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UP Loksabha Chunav 2024: हाथरस में किसको मिलेगा हाथरसी देवी का आशीर्वाद, इस चुनाव में सीट निकालने में जुटी बीजेपी, सपा और बसपा

कहते हैं कि जब भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ, तो मां पार्वती और भगवान शिव इसी रास्ते से उनके दर्शन करने गए थे और वहीं पर हाथरसी देवी का मंदिर स्थापित हुआ। इसी मंदिर के कारण इस शहर का नाम पड़ गया हाथरस, जो अब एक लोकसभा क्षेत्र है। साल 1997 में ब्रज क्षेत्र के दो जिलों मथुरा और अलीगढ़ को काटकर ये जिला बनाया गया। हाथरस अपनी हींग के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यही नहीं यहां पर रंगों और अबीर की फैक्ट्रियां भी हैं। ये शहर प्रसिद्ध हास्य कवि काका हाथरसी का भी है, जो लिखते हैं- “गत चुनाव में हार गया तो मेरा अभ्युथान हो गया। माया का आवरण हट गया, जीव जगत का ज्ञान हो गया।” इस जिले में बालम मंदिर में प्रसिद्ध लख्खा मेला लगता है। हाथरस में इस समय चुनावी युद्ध जोरों पर है। भाजपा के इस गढ़ को समाजवादी पार्टी किसी भी कीमत पर छीन लेना चाहती है, लेकिन यह न सपा के लिए आसान है और न ही बसपा के लिए। क्या होगा इस चुनाव में? हाथरस के रामप्रसाद कहते हैं की क्या होगा? मुझे तो लगता है कि यहां पर मोदी का प्रत्याशी चुनाव जीत जाएगा।

असल में यहां सभी दलों के नए प्रत्याशी मैदान में हैं। अब नए प्रत्याशी कोई करिश्मा कर दें, ये तो कहना मुश्किल है, लेकिन चुनावी माहौल यहां भाजपा का दिखाई देता है। लड़ाई रोचक है। भारतीय जनता पार्टी ने यहां पर अपने पुराने प्रत्याशी को बदलकर अनूप प्रधान को टिकट दिया है, जबकि पिछले चुनाव में यहां पर राजवीर दिलेर चुनाव जीते थे।

हाथरस सीट पर वाल्मीकि हैं निर्णायक

राजवीर दिलेर का टिकट कटने के बाद पिछले दिनों उनका निधन भी हो गया था, जहां तक बीजेपी प्रत्याशी अनूप प्रधान वाल्मीकि की बात है, तो वो उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री हैं। ग्राम प्रधान से इस पद तक पहुंचे हैं। उनका अपना भी जनाधार है।

समाजवादी पार्टी ने यहां पर जसवीर वाल्मीकि को टिकट दिया है। अनुसूचित जाति (SC) के लिए सुरक्षित सीट पर BSP ने हेम बाबू धनगर को मैदान में उतारा है। यह दिलचस्प है कि कभी यहां पर रामवीर उपाध्याय की तूती बोलती थी। रामवीर उपाध्याय पहले बसपा से जुड़े थे और बसपा के बल पर ही उनका पूरा परिवार राजनीतिक बुलंदियों तक पहुंचा, लेकिन अब इस परिवार की राजनीतिक ताकत कमजोर हो चुकी है। उपाध्याय परिवार BJP के साथ है।

हाथरस सीट पर वाल्मीकि बहुल हैं और इसीलिए बसपा यहां बहुत मजबूती से लड़ नहीं पाती। वाल्मीकि बहुल होने के कारण ही समाजवादी पार्टी ने सहारनपुर से जसवीर वाल्मीकि को लाकर यहां मैदान में उतार दिया। सपा ने ऐसा क्यों किया यह अभी तक किसी को समझ में नहीं आया।

अखिलेश ने ये क्यों बाहर से लाकर उतारा उम्मीदवार?

समाजवादी पार्टी के ही एक कार्यकर्ता खुद सवाल कर देते हैं कि यह सवाल अखिलेश जी से पूछिए कि अखिलेश यादव इतनी दूर के प्रत्याशी को क्यों लेकर आए। ये अलग बात है की वाल्मीकि होने के कारण यहां पर राजनीतिक दल वो चेहरा ढूंढते हैं, जो वाल्मीकि समुदाय से आता हो और मजबूत हो। बीजेपी के अनूप प्रधान वाल्मीकि समुदाय से आते है।

वास्तव में यह क्षेत्र जाट बहुल भी है और इसकी अंतर्गत आने वाली पांच विधानसभा सीटों में से तीन जाट बहुल् है। इगलास के चाय की दुकान में बैठे रामनरेश कहते हैं की जाट मतदाता इस बार पूरी तरह से बीजेपी के साथ हैं। पिछली बार भी बड़ी संख्या में जाट बीजेपी के साथ गए थे, लेकिन इस बार RLD से गठबंधन के बाद जाट वोटों में बंटवारा नहीं हो रहा है।

BJP के खिलाफ इतना तीखा नहीं बोल रहे मुस्लिम

ज्यादातर जाट मतदाता एक साथ हो गए हैं। सनेही वाल्मीकि कहते हैं कि वैसे तो भाजपा और सपा दोनों दल के प्रत्याशी वाल्मीकि समुदाय से आते हैं, लेकिन ज्यादातर वाल्मीकि मतदाता बीजेपी के साथ हैं। यही नहीं अति पिछड़े वर्ग में बहुत ज्यादा विभाजन नहीं दिखता। समर कश्यप कहते हैं कि ज्यादातर बीजेपी के साथ क्यों? इस सवाल पर वो बताते हैं कि मोदी ने काफी लाभ दिए हैं, इसका असर पड़ रहा है।

उनके साथ ही खड़े जीवन लाल शर्मा कहते हैं कि इस बार मुसलमानों में भी उतना आक्रामकता नहीं है, जितना पिछली बार था। उनको भी काफी लाभ मिलता है। इसलिए मुसलमानों के बड़े नेता बीजेपी के खिलाफ भले ही हंगामा कर रहे हैं, लेकिन आम मुस्लिम मतदाता भले ही बीजेपी को वोट न दें, लेकिन बहुत तीखा नहीं बोल रहा है। हां, बसपा ने धनगर प्रत्याशी को उतार कर लड़ाई को रोचक बना दिया है।

इस क्षेत्र में धनगर मतदाता बड़ी संख्या में हैं और यही कारण है की बसपा ने यह दांव चला। अब धनगर मतदाता का झुकाव बसपा की तरफ है। बीजेपी हर संभव कोशिश कर रही है कि इस परंपरागत मतदाता को अपनी तरफ लाया जाए। अब इसमें कितनी सफल होगी, कहना मुश्किल है, लेकिन बसपा के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि मुस्लिम मतदाता उसके साथ नही है और सिर्फ दलितों के एक वर्ग का समर्थन उसे मिल रहा है। लेकिन यह संख्या इतनी ज्यादा नहीं है की वो इस चुनावी लड़ाई को कड़ी त्रिकोणीय लड़ाई में बदल दे।

मुसलमान सपा के साथ था और रहेगा

हाथरस शहर के ही शमसुल अंसारी कहते हैं कि मुसलमान अभी तो सपा के साथ है और अभी तो क्या आगे भी रहेगा। वो बताते हैं कि मुस्लिम मतदाता पिछले चुनाव में भी सपा के साथ रहा है। कारण यही है की समाजवादी पार्टी पर मुसलमान का भरोसा है बसपा पर नहीं है। इसलिए बसपा को चुनावी लड़ाई को त्रिकोणीय करने के लिए उसे और भी प्रयास करना पड़ेगा।

जहां तक सपा का सवाल है इस क्षेत्र में उसका आधार कमजोर रहा है। इसका प्रमुख कारण यही है कि मुस्लिम मतदाता ज्यादा है, नहीं और यादव मतदाता भी बहुत कम है। सादाबाद के सल्ले भाई कहते हैं कि उन्हें तो लगता है कि समाजवादी पार्टी से ही बीजेपी के टक्कर होगी। मुस्लिम तो समाजवादी पार्टी के साथ है।

हाथरस में ही रामवीर उपाध्याय परिवार के एक कट्टर समर्थक मिल गए देव शर्मा। वह कहते हैं कि यहां पर बसपा का ज्यादा प्रभाव कभी नहीं था, जो प्रभाव था रामवीर उपाध्याय का था और उनके कारण यहां बसपा मजबूत रही। अब वो नहीं है इसलिए बसपा भी कमजोर है। वो बताते हैं कि यहां लड़ाई त्रिकोणीय भले ही हो, लेकिन मुख्य लड़ाई बीजेपी-सपा के बीच ही है।

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