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अन्तरराष्ट्रीय समझौतों व मानदंडों की कमज़ोरी है विश्व में बढ़ते टकरावों की वजह, इज़ूमी

अन्तरराष्ट्रीय समझौतों व मानदंडों की कमज़ोरी है विश्व में बढ़ते टकरावों की वजह, इज़ूमी

इज़ूमी नाकामित्सू, भारत सरकार के कूटनैतिक संस्थान द्वारा आयोजित 5वें वार्षिक निरस्त्रीकरण एवं अन्तरराष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के फैलोशिप कार्यक्रम में व्याख्यान के लिए भारत में थीं.

निरस्त्रीकरण मामलों की प्रमुख ने यूएन न्यूज़ के साथ एक ख़ास बातचीत में कहा कि भारत, निरस्त्रीकरण सम्मेलन व अन्य कई समूहों का हिस्सा होने के कारण, क्षेत्रीय स्तर पर निरस्त्रीकरण एवं सुरक्षा मुद्दों पर अहम भूमिका निभाता है. 

उन्होंने बताया कि बाहरी अन्तरिक्ष, परमाणु हथियारों व निरस्त्रीकरण से सम्बन्धित मामलों पर अधिक सहयोग बढ़ाना जैसे मुद्दे, उनकी भारत यात्रा के दौरान, देश के अधिकारियों के साथ चर्चा के प्रमुख विषयों में शामिल हैं.

इज़ूमी नाकामित्सू के साथ इस इंटरव्यू को स्पष्टता व संक्षिप्तता के लिए सम्पादित किया गया है… 

यूएन न्यूज़: हाल ही में सीरिया पर UNICEF की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में गृहयुद्ध के दौरान बिखरे विस्फोटक अवशेषों और बारूदी सुरंगों ने पिछले एक महीने में ही 100 बच्चों की जान ले ली है. इससे स्पष्ट है कि विनाशकारी हथियारों व परमाणु हथियारों का ख़तरा अब भी बहुत जीवन्त है. इससे निपटने के लिए क्या किया जा सकता है? और इस कार्य में किस तरह की चुनौतियों सामने आती हैं?

इज़ूमी नाकामित्सू: अलग-अलग प्रकार की बहुत सी चुनौतियाँ हैं. एक चुनौती है – मुख्य सैन्य शक्तियों और विशेष रूप से परमाणु शक्तियों के बीच बढ़ता तनाव. यह भू-राजनैतिक स्थिति है जो विश्वास के स्तर में गिरावट और प्रमुख सैन्य शक्तियों के बीच संवाद एवं कूटनैतिक सहभागिता की कमी को दर्शाती है.

एक और चिन्ता की बात है – मौजूदा अन्तरराष्ट्रीय समझौतों और मानदंडों का कमज़ोर होना. सामूहिक विनाश के हथियारों के ख़िलाफ़ मानदंडों के अनुपालन में गिरावट देखी जा रही है. कुछ देश परमाणु ख़तरे को लेकर बयानबाज़ी कर रहे हैं. सीरिया में हमने दुर्भाग्य से रासायनिक हथियारों का उपयोग होते हुए देखा है. हमें उम्मीद है कि सीरिया में बदलाव के साथ, हम इस मुद्दे का अन्त करने और यह सुनिश्चित करने में सक्षम होंगे कि सीरिया रासायनिक हथियार सन्धियों व समझौतें के नियमों के तहत अपने सभी दायित्वों को पूरा करेगा.

इज़ूमी ने, सीरिया में रासायनिक हथियारों के सन्दिग्ध प्रयोग के बारे में सुरक्षा परिषद को भी अवगत कराया था.

एक और चुनौती है – नई और उभरती प्रौद्योगिकियाँ. ये प्रौद्योगिकियाँ जहाँ बड़े लाभ प्रदान करती हैं, वहीं इनसे सम्भावित जोखिम और अप्रत्याशित ख़तरे भी बढ़ रहे हैं. हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इन जोखिम कारकों को कम किया जाए. इसके लिए मज़बूत शासन ढाँचे की आवश्यकता होगी. महासचिव एंतोनियो गुटेरेश के तकनीकी दूत, राजदूत अमनदीप सिंह गिल, वैश्विक डिजिटल समझौते पर काम कर रहे हैं और यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि प्रौद्योगिकियों के सकारात्मक पहलू का लाभ उठाया जा सके.

मेरी ज़िम्मेदारी में सैन्य क्षेत्र आता है, जिसमें जोखिमों के कारकों से निपटना प्रमुख काम रहता है. इसके तहत विनियम, प्रतिबन्ध और मानदंड बनाने की आवश्यकता पर चर्चा की जाती है. मेरा मानना है कि हमें नए दृष्टिकोण अपनाने होंगे, जबकि साथ ही यह सुनिश्चित करना होगा कि जो हमारे पास पहले से है, उसकी रक्षा हो. मौजूदा मानदंडों और अन्तरराष्ट्रीय समझौतों की पूरी तरह से रक्षा की जानी चाहिए.

चुनौतियाँ बहुत हैं, और यही कारण है कि मुझे लगता है कि भारत जैसे देशों के साथ जुड़ना बहुत महत्वपूर्ण है. भारत में मज़बूत सैन्य क्षमताएँ हैं और यह संयुक्त राष्ट्र व ब्रिक्स, G-20 और क्षेत्रीय स्तर पर विभिन्न अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय भूमिका निभाता है.

यूएन न्यूज़: इस समय हम दुनिया के अनेक क्षेत्रों में टकराव और युद्ध के हालात देख रहे हैं. यूएन निरस्त्रीकरण कार्यालय ने, यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध, और इसराइल व फ़लस्तीन के बीच किस तरह की भूमिका निभाई है?

इज़ूमी नाकामित्सू: हम एक परिचालन इकाई नहीं हैं, लेकिन मुझे नियमित रूप से सुरक्षा परिषद को निरस्त्रीकरण, सैन्य और सुरक्षा मामलों से सम्बन्धित मुद्दों पर जानकारी देनी होती है, ख़ासतौर पर यूक्रेन के सन्दर्भ में. हमारी भूमिका, हमारा योगदान, यह सुनिश्चित करना है कि अन्तरराष्ट्रीय नीति-निर्माताओं के लिए सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र स्तर पर सटीक एवं स्वतंत्र रूप से सत्यापित जानकारी उपलब्ध हो.

हमारी भूमिका मुख्य रूप से नीति-निर्धारण, रणनैतिक और मानदंड के स्तर पर होती है. और, निश्चित रूप से, हम विभिन्न परिचालन इकाइयों को सहायता प्रदान करते हैं. हम संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर और उसके बाहर अन्य संस्थाओं के साथ काम करते हैं ताकि उनके शासनादेश को उचित तरीक़े से पूरा किया जा सके.

यूएन न्यूज़: संयुक्त राष्ट्र कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और साइबर युद्ध जैसी प्रौद्योगिकियों के विकास के साथ, इन नई चुनौतियों से निपटने के लिए किस तरह के उपाय कर रहा है?

टैक्नॉलॉजी पर यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश के विशेष दूत अमनदीप सिंह गिल, एक साझा डिजिटल भविष्य पर विशेष काम की अगुवाई कर रहे हैं.

इज़ूमी नाकामित्सू: साल 2024 में यूएन महासभा में दो महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किए गए. एक संयुक्त राज्य अमेरिका ने, और दूसरा चीन ने पेश किया था. ये दोनों प्रस्ताव कृत्रिम बुद्धिमत्ता के शासन से सम्बन्धित थे. मसलन, सैन्य सुरक्षा क्षेत्र में AI के कार्यान्वयन से लाभों को बढ़ाना.

मेरे क्षेत्र में भी, पिछले साल हमें महासचिव एंतोनियो गुटेरेश की ओर से एक नया शासनादेश दिया गया कि हमें अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता के सैन्य क्षेत्र में उपयोग से सम्बन्धित मुद्दों पर एक रिपोर्ट तैयार करनी होगी. यह रिपोर्ट, महासभा में इसके लिए मानक निर्धारित करने की चर्चाओं का आधार बनेगी.

इसके अलावा, भविष्य के लिए समझौते (Pact for the future) पर भी सहमति बनी. शान्ति, सुरक्षा और निरस्त्रीकरण के क्षेत्र में इस समग्र समझौते में सभी सदस्य देशों ने स्वीकार किया कि युद्धों और टकरावों की प्रकृति बदल रही है. ऐसे में हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि हम संयुक्त राष्ट्र के मंच पर एकजुट होकर, AI समेत समस्त नवीन प्रौद्योगिकियों के ख़तरों से निपटें. साथ ही जैव जोखिमों से निपटने और वैश्विक डिजिटल समझौते जैसे मुद्दों पर भी सामूहिक रूप ध्यान दिया जाए और कार्रवाई की जाए.

यूएन न्यूज़: भारत में विशाल युवा आबादी है. आपके विचार से संयुक्त राष्ट्र, शान्ति को बढ़ावा देने के लिए, भारत के युवजन को निरस्त्रीकरण के प्रचार-प्रसार में कैसे शामिल कर सकता है?

इज़ूमी नाकामित्सू: एक बात जो हमें वास्तव में समझने की आवश्यकता है वो ये है कि हम युवजन के भविष्य की बात कर रहे हैं. इसलिए, केवल औपचारिक रूप से उन्हें शामिल करना ही काफ़ी नहीं, बल्कि मुझे लगता है कि हमें वास्तव में उन्हें नीति सम्बन्धी चर्चाओं में नेतृत्व के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे निर्णय लेने की प्रक्रिया में भी शामिल हों.

हमारी प्रमुख गतिविधियों में से एक है – युवजन के नेतृत्व वाला निरस्त्रीकरण अभियान. इसके तहत हम विभिन्न शैक्षिक और सशक्तिकरण कार्यक्रम आयोजित करके, यह सुनिश्चित करते हैं कि उनका रचनात्मक एवं नवोन्मेषी दृष्टिकोण, नीति चर्चाओं की मुख्यधारा में शामिल किया जाए. इसे शायद हम पुरानी पीढ़ी के लोग हमेशा नहीं समझ पाते हैं.

यूक्रेन युद्ध के दौरान परमाणु असुरक्षा और ख़तरे की ख़बरों ने ज़ोर पकड़ा है.

© UNOCHA/Dmytro Filipskyi

यूएन न्यूज़: भारत और पूरी दुनिया के लिए आपका सन्देश क्या होगा?

इज़ूमी नाकामित्सू: मेरा मुख्य सन्देश हमेशा यही होता है – निरस्त्रीकरण, हथियार नियंत्रण और अप्रसार. यह कार्यक्षेत्र अक्सर एक आदर्शवादी सपना समझा जाता है, जिसे केवल तब ही हासिल किया जा सकता है जब दुनिया अधिक शान्तिपूर्ण हो. लेकिन यह वास्तव में सही नहीं है. 

दरअसल, निरस्त्रीकरण की अवधारणा, एक सुरक्षा साधन के रूप में विकसित की गई थी, और इतिहास दिखाता है कि शीत युद्ध के दौरान, कुछ सबसे महत्वपूर्ण निरस्त्रीकरण उपकरणों पर सहमति बनी, क्योंकि उससे सुरक्षा लाभ हासिल हुए.

इसलिए, मुझे लगता है कि हमें इस समझ को फिर से स्थापित करने की आवश्यकता है कि कूटनीति, सहभागिता, हथियार नियंत्रण और निरस्त्रीकरण, वास्तव में तनाव को कम करने में मदद करते हैं और तनाव एवं समस्याओं के शान्तिपूर्ण समाधान में सहायता करते हैं. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी सदस्य देश इस ऐतिहासिक तथ्य को समझें और यह स्वीकार करें कि निरस्त्रीकरण एक सुरक्षा साधन है.

लेकिन वर्तमान में, दुनिया एक बहुत ही ख़तरनाक और जोखिमपूर्ण स्थिति में है. महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने हाल ही में, अपनी प्राथमिकताओं पर, महासभा में दिए गए भाषण में कहा था कि 2025 के लिए परमाणु ख़तरा, दशकों में सबसे उच्च स्तर पर है. 

और हमें, मानव जाति को, इस अस्तित्व से जुड़े ख़तरे में का सामना करते रहने के लिए मजबूर नहीं होना चाहिए. हमें इस जोखिम को कम करने व परमाणु हथियारों को पूरी तरह समाप्त करके अन्ततः इसे ख़त्म करने का प्रयास करना होगा.

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