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अफ़ग़ानिस्तान: महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों का दमन, तुरन्त रोके जाने की मांग

अफ़ग़ानिस्तान: महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों का दमन, तुरन्त रोके जाने की मांग

विशेष रैपोर्टेयर के समूह ने शुक्रवार को जारी अपने एक वक्तव्य में सत्तारुढ़ तालेबान से महिलाओं और लड़कियों पर थोपी गई सख़्त पाबन्दियों को वापिस लेने और हिरासत में रखी गई महिलाओं व लड़कियों को तुरन्त रिहा करने का आग्रह किया.

मानवाधिकार विशेषज्ञों का मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान में अगस्त 2021 में तालेबान के सत्ता में आने के बाद से महिलाओं व लड़कियों के लिए हालात बेहद ख़राब हुए हैं. 

उनकी शिक्षा, रोज़गार, अभिव्यक्ति, निजता, आवाजाही, स्व-निर्णय की क्षमता और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी पर असर हुआ है, और ऐसे क़दम समाज में उनके साथ संस्थागत भेदभाव को बढ़ाता देता और उनके लिए जगह को समेटता है. 

उन्होंने कहा कि महिलाओं को उनके अधिकारों व आज़ादी से वंचित रखे जाने की यह नई लहर, उनके लिए पहले से ही गम्भीर रूप से सीमित अभिव्यक्ति, आवाजाही की आज़ादी को सीमित करती है और उनके मानवाधिकारों व स्व-निर्णय के अधिकार का हनन है.  

“इस व्यापक और व्यवस्थागत भेदभाव को थोपे जाने के लिए ज़िम्मेदार व्यक्तियों की उनके इन क़दमों के लिए जवाबदेही तय की जानी होगी.”

मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों ने तालेबान प्रशासन से अपील की है कि अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के तहत अफ़ग़ानिस्तान के लिए तयशुदा दायित्व का अनुपालन किया जाना होगा, जिनमें महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर केन्द्रित सन्धि भी है.

साथ ही, मानवाधिकार, ग़ैर-भेदभाव और क़ानून के राज के सिद्धान्तों को बरक़रार रखने की दिशा में काम किया जाना होगा.

‘पोशाक संहिता का उल्लंघन’

प्राप्त जानकारी के अनुसार, महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध इस अभियान की शुरुआत पश्चिमी काबुल में हुई, जहाँ मुख्यत: हज़ारा आबादी बसी है. 

इसके बाद, यह तेज़ी से ताजिक समुदाय की आबादी वाले इलाक़ों समेत शहर के अन्य हिस्सों में फैल गया, और फिर बामियान, बाग़लान, बाल्ख और कुन्दुज़ समेत अन्य प्रान्तों में. 

उन्हें ख़रीदारी केन्द्रों, स्कूलों, सड़क पर सजाए गए बाज़ारों समेत अन्य सार्वजनिक स्थलों पर गिरफ़्तार व हिरासत में लिया गया है. 

महिलाओं व लड़कियों को ख़राब ढंग से हिजाब पहनने के आरोप में जबरन पुलिस वाहनों में ले जाया गया और उसके बाद उन्हें बिना किसी सम्पर्क के रखा गया. 

तालेबान प्रशासन ने दावा किया है कि हिरासत में ली गई महिलाओं व लड़कियों ने आदेश के विपरीत, रंग-बिरंगे और कसे हुए परिधान पहने हुए थे. 

मई 2022 में, तालेबान ने सभी महिलाओं को सार्वजनिक स्थलों पर उपयुक्त ढंग से हिजाब, जैसेकि मुँह और शरीर ढंकने के लिए एक ढीला-ढाला काला वस्त्र पहनने का आदेश दिया था.

महिलाओं के साथ बुरा बर्ताव

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने चिन्ता जताई कि महिलाओं व लड़कियों को पुलिस स्टेशन में बेहद भीड़भाड़ वाले माहौल में रखा गया है, जहाँ उन्हें दिन में केवल एक बार ही खाना दिया जा रहा है.

कुछ महिलाओं के साथ शारीरिक हिंसा हुई है, उन्हें धमकियाँ मिली हैं और डराया-धमकाया गया है. “उनके लिए क़ानूनी प्रतिनिधित्व, न्याय या मुआवज़े तक पहुँच सम्भव नहीं है.”

विशेष रैपोर्टेयर के अनुसार, महिलाओं व लड़कियों को रिहा किया जाना, सम्बन्धित परिवारो के पुरुष रिश्तेदारों या समुदाय में बुज़ुर्गों पर निर्भर है, जिन्हें लिखित में आश्वासन देना है कि भविष्य में पोशाक संहिता का पालन किया जाएगा.

कुछ महिलाओं व लड़कियों को हिरासत में लिए जाने के कुछ ही घंटों के भीतर छोड़ दिया गया, जबकि अन्य को पिछले कई दिनों व हफ़्तों से रखा गया है, जोकि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी को दर्शाता है.

इस आदेश का पालन करने के लिए पुरुष रिश्तेदार को ज़िम्मेदारी सौंपी गई, जिसका पालन ना करने पर दंड दिया जाना था.

मानवाधिकार विशेषज्ञ

विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं. 

उनकी नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिये करती है. ये पद मानद होते हैं और मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.

इस वक्तव्य पर दस्तख़त करने वाले मानवाधिकार विशेषज्ञों के नाम यहाँ देखे जा सकते हैं.

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