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आज BJP पर हिंदू-मुस्लिम करने का आरोप लगाने वाली कांग्रेस ने जब आजादी के तुरंत बाद अयोध्या उपचुनाव को दे दिया था सांप्रदायिक रंग

आज BJP पर हिंदू-मुस्लिम करने का आरोप लगाने वाली कांग्रेस ने जब आजादी के तुरंत बाद अयोध्या उपचुनाव को दे दिया था सांप्रदायिक रंग

लेख: बृजेश शुक्ल

Ram Mandir Inauguration: ये बात है साल 1948 की… अयोध्या (Ayodhya) की सड़कों पर पोस्टर लगे थे, जिसमें आचार्य नरेंद्र देव (Acharya Narendra Dev) के 10 सर दिखाए गए थे और उन्हें रावण बताया गया था। उनके सामने कांग्रेस (Congress) प्रत्याशी बाबा राघव दास (Raghav Das) थे, जो धनुष बाण लिए राम की भूमिका में खड़े रावण का वध कर रहे थे । पोस्टर में लिखा था की ‘यदि कांग्रेस प्रत्याशी बाबा राघव दास जीते, तो राम जन्मभूमि को विधर्मियों के चंगुल से मुक्त कराया जाएगा और बाबरी मस्जिद (Babri Masjid) को हटाकर वहां राम मंदिर (Ram Mandir) का निर्माण होगा।’

कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे, बाबा राघव दास भी अपनी हर सभा में संकल्प ले रहे थे कि अगर वह अयोध्या विधान सभा का चुनाव जीते, तो राम जन्मभूमि को मुक्त कराया जाएगा और विधर्मियों की बाबरी मस्जिद को हटा दिया जाएगा। अयोध्या की यह चुनावी लड़ाई बहुत रोचक हुई थी।

बाबा राघव दास अपनी हर जनसभा में बहुत ही आक्रामक शैली से बाबरी मस्जिद और उसके समर्थकों पर हमला बोलते थे और कहते थे की राम जन्मभूमि पर इस तरह का बाबरी ढांचा खड़ा कर देना पूरे देश और समाज के लिए शर्मनाक है और अयोध्या के लिए भी।

जो लोग बाबरी आंदोलन को केवल संघ परिवार या BJP का आंदोलन समझ रहे हैं, उन्हें शायद ये इतिहास नहीं मालूम कि आजादी के बाद राम मंदिर बनाने का सबसे पहला वादा कांग्रेस ने ही किया था। वादा ये भी था कि बाबरी मस्जिद को हटाकर, वहां पर राम मंदिर का निर्माण होगा।

क्यों हुआ था अयोध्या में उपचुनाव?

आचार्य नरेंद्र देव सहित सभी समाजवादियों का कांग्रेस से मतभेद था। कांग्रेस और समाजवादियों के बीच मतभेद गहराते जा रहे थे और आखिरकार 13 समाजवादी विधायकों ने अपनी सदस्यता से इस्तीफा दे दिया, उनमें आचार्य नरेंद्र देव भी शामिल थे।

समाजवादी चाहते थे की महात्मा गांधी की सलाह मान कर आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी को भंग कर दिया जाए, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। आचार्य नरेंद्र देव के विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने से अयोध्या में आजादी के बाद पहला उपचुनाव हुआ।

कांग्रेस ने चतुराई से एक हिंदूवादी नेता और समाज सुधारक बाबा राघव दास को पार्टी का टिकट दे दिया। वैसे बाबा राघव दास देवरिया के बरहज के रहने वाले थे और मूल रूप से वह महाराष्ट्र के निवासी थे। बरहज में उनका आश्रम था और वहां पर वह समाज सेवा के काम में लगे थे।

पंडित गोविंद बल्लभ पंत जानते थे कि अयोध्या का उपचुनाव इतना आसान नहीं है, क्योंकि वहां पर आचार्य नरेंद्र देव का गहरा प्रभाव था और उनके प्रभाव के चलते कांग्रेस का चुनाव जीत पाना मुश्किल।

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पंत ने रणनीति के तहत बाबा रघुवर दास मैदान में उतार दिया। बाबा ने मैदान में उतरते ही आचार्य नरेंद्र देव को नास्तिक और रावण घोषित कर दिया। चुनाव में यह कहा गया की एक नास्तिक अगर अयोध्या का विधायक हो गया, तो फिर अयोध्या नगरी की गरिमा नष्ट हो जाएगी।

दरअसल आचार्य नरेंद्र देव बौद्ध धर्म से प्रभावित थे और समाजवादी चिंतक थे। बाबा राघव दास ही नहीं बल्कि पूरी कांग्रेस पार्टी आचार्य को हराने के लिए किसी हद तक जाने को तैयार थी। इस चुनाव की जानकारी दिल्ली तक पहुंच रही थी और मुख्यमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत के पास भी। लेकिन पंत जी बाबा राघव दास के साथ खड़े थे।

उत्तर प्रदेश कांग्रेस में आपसी मतभेद थे और यहां पर पंडित गोविंद बल्लभ पंत का दबदबा था। पंडित जवाहरलाल नेहरू भी जानते थे की अयोध्या चुनाव में उत्तर प्रदेश कांग्रेस आक्रामक और हिंदुत्ववादी चुनाव प्रचार के साथ खड़ी है।

एक सच ये भी है कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस इकाई पूरी तरह से आचार्य नरेंद्र देव के खिलाफ भी थी और बाबा राघव दास के समर्थन में खड़ी थी। बाबा राघव दास के तीखे भाषणों से अयोध्या का माहौल बदल गया।

आजादी के तुरंत बाद ही संप्रदायिक हुई कांग्रेस!

यह विडंबना है की जो कांग्रेस आज बीजेपी पर आरोप लगा रही है कि वह चुनाव में हिंदू मुस्लिम करती है, लेकिन इसकी शुरुआत कांग्रेस ने की थी वो भी आजादी के तुरंत बाद। कांग्रेस नेताओं ने तब अयोध्या चुनाव में जो भाषण दिए थे, वे कहीं ज्यादा तीखे थे। यह इतिहास में दर्ज है।

चुनाव में बाबा राघव दास चुनाव जीत गए और उन्होंने आचार्य नरेंद्र देव को 1200 वोटों से हरा दिया। इसके बाद अयोध्या आंदोलन एक नए ढंग से शुरू हुआ, जिसमें वादा था- गुलामी के ढांचे को हटाकर राम जन्मभूमि का।

चुनाव जीतने के बाद बाबा राघव दास ने भरी सभा में संकल्प भी लिया कि वह अपने वादे को पूरा करेंगे। किसी भी सूरत पर जन्म भूमि पर भगवान राम विराजमान होंगे। अगर राम लला की मूर्ति स्थापित नहीं की तो वह अपने पद से इस्तीफा दे देंगे।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की गोविंद बल्लभ पंत और पूरी कांग्रेस कमेटी बाबा राघव दास के संकल्प के साथ नजर आई। महत्वपूर्ण तथ्य है कि इस मुद्दे पर बाबा राघव दास के साथ देश के तमाम ऐसे महत्वपूर्ण संत खड़े थे, जिनका बहुत प्रभाव था।

इनमें से एक थे गोरक्ष पीठ के महंत अवैद्यनाथ और कल्याण के संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार भाई थे। यही नहीं अयोध्या के प्रसिद्ध संत बाबा अभिराम दास भी बाबा राघव दास के साथ ही थे। बाबा राघव दास के जीतते ही इस बात की योजनाएं बनने लगी कि कैसे रामलला को फिर से उनकी जन्म भूमि में स्थापित किया जाए यानी बाबरी मस्जिद में। बैठकों का दौर शुरू हुआ और उसमें अयोध्या के कुछ संत और महंत अवैद्यनाथ कल्याण के संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार शामिल होते थे।

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