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अफ़ग़ानिस्तान: 14 लाख महिलाएँ शिक्षा से वंचित, 80% महिलाएँ निर्धन रेखा के नीचे

अफ़ग़ानिस्तान: 14 लाख महिलाएँ शिक्षा से वंचित, 80% महिलाएँ निर्धन रेखा के नीचे

17 मार्च को आयोजित इस कार्यक्रम का विषय था: अफ़ग़ान महिलाओं और लड़कियों को अपना जीवन फिर से बनाने और देश को उबारने में शिक्षा व आर्थिक सशक्तिकरण की भूमिका.

इस दौरान, तालेबान शासन में देश की महिलाओं व लड़कियों के सामने आने वाली चुनौतियों और उनके समाधानों पर चर्चा हुई, मसलन, शिक्षा और रोज़गारों तक सीमित पहुँच, ऑनलाइन शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, उद्यमिता वग़ैरा.

80 प्रतिशत अफ़ग़ान महिलाएँ ग़रीबी रेखा के नीचे

संयुक्त राष्ट्र में अफ़ग़ानिस्तान के स्थाई मिशन के राजदूत नसीर अहमद फ़ैक ने कहा, “तालेबान के अवैध शासन का चौथा वर्ष चल रहा है और महिलाओं की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. वो न सिर्फ़ शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित हैं, बल्कि उन्हें रोज़गार की अनुमति तक नहीं है.”

अफ़ग़ानिस्तान में लगातार अस्थिरता के कारण, बड़ी आबादी को निर्धनता का सामना करना पड़ रहा है.

उन्होंने कहा, “आर्थिक स्वतंत्रता के लिए समाज का योगदान और निजी सम्मान सबसे अहम होता है. नैतिकता की आड़ में लागू इन क़ानूनों से महिलाओं को व्यवस्थागत ढंग से सार्वजनिक जीवन से अलग किया जा रहा है. आज 14 लाख अफ़ग़ान महिलाएँ और लड़कियाँ स्कूल और विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा से वंचित हैं. महिला श्रम बल गिरकर 4.8 प्रतिशत पर पहुँच गया है.”

इस बैठक में चर्चा हुई कि अफ़ग़ानिस्तान में क़रीब 80 प्रतिशत महिलाएँ ग़रीबी रेखा के नीचे जीवन जी रही हैं. उनके आर्थिक बहिष्कार से न सिर्फ़ ग़रीबी बढ़ी है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था के उबरने और समृद्धि की दिशा में बाधा उत्पन्न हुई है. इन सभी चुनौतियों के बावजूद, अफ़ग़ान महिलाएँ ऑनलाइन माध्यमों और भूमिगत स्कूलों के ज़रिए शिक्षा हासिल कर रही हैं.

आर्थिक और राजनैतिक अधिकारों का हनन

अफ़ग़ानिस्तान के मानवाधिकार आयोग के कार्यकारी निदेशक मूसा महमूदी ने कहा, “अधिकारों के इस व्यवस्थागत और नीतिगत हनन से आख़िर तालेबान क्या चाहते हैं, इस विषय में सटीक जानकारी पाना मुश्किल है क्योंकि तालेबान किसी मामले में पारदर्शिता नहीं रखते हैं.”

उन्होंने कहा, “मगर, कुछ कारण सामने आए हैं, जैसेकि: शरिया क़ानून को मानना, जिसमें महिलाओं को शिक्षा की मनाही है. तालेबान शासन परम्परात तौर-तरीक़े ही अपनाना चाहते हैं और वैश्विक नियम-क़ानूनों को मान्यता नहीं देते, और वे महिलाओं के सशक्तिकरण व शिक्षा को, अपनी सत्ता के लिए चुनौती मानते हैं.

विंडो फ़ॉर होप की संस्थापक और कार्यकारी निदेशक नेगिना यारी ने कहा, “वैश्विक समुदाय को, अफ़ग़ान महिलाओं का साहस और अपने अधिकारों को वापिस पाने की चाह को देखते हुए, कार्रवाई करनी होगी. तालेबान शासन में कोई संविधान नहीं है, क़ानून नहीं है और न ही क़ानूनी सुरक्षा है. महिलाओं के आर्थिक और राजनैतिक अधिकार छीन लिए गए हैं.

तालेबान ने देश को कई दशकों पीछे धकेला

अफ़ग़ानिस्तान में बहुत सी किशोर वय लड़कियों को, तालेबान ने, प्राथमिक स्कूली शिक्षा के बाद शिक्षा हासिल करने से रोक दिया है.

CSW69 के वार्षिक सत्र के दौरान ही एक अन्य कार्यक्रम में, अफ़ग़ानिस्तान के अन्दर रहने वाली और निर्वासन में ज़िन्दगी गुज़ार रही अफ़ग़ान महिलाओं से सम्बन्धित मुद्दों पर चर्चा हुई. इस चर्चा का विषय था: अफ़ग़ानिस्तान से न्यूयॉर्क तक: कार्रवाई की मांग करती अफ़ग़ान महिलाएँ.

इसमें, अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं को, महत्वपूर्ण निर्णय लेने की प्रक्रियाओं से बाहर रखे जाने पर बात चर्चा हुई. चर्चा के दौरान, अफ़ग़ान राजदूत नसीर अहमद फ़ैक ने कहा, “स्वास्थ्य क्षेत्र में महिलाओं के लिए लगे हालिया प्रतिबन्धों से, सार्वनजिक स्वास्थ्य बुरी तरह से प्रभावित होगा. इसमें सबसे अधिक जच्चा-बच्चा स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा. अब तक हुए विकास की गति रुक जाएगी.”

FARAGEER की संस्थापक और अफ़ग़ानिस्तान की पूर्व खनन व पैट्रोलियम मंत्री नरगिस नेहान ने सत्र के दौरान कहा, “जारी भेदभाव ने अफ़ग़ान महिलाओं की गरिमा, आजीविका, स्वास्थ्य और सामाजिक भागेदारी को तबाह कर दिया है.”

उन्होंने कहा, “तालेबान ने, केवल तीन वर्षों में, देश को कई दशक पीछे धकेल दिया है. महिलाओं को घरों में क़ैद कर दिया है और युवा लड़कों को धार्मिक उन्मादी बनाया जा रहा है. अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वाली युवा लड़कियों को यातना, बलात्कार और यहाँ तक की मृत्यु का सामना करना पड़ रहा है.”

उन्होंने, आर्थिक स्थिति पर भी चिन्ता व्यक्त की और कहा, “देश भीषण ग़रीबी से जूझ रहा है और संयुक्त राज्य अमेरिका की धन-कटौती ने स्थिति को और और भी बदतर बना दिया है. अफ़ग़निस्तान, उन देशों में शामिल है, जो बाहरी धन सहायता पर बहुत हद तक निर्भर हैं.”

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