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अफ़ग़ानिस्तान: तालेबान के सख़्त क़ानूनों की छाया में, संकट गहराने की चेतावनी

अफ़ग़ानिस्तान: तालेबान के सख़्त क़ानूनों की छाया में, संकट गहराने की चेतावनी

सुरक्षा परिषद में बुधवार को अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर एक बैठक के दौरान, महिलाओं व मानवाधिकारों की स्थिति, और तालेबान द्वारा उठाए गए दमनात्मक क़दमों पर गहरी चिन्ता व्यक्त की गई.

यूएन महासचिव की विशेष प्रतिनिधि रोज़ा ओटुनबायेवा ने कहा कि तालेबान ने इस्लाम की कठोर व्याख्या के आधार पर देश में क़ानूनों को लागू किया है.

मगर, ऐसी नीतियों से स्थानीय आबादी की आवश्यकताओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है और उसकी आर्थिक सम्भावनाओं को ठेस पहुँच रही है.

अफ़ग़ानिस्तान में मानवीय व विकास संकट के बीच, आबादी का एक बड़ा हिस्सा मानवीय सहायता पर निर्भर है. इस वर्ष, तीन अरब डॉलर की अपील की गई थी, लेकिन क़रीब 30 फ़ीसदी का ही प्रबन्ध हो पाया है.

सहायता रक़म के अभाव में, इस साल 200 से अधिक स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों को बन्द करना पड़ा है और अगले कुछ महीनों में 171 केन्द्र बन्द किए जाने की आशंका है.

इसके अलावा, ज़रूरतमन्द परिवारों को दी जाने वाली खाद्य सहायता में भी कटौती की गई है. इसे ज़रूरी मात्रा से घटाकर पहले उसका 75 प्रतिशत और फिर 50 फ़ीसदी किया गया है. लाखों आम नागरिक ऐसे इलाक़ों में रहने के लिए विवश हैं, जहाँ सुरक्षित जल की क़िल्लत है.

विशेष प्रतिनिधि ने चिन्ता जताई कि यह मानवीय संकट, जल्द ही विकास संकट बन सकता है.

अफ़ग़ानिस्तान में युवा आबादी का आकार बढ़ रहा है और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में रोज़गार अवसरों के अभाव, अन्तरराष्ट्रीय दानदाताओं द्वारा विकास सहायता मुहैया ना कराए जाने से उनके सक्षम चुनौतियाँ पनप रही हैं.

रोज़ा ओटुनबायेवा ने सुरक्षा परिषद में सदस्य देशों को बताया कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा फ़िलहाल अफ़ग़ानिस्तान का बहिष्कार किया जा रहा है.

महिला अधिकारों पर सख़्ती

जुलाई में क़तर की राजधानी दोहा में यूएन सदस्य देशों और अन्तरराष्ट्रीय संगठनों ने एक बैठक के दौरान, अफ़ग़ानिस्तान में नागरिक आबादी तक मानवीय सहायता पहुँचाने के मुद्दे पर चर्चा की थी.

मगर, इस बैठक के तुरन्त बाद तालेबान प्रशासन ने तथाकथित नैतिकता निगरानी क़ानून को लागू कर दिया, जिसमें महिलाओं पर पाबन्दियाँ थोप दी गईं.

महिला सशक्तिकरण के लिए यूएन संस्था की कार्यकारी निदेशक (UN Women) सीमा बहाउस ने बताया कि इस क़ानून के तहत, महिलाओं व लड़कियों के लिए घर से बाहर जाते समय, अपने शरीर को पूर्ण रूप से ढंकना अनिवार्य है.

उनके सार्वजनिक स्थलों पर बोलने पर पाबन्दी है और अपने रिश्तेदारों के अलावा अन्य पुरुषों को देखने पर मनाही है.

यूएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, अफ़ग़ानिस्तान में महिलाएँ अपनी गिरफ़्तारी के डर का सामना कर रही हैं.

बयाँ ना किए जा सकने वाले हालात

यूएन एजेंसी की प्रमुख ने क्षोभ जताया कि अफ़ग़ानिस्तान की महिलाएँ ना केवल इन दमनात्मक क़ानूनों से डरती हैं, बल्कि उन्हें लागू किए जाने के तौर-तरीक़ों से भी.

“ऐसी परिस्थितियों में जिए गए जीवन का अन्दाज़ा नहीं लगाया जा सकता है.”

सीमा बहाउस के अनुसार, महिलाओं की शिक्षा पर पाबन्दी जारी है. केवल अफ़ग़ान लड़के ही स्कूलों में हैं, जो ऐसे पाठ्यक्रम को पढ़ रहे हैं, जिसके बारे में केवल तालेबान को ही जानकारी है.

उन्होंने 15 सदस्य देशों से आग्रह किया कि अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं व अन्य आम नागरिकों की रक्षा के लिए, राजनैतिक इच्छाशक्ति व संसाधनों के साथ क़दम उठाए जाने होंगे, और महिला अधिकारों के लिए नए सिरे से संकल्प दर्शाया जाना होगा.

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