यमन के लिए यूएन महासचिव के विशेष दूत कार्यालय, यूएन विकास कार्यक्रम, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, विश्व खाद्य कार्यक्रम, विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय समेत अन्य संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और सेव द चिल्ड्रन, केयर इंटरनेशनल सहित अन्य अन्तरराष्ट्रीय संगठनों ने अपने एक साझा वक्तव्य में यमन में हालात पर चिन्ता व्यक्त की है.
शीर्ष अधिकारियों ने कहा कि एक ऐसे समय जब इन कर्मचारियों की रिहाई की आशा की जा रही थी, आपराधिक मुक़दमे के इस नए घटनाक्रम से उन्हें धक्का पहुँचा है.
उन्होंने कहा कि इन सहकर्मियों के विरुद्ध ये आरोप लगाया जाना अस्वीकार्य है. उन्हें पहले ही लम्बे समय से बिना किसी सम्पर्क के रखा गया है, और हालात आगे जटिल होने की आशंका है.
अन्तरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुखों ने ज़ोर देकर कहा कि कर्मचारियों के विरुद्ध आपराधिक मुक़दमे से उनकी सुरक्षा व सलामती के प्रति चिन्ता उपजी है.
यमन में सत्तारूढ़ प्रशसान द्वारा यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय के छह कर्मचारियों, को जून महीने में सात अन्य यूएन कर्मियों के साथ हिरासत में ले लिया गया था.
वहीं, यूएन मानवाधिकार कार्यालय के दो कर्मचारियों व अन्य एजेंसियों के दो सहकर्मियों को क्रमश: 2021 और 2023 से हिरासत में बिना किसी सम्पर्क के रखा गया है.
उनके अलावा, अन्तरराष्ट्रीय ग़ैर- सरकारी संगठनों, नागरिक समाज संगठनों व राजनयिक मिशन के कर्मचारियों को भी मनमाने ढंग से हिरासत में रखा गया है.
सहायताकर्मियों की रक्षा की मांग
शीर्ष अधिकारियों ने आगाह किया है कि मानवीय राहत कर्मचारियों को निशाना बनाए जाने से, लाखों ज़रूरमतन्दों तक ज़रूरी सहायता पहुँचाने के कार्य में बाधा उत्पन्न होती है.
उन्होंने कहा कि यमन में मानवतावादियों को निशाना बनाए जाने का अन्त करना होगा, और मनमाने ढंग से हिरासत में लेने, डराने-धमकाने, बुरे बर्ताव व झूठे आरोपों को रोकना होगा. साथ ही, हिरासत में रखे गए सभी लोगों को तत्काल रिहा किए जाने का आग्रह किया गया है.
साझा वक्तव्य के अनुसार, यूएन, अन्तरराष्ट्रीय संगठन एक साथ मिलकर सभी ज़रियों से प्रयास कर रहे हैं, ताकि हिरासत में रखे गए लोगों की रिहाई हो सके.
गम्भीर मानवीय संकट
यमन फ़िलहाल विश्व में सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण संकटों में है. कई वर्षों से जारी हिंसक टकराव के कारण देश की क़रीब आधी आबादी को मानवीय सहायता व संरक्षण की आवश्यकता है.
1.76 करोड़ लोग गम्भीर भूख से जूझ रहे हैं, जिनमें 24 लाख बच्चे, 12 लाख गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाएँ हैं, जो स्वयं कुपोषण का शिकार हैं.
हैज़ा समेत अन्य जानलेवा बीमारियाँ फैल रही हैं और जल, स्वास्थ्य, साफ़-सफ़ाई सेवाओं के उपलब्ध ना होने से यह संकट और जटिल हो गया है.