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अमेठी से लड़ रहे थे राजीव गांधी, वोटिंग के अगले ही दिन हो गई थी हत्या, आज भी उस चुनाव को याद कर सिहर जाते हैं कांग्रेस नेता

आज एक बार फिर उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट चर्चाओं में है। क्योंकि लंबे संशय और इंतजार के बाद कांग्रेस पार्टी ने शुक्रवार तड़के यहां से अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर दिया। देश की सबसे पुरानी पार्टी ने अमेठी से इस बार एक नए चेहरे पर दांव लगाया है और वो नया नाम है- किशोरी लाल शर्मा। 25 साल में पहली बार गांधी परिवार का कोई सदस्य अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव नहीं लड़ेगा। 1967 में अमेठी लोकसभा सीट का गठन हुआ, तब से इसे गांधी परिवार का गढ़ माना जाता रहा है, क्योंकि करीब 31 सालों तक इस सीट से गांधी परिवार का ही कोई न कोई सदस्य चुनाव जीतता रहा है।

यूं तो अमेठी सीट से संजय गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी सांसद चुन कर लोकसभा पहुंचे, लेकिन जितना प्यार अमेठी की जनता ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को दिया को दिया, उतना गांधी परिवार के किसी दूसरे सदस्यों नहीं मिला।

1977 के चुनाव में हुई गांधी परिवार की एंट्री

अमेठी में गांधी परिवार की एंट्री 1977 के चुनाव में हुई। जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी यहां से लोकसभा चुनाव लड़ने पहुंचे, लेकिन जनता पार्टी के रवींद्र प्रताप सिंह ने उन्हें शिकस्त दे दी है। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि ये इमरजेंसी के बाद का चुनाव था और जनता में इंदिरा, संजय और कांग्रेस तीनों के खिलाफ ही नाराजगी थी।

हालांकि, 1980 के आम चुनाव में संजय गांधी ने बाजी पलट दी और अमेठी में गांधी परिवार की नींव रखी, लेकिन उसी साल संजय की एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई और अमेठी सीट खाली हो गई।

संजय गांधी के बाद चुनाव लड़ने अमेठी आए राजीव

अब यहां से इस कहानी में एंट्री होती है, राजीव गांधी की, जो अपने छोटे भाई के निधन के बाद खाली हुई अमेठी लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने पहुंचते हैं। 1981 के उपचुनाव में राजीव गांधी बड़े दो लाख से ज्यादा वोटों से अपने विरोधी उम्मीदवार को हरा देते हैं और अमेठी में शानदार जीत हासिल करते हैं।

इसके बाद 1984, 1989, 1991 के चुनाव में राजीव लगातार चौथी बार जीतते हैं। हालांकि, किसी को ये मालूम नहीं था कि 1991 का वो चुनाव, राजीव गांधी का आखिरी चुनाव होगा।

20 मई को वोटिंग और 21 मई को राजीव की हत्या

1991 के आम चुनाव के दौरान 20 मई को अमेठी में मतदान हुआ और मैदान में थे- कांग्रेस पार्टी के राजीव गांधी और बीजेपी के रवींद्र प्रताप सिंह। इसके अगले ही दिन 21 मई को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी रैली के दौरान राजीव गांधी लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) के आत्मघाती हमले का शिकार हो गए। उस चुनावी रैली के दौरान धनु नाम की LTTE की एक आत्मघाती हमलावर ने उनकी हत्या कर दी थी।

देश और दुनिया को हिला देने वाली इस घटना के बाद, जब इस चुनाव में पड़े वोटों की गिनती की गई, तो राजीव गांधी 53.23 प्रतिशत वोटों के साथ विजयी हुए, जबकि रवींद्र प्रताप सिंह को 21.35 प्रतिशत वोट मिले।

अमेठी की जनता ने इस बार भी राजीव गांधी को खूब प्यार दिया, लेकिन दुर्भाग्य कि ये देखने के लिए राजीव इस दुनिया में नहीं रहे। उन्होंने 1,12,085 वोटों के जबरदस्त अंतर से ये चुनाव जीता था।

राजीव गांधी के निधन के बाद हुआ उपचुनाव

राजीव गांधी के निधन के बाद, अमेठी में उपचुनाव जरूरी हो गया था। इस उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी ने बीजेपी के एमएम सिंह के खिलाफ सतीश शर्मा को मैदान में उतारा था। शर्मा राजीव और सोनिया गांधी दोनों के करीबी थे।

चुनावी प्रक्रिया के बाद, शर्मा 53.88 प्रतिशत वोटों के साथ विजयी हुए, जबकि सिंह को 24 प्रतिशत वोट मिले। सतीश शर्मा को कुल 178,996 वोट मिले, जबकि सिंह को 79,687 वोट मिले। इसके अलावा निदर्लीय उम्मीदवार आर सिंह 47,033 वोट हासिल करने में सफल रहे।

अमेठी से अपने जीवन की राजनीतिक पारी शुरू करने वाले राजीव गांधी ने एक के बाद एक लगातार चार चुनाव जीते और ये भी एक संयोग ही है कि अपने जीवना का आखिरी चुनाव भी उन्होंने अमेठी से ही लड़ा और जनता ने भी उन्हें खूब प्यार दिया।

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