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अफ़ग़ानिस्तान: मधुमक्खी पालन से मधुर भविष्य की बुनियाद

अफ़ग़ानिस्तान: मधुमक्खी पालन से मधुर भविष्य की बुनियाद

सफ़ेद सुरक्षात्मक लिबास, दस्ताने और चेहरे को ढकने वाली जालीदार टोपी पहने हादिया, सावधानी से मधुमक्खी की छत्ता-पेटी से एक लकड़ी का चौखटा उठाती हैं. सैकड़ों मधुमक्खियों का झुंड उनके चारों ओर फैल जाता है. फिर वो चौखटे के अन्दर बने छत्ते से, धीरे से अन्य मधुमक्खियों को हटाती है और चौखटे को एक बक्से में रखकर, शहद निकालने के लिए घर ले जाती हैं. ऐसा करते हुए उनके चेहरे पर एक घबराहट भरी मुस्कान साफ़ देखी जा सकती है.

तीन बच्चों की माँ हादिया और उनके पति, ईरान में शरणार्थी थे, लेकिन कई साल पहले अफग़ानिस्तान वापस आने के बाद अब पश्चिमी हेरात प्रान्त के ढेहज़ाक गाँव में रहते हैं. यहाँ उन्हें अपने जीवनयापन के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ रहा था. यह ग्रामीण क्षेत्र कुपोषण ग्रस्त है, और यहाँ रह रहे अधिकतर परिवारों की ही तरह, उनके पास भी आजीविका का कोई नियमित साधन नहीं था, वो क़र्ज़ में डूबे थे.

हादिया बताती हैं, “हमें बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. जब आपकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं हो, तो न तो आप अपनी ज़िन्दगी बेहतर बना सकते हैं, न ही अपने बच्चों का भविष्य सँवार सकते हैं. आप उनके लिए कपड़े, भोजन जैसी वस्तुएँ नहीं ख़रीद सकते, न ही उन्हें शिक्षा दे सकते हैं.”

ऐसे में, मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने का अवसर सामने आने पर, हादिया ने तुरन्त इसमें नामांकन करवा लिया. इस कार्यक्रम में ख़ासतौर पर महिलाओं को हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया गया था. 

तीन साल पहले तालेबान के सत्ता पर क़ाबिज़ होने के बाद से ही, अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं को कामकाज, यात्रा व शिक्षा को लेकर कई तरह के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है. इससे सार्वजनिक जीवन में उनकी हिस्सेदारी के साथ-साथ, आजीविका अर्जित करने की उनकी क्षमता पर भी गहरा असर पड़ा है.

हादिया कहती हैं, “बहुत समय से मेरा सपना था कि मैं अपने पैरों पर खड़ी हो सकूँ, कामकाज कर सकूँ. यह मौक़ा मिलने से हम सभी बहुत ख़ुश हैं और हम इसका पूर्ण सदुपयोग करेंगे.”

घर में अपने बच्चों के साथ बैठी हादिया, बिक्री के लिए पैक किए गया शहद दिखा रही हैं.

आवश्यक पहल

वो गुज़ारा ज़िले के उन पाँच में से एक गाँव की निवासी हैं, जिसके 38 महिलाओं समेत 50 लोगों को मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. यह परियोजना, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी – UNHCR व महिला गतिविधि व सामाजिक सेवा संगठन (WASSA) की साझेदारी में शुरू की गई है, जो मधुमक्खी पालने वाले स्थानीय विशेषज्ञों को यहाँ प्रशिक्षक बनाकर लाए. 

हर एक भागीदार को, सुरक्षात्मक लिबास व स्टार्ट-अप किट दी गई – जिसमें चौखटे, शहद निकालने का उपकरण और 60 हज़ार मधुमक्खी पालने की क्षमता वाली 6 छत्ता-पेटी (bee hives) शामिल हैं.

प्रतिभागियों को मधुमक्खियों की देखभाल करने के तरीक़े सीखने के साथ-साथ, शहद और मोम, रॉयल जैली व मधुमक्खियों द्वारा उत्पादित एक राल जैसी सामग्री – प्रोपोलिस, जो अक्सर बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने के लिए उपयोग की जाती है, जैसे उत्पाद बेचने का अपना व्यवसाय शुरू करने हेतु, उपयुक्त ज्ञान एवं कौशल प्रदान किया जाता है. उन्हें अपने उत्पादों के लिए बाज़ार स्थापित करने में भी मदद की जाती है.

इसके अलावा, अफ़ग़ानिस्तान के मध्य और पूर्वी क्षेत्रों में भी यह परियोजना चलाई जा रही है. अफ़ग़ानिस्तान मानवीय ट्रस्ट कोष, इस्लामिक विकास बैंक और विकास के लिए सऊदी कोष के सहयोग से जारी इस कार्यक्रम के तहत कुल 200 लोग प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं.

हालाँकि अक्सर गाँवों को रूढ़िवादी सोच का माना जाता है, लेकिन समुदायों ने इस काम में महिलाओं की भागेदारी का स्वागत किया गया है. वजह यह भी है कि इस काम को घर के पास ही किया जा सकता है, इसमें परिवार के अन्य सदस्य भी मदद कर सकते हैं और इसके आर्थिक लाभ स्पष्ट हैं.

आत्मनिर्भरता की बयार

काला गेर्ड गाँव में, ईरान की ही एक अन्य पूर्व शरणार्थी हैं – 54 वर्षीय हलीमा जो 7 बच्चों की माँ हैं. हलीमा, अपने पति के गम्भीर रूप से बीमार पड़ने के बाद से ही काम के लिए बहुत संघर्ष कर रही हैं. अक्टूबर (2023) में हेरात प्रान्त में आए विनाशकारी भूकम्पों से उनके घर और फ़सलों को बहुत हानि पहुँची. लेकिन मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण में भाग लेने के बाद, पहली बार ही उन्हें 26 किलोग्राम शहद प्राप्त हुआ है. 

उन्हें उम्मीद है कि अब वो इससे अपने परिवार का पूर्ण भरण-पोषण करने में सक्षम होंगी. वह मुस्कुराते हुई कहती है, “मेरे परिवार को इस बात का बहुत गर्व है कि उनकी माँ काम करती है और जल्द ही इससे आमदनी भी होने लगेगी.”

इससे हुए मुनाफ़े का उपयोग, वह परिवार के लिए भोजन और कपड़े ख़रीदने के लिए करना चाहती हैं, लेकिन साथ ही उनकी अधिक छत्तों में निवेश करने की भी योजना है. फ़िलहाल उनकी सबसे बड़ी चिन्ता अपनी मधुमक्खियों को कीटों, विशेषकर विशाल सींगों से बचाना है. 

वो सींगों को झाड़ू से पीटकर भगाती हैं. वह कहती है, “मुझे उन्हें कुचलना होगा, अन्यथा वो मेरी मधुमक्खियों को मार डालेंगे. हमारी मधुमक्खियाँ हमारी आय का मुख्य स्रोत बनेंगी, और मैं पूरी दृढ़ता से उनकी देखभाल करूँगी.”

व्यापक लाभ

परिवारों के लिए सतत आजीविका का स्रोत बनने के अलावा, अधिकतर खेती पर निर्भर रहने वाले इस ग्रामीण समुदाय को, इस परियोजना से अन्य व्यापक लाभ भी प्राप्त होंगे.

WASSA के मधुमक्खी पालन परियोजना पर्यवेक्षक, जलील अहमद फ्रोटन पिछले 13 वर्षों से मधुमक्खियाँ पालन कर रहे हैं और उनके पास लगभग 100 छत्ते हैं. वो बताते हैं कि मधुमक्खियाँ स्थानीय जैव विविधता में योगदान देती हैं और महत्वपूर्ण परागणक (pollinators) होती हैं. 

“अनुसन्धान ने यह साबित कर दिया है कि उदाहरण के लिए सेब के बाग़ीचे में अगर हम छत्तें लगाएँ,  तो हम अपनी उपज पाँच गुना बढ़ा सकते हैं. इसलिए, यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम इस तरह की परियोजना का विस्तार करें, और परागण के लाभों को अपने किसानों के साथ साझा करें.

वो कहते हैं, “मधुमक्खियों के बिना कोई भोजन नहीं होगा. “हलीमा के ही गाँव में रहने वाले 10 बच्चों के पिता हफ़ीज़ुल्ला भी एक शरणार्थी हैं, जिन्होंने बताया कि किस तरह इस परियोजना ने उन्हें नया उद्देश्य और प्रेरणा दी, “मैं बेरोज़गार होने की वजह से बहुत उदास रहता था. मधुमक्खी पालन से मैं अब व्यस्त रहने लगा हूँ; मैं इसे जारी रखने और इसका विस्तार करने की योजना बना रहा हूँ.”

उम्मीद है, यह मेरे परिवार को बेहतर भविष्य देने में मदद देगा – इससे शायद हमारा जीवन भी शहद की तरह मीठा हो सके.”

यह कहानी पहले यहाँ प्रकाशित हुई.

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