संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो वर्षों में, एक अत्याधुनिक प्रणाली के ज़रिये देशों की सरकारों व व्यवसायों को मीथेन लीक के बारे में 1,200 ऐलर्ट भेजे गए हैं, मगर केवल एक फ़ीसदी मामलों में ही जवाब मिल पाया है.
यूएन पर्यावरण कार्यक्रम की प्रमुख इंगेर ऐंडरसन ने शुक्रवार को अज़रबैजान की राजधानी बाकू में रिपोर्ट जारी करते हुए सचेत किया कि अब हमारे पास एक ठोस व्यवस्था (Methane Alert and Response System) है, जिसके ज़रिये मीथेन गैस लीक मामलों की शिनाख़्त की जा सकती है, और फिर अक्सर मामूली मरम्मत के ज़रिये उन्हें रोका भी जा सकता है.
बाकू में कॉप29 जलवायु सम्मेलन, सोमवार को आरम्भ हुआ था, जहाँ जलवायु वित्त पोषण को सुनिश्चित करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती लाने के उपायों पर विभिन्न देशों से जुटे प्रतिनिधि विचार-विमर्श में जुटे हैं.
मीथेन क्या है?
यूएन पर्यावरण एजेंसी के अनुसार, मानव-जनित मीथेन उत्सर्जन, पृथ्वी पर मौजूदा तापमान वृद्धि के क़रीब एक-तिहाई के लिए ज़िम्मेदार है.
इसके मद्देनज़र, इन उत्सर्जनों में तेज़ी से कटौती लाना, वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी की रफ़्तार को थामने के लिए सबसे किफ़ायती तरीक़ा साबित हो सकता है. साथ ही, जलवायु परिवर्तन से होने वाली क्षति को टालने के नज़रिये से भी यह अहम है.
मानव गतिविधियों से उत्सर्जित होने वाली मीथेन गैस के लिए मुख्यत: तीन सैक्टर ज़िम्मेदार हैं: कृषि, अपशिष्ट (waste), जीवाश्म ईंधन.
कोयला खनन से जीवाश्म ईंधन उद्योग में 12 फ़ीसदी उत्सर्जन का योगदान होता है. वहीं, तेल व गैस के निष्कर्षण (extraction), प्रसंस्करण (processing) और वितरण (distribution) में यह 23 फ़ीसदी है. मीथेन उत्सर्जन मात्रा का क़रीब 20 फ़ीसदी, अपशिष्ट सैक्टर में है जोकि अपशिष्ट जल व कूड़े के ढेर से आता है.
कृषि सैक्टर में 32 प्रतिशत उत्सर्जन, मवेशियों के घास चरने समेत अन्य गतिविधियों और लगभग आठ फ़ीसदी के लिए धान की खेती ज़िम्मेदार है.
एक अनुमान के अनुसार, पूर्व औद्योगिक काल की तुलना में, वातावरण में ढाई गुना मात्रा में मीथेन मौजूद है और पिछले कुछ वर्षों में उत्सर्जन की मात्रा बढ़ती जा रही है.
मीथेन में कटौती लाने के उपाय
मीथेन को आम तौर पर ‘आक्रामक ग्रीनहाउस गैस’ माना जाता है, मगर कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की तुलना में इसमें कटौती लाना अपेक्षाकृत आसान है, चूँकि वातावरण में उसकी जीवन अवधि कम होती है.
यूएन पर्यावरण एजेंसी की अगुवाई में अन्तरराष्ट्रीय मीथेन उत्सर्जन पर्यवेक्षणशाला, और लीक ऐलर्ट प्रणाली में कृत्रिम बुद्धिमता (AI) व सैटेलाइट डेटा का इस्तेमाल किया जाता है ताकि गैस उत्सर्जन का पता लगाया जा सके.
साथ ही, उद्योग जगत व देशों को मीथेन उत्सर्जन से निपटने के लिए मदद मुहैया कराई जाती है.
UNEP प्रमुख इंगेर ऐंडरसन ने कहा कि सरकारों और तेल व गैस कम्पनियों को इस चुनौती पर केवल दिखावटी बातों से बचना होगा, चूँकि जवाब उनके सामने मौजूद हैं.
इसके बजाय, उन्हें ऐलर्ट मिलने के बाद मीथेन लीक पर नियंत्रण पाने के उपाय करने होंगे. इसके लिए साधन मौजूद हैं, लक्ष्य स्थापित किए गए हैं और अब कार्रवाई की जानी होगी.
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