इस वर्ष, आतंकवाद पीड़ितों के सम्मान व स्मृति में अन्तरराष्ट्रीय दिवस की थीम है: “शान्ति की आवाज़ें: आतंकवाद से पीड़ित जन – शान्ति के पैरोकार और शिक्षकों को रूप में.”
इसके तहत, सभी पीड़ितों और जीवित बचे लोगों की आवाज़ें बुलन्द करने का आहवान किया गया है. साथ ही, उनकी कहानियों व अनुभवों के ज़रिए, आतंकवाद से उपजी असहनीय पीड़ा को कम करने व जागरूकता बढ़ाने के महत्व पर प्रकाश डाला गया है, जिससे अंतत: सकारात्मक बदलाव सम्भव हो.
यह दिवस, 2017 में आतंकवाद के पीड़ितों व बचे हुए लोगों को सम्मान व समर्थन देने के लिए यूएन महासभा द्वारा स्थापित किया गया था. इसका मक़सद था, मानवाधिकारों व आज़ादी के मौलिक सिंद्धान्तों को प्रोत्साहन देना.
ज़ख़्म कभी नहीं भरते
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने अपने वक्तव्य में कहा कि आतंकवादी गतिविधियों से, “अकल्पनीय पीड़ा की लहर” उत्पन्न होती है.
उन्होंने कहा, “पीड़ितों के प्रत्यक्ष तथा न दिखने वाले – दोनों तरह के घाव कभी भी पूरी तरह भर नहीं पाते हैं.”
लेकिन साथ ही उन्होंने स्वीकार किया कि इस पीड़ा व त्रासदी के दौरान, मानवता की सहनसक्षमता एवं सहनशक्ति के अभूतपूर्व उदाहरण भी सामने आते हैं.
यूएन महासचिव ने कहा कि वो आतंकवाद के पीड़ितों और जीवित बचे सभी लोगों का सम्मान करते हैं. उन्होंने कहा कि इनमें वो लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने अपनी दृढ़ता व क्षमा करने की कहानियाँ साझा की हैं – जो “बेहद साहस का काम है”.
उन्होंने कहा, “इस दिवस पर, हमें उनकी बात सुनकर, उससे सबक़ सीखना चाहिए. और यह हमें याद दिलाता है कि हमें हमेशा उम्मीद की किरण ढूँढनी चाहिए.”
‘दोबारा जीना’ सीखना
आतंकवाद का मुक़ाबला करते समय मानवाधिकारों एवं मौलिक स्वतंत्रता की सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ, बेन साउल ने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय स्मृति दिवस, आतंकवाद पीड़ितों और बचे लोगों की रक्षा के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयासों को नवीनीकृत करने का अवसर प्रदान करता है.
कई पीड़ितों का जीवन इन हमलों के कारण बदतर हो गया है. वो न केवल शारीरिक, बल्कि रोज़गार या अपनों के खोने या फिर पढ़ाई पर ध्यान न केन्द्रित कर पाने जैसे मनोवैज्ञानिक घावों को शिकार हो जाते हैं.
बेन साउल ने कहा, “मैं उन असंख्य पीड़ितों का सम्मान करता हूँ, जिन्होंने अदम्य साहस व सहनसक्षमता का परिचय देते हुए ‘दोबारा जीना सीखा,’ जिसमें बहुत बार उनके परिवारों, मित्रों व समुदायों का सहयोग शामिल था.
देश का समर्थन आवश्यक
बेन साउल ने कहा कि पीड़ितों को अपना जीवन दोबारा पटरी पर लाने के लिए, अपनी सरकारों से “व्यापक व लगातार समर्थन” की आवश्यकता होती है.
उन्होंने कहा कि सभी देशों को, पीड़ितों के लिए लम्बे समय तक सहायता जारी रखनी चाहिए, जिसमें उनकी सुरक्षा व न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करने के अलावा, चिकित्सा व मनोवैज्ञानिक समर्थन शामिल हो.
उन्होंने स्वतंत्र जाँच, जवाबदेही, व पीड़ितों का समर्थन सुनिश्चित करने के लिए अन्तरराष्ट्रीय एकजुटता, और ख़ासतौर पर संवेदनशील समुदायों के पीड़ितों को क़ानूनी कार्यवाही में पूरी तरह शामिल करने पर बल दिया.
बेन साउल ने कहा, “”मैं ऐसे किसी भी देश को परामर्श देने के लिए तैयार हूँ, जो आतंकवाद के पीड़ितों की सुरक्षा मज़बूत करना चाहता हो, आतंकवाद का मुक़ाबला करते समय अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के पालन में सुधार करना चाहता हो, या आतंकवाद पनपने वाली स्थितियों का समाधान निकालना चाहता हो.”
मानवाधिकार विशेषज्ञ, मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त किए जाते हैं और वे अपनी व्यक्तिगत क्षमता में काम करते हैं. वो यूएन प्रणाली या किसी भी राष्ट्र का हिस्सा नहीं होते और उन्हें उनके इस काम के लिए, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.