़ फ़लस्तीनी क्षेत्र में, यूएन मानवाधिकार कार्यालय द्वारा किए गए निगरानी व विश्लेषण के आधार पर तैयार की गई है.
नंगा किया गया
रिपोर्ट में बताया गया है कि ग़ाज़ा के अलावा पश्चिमी तट और इसराइल में भी हज़ारों फ़लस्तीनियों को बन्दी बनाया गया है, और आमतौर पर ये बन्दीकरण ख़ुफ़िया रूप में हुआ है.
रिपोर्ट के अनुसार, बन्दियों ने बताया कि उन्हें पिंजरे जैसे हालात में रखा गया, लम्बी अवधियों तक नंगा रखा गया, केवल डाइपर्स पहनाया गया.
बन्दियों की गवाहियों में बताया गया है कि लम्बे समय तक उनकी आँखों पर पट्टी बाँधकर रखी गई, भोजन, नीन्द और पानी से वंचित रखा गया और बिजली के झटके लगाए गए व सिगरेट से भी जलाया गया… कुछ महिलाओं व पुरुषों ने यौन व लिंग आधारित हिंसा की भी बात की है.
रिपोर्ट के अनुसार, इसराइल ने अनेक बन्दियों के पते-ठिकाने और उनके स्वास्थ्य के बारे में कोई जानकारी मुहैया नहीं कराई है, और अन्तरराष्ट्रीय रैडक्रॉस समिति को भी उन ठिकानों तक नहीं पहुँचने दिया गया है जहाँ उन बन्दियों को रखा गया है.
यूएन मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टर्क ने, कहा है कि अन्तरराष्ट्रीय क़ानून, उत्पीड़न और अन्य तरह के दुर्व्यवहार को सख़्ती से निषिद्ध करता है, जिनमें बलात्कार और अन्य प्रकार की हिंसा भी शामिल है.
उसके अलावा लोगों को ख़ुफ़िया तरीक़े से, लम्बी अवधि तक अज्ञात स्थानों पर बन्दी बनाकर रखा जाना, उत्पीड़न का एक रूप माना जा सकता है.