ILO की गुरूवार को जारी एक नई रिपोर्ट – ‘विश्व रोज़गार और सामाजिक परिदृश्य: रुझान 2025’ यह बात कही गई
है.
यह रिपोर्ट, वैश्विक अर्थव्यवस्था की मन्दी को उजागर करती है. इससे श्रम बाज़ार प्रभावित हो रहे हैं और पिछली आर्थिक मन्दी से उबरने की प्रगति बाधित हो रही है.
रिपोर्ट के अनुसार, 2024 मेंवैश्विक रोज़गार में वृद्धि, श्रम शक्ति के अनुरूप हुई, जिससे बेरोज़गारी दर, उससे पिछले वर्ष की तरह स्थिर रही.
दूसरी ओर, युवा लोगों को बहुत अधिक बेरोज़गारी दर का सामना करना पड़ा, जिसमें सुधार के बहुत कम संकेत हैं.
अनौपचारिक काम और कामकाजी ग़रीब के रूप में वर्गीकृत लोग, महामारी से पहले के स्तर पर लौट गए हैं, और कम आय वाले देशों को अपने नागरिकों के लिए, अच्छे रोज़गार सृजित करने में सबसे अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है.
बुनर्बहाली की चुनौतियाँ
श्रम परिदृश्य के अनुसार, वर्ष 2024 में, वैश्विक अर्थव्यवस्था ने मध्यम दर से विस्तार करना जारी रखा, जो वर्ष के अन्त में धीमी हो गया. यह मध्यम वृद्धि पूरे वर्ष 2025 के दौरान, और मध्यम अवधि में जारी रहने की अपेक्षा है.
वैसे तो मुद्रास्फीति की दर में कमी आई है, मगर अर्थव्यवस्था, आय में कोविड महामारी से सम्बन्धित नुक़सान से पूरी तरह से उबर नहीं पाई है. इसके लिए कमज़ोर रोज़गार वृद्धि भी आंशिक रूप से ज़िम्मेदार है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि वास्तविक मज़दूरी केवल कुछ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में ही बढ़ी है – और अधिकांश देश अब भी पिछले संकटों के प्रभावों से उबर रहे हैं.
श्रम बल में भागेदारी में गिरावट
कम आय वाले देशों में श्रम बल में भागेदारी में गिरावट आई है, जबकि उच्च आय वाले देशों में लगातार वृद्धि हो रही है – मुख्य रूप से वृद्ध श्रमिकों और महिलाओं में.
फिर भी, कार्यबल में महिलाओं की कम संख्या के साथ, लिंग अन्तर व्यापक बना हुआ है, जिससे जीवन स्तर में प्रगति सीमित रही है.
युवा पुरुषों की हिस्सेदारी में तेज़ी से गिरावट आई है, जिनमें से बहुत से लोग शिक्षा, रोज़गार या प्रशिक्षण (NEET) कार्यक्रमों से वंचित हैं, जिससे उनके हालात, आर्थिक चुनौतियों के लिए अति संवेदनशील यानि कमज़ोर हो गए हैं.
दुनिया भर में ऐसे लोगों की अनुमानित संख्या वर्ष 2024 में 40.2 करोड़ तक पहुँच गई जो रोज़गार वाला कामकाज करना चाहते हैं, मगर उनके पास रोज़गार परक काम नहीं है .
इस संख्या में 18.6 करोड़ बेरोज़गार और 13.7 करोड़ ऐसे लोग शामिल हें जो अस्थाई रूप से काम करने के लिए उपलब्ध नहीं हैं.
इस आँकड़े में ऐसे 7.9 करोड़ हतोत्साहित कर्मचारी भी शामिल हैं जिन्होंने निराश होकर, रोज़गार परक कामकाज की तलाश करना ही बन्द कर दिया है.
हरित और डिजिटल क्षेत्रों में नए अवसर
अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन के इस अध्ययन में, हरित ऊर्जा और डिजिटल प्रौद्योगिकियों में, रोज़गार परक कामकाज में वृद्धि की सम्भावना को रेखांकित किया गया है.
सौर और हाइड्रोजन ऊर्जा में निवेश से प्रेरित होकर, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में रोज़गार परक कामकाज, दुनिया भर में 1.62 करोड़ तक बढ़ गए हैं. हालाँकि, ये कामकाज असमान रूप से वितरित हैं, जिनमें से लगभग आधे, पूर्वी एशिया में स्थित हैं.
डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ भी रोज़गार के अवसर प्रदान कर रही हैं, लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुत से देशों में इस प्रगति से पूरी तरह से लाभ उठाने के लिए बुनियादी ढाँचे और कौशल की कमी है.
नवीनतम समाधान
ILO के महानिदेशक गिलबर्ट हौंगबो ने तत्काल कार्रवाई किए जाने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा है, “सामाजिक न्याय और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने के लिए, बेहतर आय व परिस्थितियों वाला कामकाज व उत्पादक रोज़गार आवश्यक हैं.”
रिपोर्ट की सिफारिशों में, कौशल प्रशिक्षण में निवेश करके उत्पादकता को बढ़ावा देना, सामाजिक सुरक्षा का विस्तार करना और कम आय वाले देशों में स्थानीय विकास का समर्थन करने के लिए, निजी धनराशि के उपयोग को प्रोत्साहित करना शामिल है.
गिलबर्ट हौंगबो ने निष्कर्षतः कहा है, “हमें, पहले से ही तनाव से ग्रस्त सामाजिक सामंजस्य पर और दबाव को टालने, बढ़ते जलवायु प्रभावों और बढ़ते क़र्ज़ को और अधिक बढ़ाने से बचने के लिए, श्रम बाज़ार की चुनौतियों से निपटने और एक अधिक निष्पक्ष, अधिक टिकाऊ भविष्य बनाने के लिए अभी से कार्य करना होगा.”