शनिवार को मनाए जा रहे इस स्मरण दिवस के माध्यम से, रासायनिक हथियारों के कारण हताहत हुए लोगों को श्रद्धांजलि दी जा रही है, और यह दिवस देशों से यह सुनिश्चित किए जाने का आग्रह करता है कि ऐसी भयावहता कभी नहीं दोहराई जाए.
यूएन महासचिव ने वर्ष 2023 में हासिल की गई एक बड़ी उपलब्धि की तरफ़ ध्यान आकर्षित किया जो है – घोषित रासायनिक शस्त्रों का, रासायनिक शस्त्र सन्धि के तहत, पूर्ण उन्मूलन.
अलबत्ता उन्होंने आगाह करते हुए कहा, “मगर पिछले दशक में इन हथियारों का फिर से उदय हुआ है. विज्ञान और प्रौद्योगिकी में तेज़ी से विकास होने के साथ, ख़तरा और भी अधिक बढ़ गया है.”
एंतोनियो गुटेरेश ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से, इस संकट को सदैव के लिए समाप्त करने की अपनी प्रतिबद्धता को फिर से पक्का करने का आग्रह किया.
उन्होंने कहा, “वैश्विक समुदाय को एक स्वर में बोलना चाहिए और रासायनिक शस्त्र सन्धि के प्रति संकल्प की पुष्टि करनी चाहिए, दंड से मुक्ति को समाप्त करना चाहिए और इन हथियारों से मुक्त दुनिया की ख़ातिर, भविष्य के समझौते (Pact for the Future) की प्रतिज्ञा को पूरा करना चाहिए.”
सितम्बर 2024 में भविष्य के शिखर सम्मेलन में अपनाए गए ‘भविष्य के समझौते’ का उद्देश्य निरस्त्रीकरण, विकास, जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकारों सहित तत्काल चुनौतियों का समाधान करने के लिए, वैश्विक सहयोग को मज़बूत करना है, ताकि सभी जन के लिए शान्तिपूर्ण और टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित हो सके.
याद क़ायम रखना
इस स्मरण दिवस को, कार्रवाई का आग्रह करने के अलावा, रासायनिक युद्ध के पीड़ितों को सम्मानित करने के लिए एक गम्भीर अवसर के रूप में देखा जाता है.
यह दिवस, इन हथियारों की विनाशकारी मानवीय क़ीमत और यह सुनिश्चित करने की सामूहिक ज़िम्मेदारी की एक कठोर याद दिलाता है कि इनका फिर कभी उपयोग नहीं किया जाए.
यह दिवस प्रत्येक वर्ष आमतौर पर 30 नवम्बर को या रासायनिक शस्त्र सन्धि के पक्ष देशों के नियमित सत्र के पहले दिन, मनाया जाता है.
रासायनिक शस्त्रों के विरुद्ध जंग
रासायनिक हथियारों को ख़त्म करने के लिए, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के प्रयास एक सदी से भी पहले से चल रहे हैं.
इन हथियारों ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भयावह विनाश किया, जिसमें एक लाख से अधिक लोग मारे गए थे और दस लाख लोग घायल हुए थे.
हालाँकि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान योरोपीय युद्ध क्षेत्रों पर रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया गया था, लेकिन उनके विनाशकारी प्रभावों के बारे में बढ़ती जागरूकता ने व्यापक निरस्त्रीकरण की मांग की.
रासायनिक शस्त्र सन्धि
रासायनिक हथियारों के विकास, उत्पादन, भंडारण और उपयोग को निषिद्ध बनाने, और उनका उन्मूलन किए जाने पर 1992 में अपनाई गई सन्धि, (रासायनिक शस्त्र सन्धि या CWC) इन प्रयासों की बुनियाद है.
इस सन्धि को, 1997 में लागू होने के बाद से, 193 देशों ने अनुमोदित किया है, जिससे यह सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत अन्तरराष्ट्रीय निरस्त्रीकरण समझौतों में से एक बन गया है.
यह सन्धि, रासायनिक हथियारों के विकास, उत्पादन, भंडारण और उपयोग को प्रतिबन्धित करती है, और मौजूदा भंडार व उत्पादन सुविधाओं को नष्ट करने का आदेश देती है.
इस सन्धि के ज़रिए, अनुपालन की निगरानी करने, सत्यापन मुहैया कराने तथा सदस्य देशों के बीच अन्तरराष्ट्रीय सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए, रासायनिक शस्त्र निषेध संगठन (OPCW) की भी स्थापना की गई.