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UP Loksabha Chunav: सहारनपुर में जिसे मिला दलित-मुस्लिमों का साथ उसकी नैया पार, वोट यात्रा में जानें जनता के दिल की बात

UP Loksabha Chunav: सहारनपुर लोकसभा सीट (Saharanpur Loksabha Seat), कांग्रेस (Congress) इस सीट पर कब्जा करने के लिए करो या मरो जैसी लड़ाई लड़ रही है। सामाजिक समीकरणों के दृष्टि से यह सीट विपक्ष के लिए सबसे बेहतर सीटो में एक है। सहारनपुर लोकसभा सीट में मुस्लिम मतदाता भी बहुतायत में हैं और दलित भी। इस सीट की इसी खूबी के लिए मायावती ने पिछले चुनाव में सहारनपुर अपनी पार्टी के लिए ही मांग लिया था। सपा और कांग्रेस गठबंधन में सहारनपुर कांग्रेस के खाते में गई है। इसलिए कांग्रेस उम्मीद लगाए बैठी है कि इस सीट पर तो वो जीत ही जाएगी। लेकिन यहां लड़ाई आसान नहीं है। सहारनपुर लोकसभा सीट पर इस बार बहुत कड़ी लड़ाई होने जा रही है।

असल मे लड़ाई इसलिए कड़ी है, क्योंकि इस बार BSP भी अलग से चुनाव लड़ रही है। सहारनपुर उन लोकसभा क्षेत्र में है, जो किसी एक का गढ़ नहीं रही। ‘मां शकुंभरी देवी’ की कृपा और उसकी गोद में बसे इस शहर में माता को बहुत पूजा जाता है। दूर-दूर से लोग देवी के दर्शन करने आते हैं। स्कंद पुराण में वर्णन है कि शाकुंभरी देवी का मंदिर महाभारत काल के पहले का है।

दुनिया भर में विख्यात दारुल उलूम देवबंद यहीं पर है। साल 1867 को जब हाजी आबिद हुसैन और मौलाना कासिम ननौताविन ने इस दारुल उलूम की नींव रखी थी, तो उन्हें भी कल्पना नहीं रही होगी कि यह इस्लामिक शिक्षा का केंद्र दुनिया भर में इतना विख्यात होगा।

वास्तव में सहारनपुर वह ऐतिहासिक शहर है, जो कभी एक दीवार से घिरा था और इसके चार दरवाजे थे, लेकिन इस शहर का ऐसा विस्तार हुआ है कि अब यह महानगर बनने की तरफ अग्रसर है।

सहारनपुर में कैसी है राजनीति?

इस चुनाव में इमरान मसूद कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं, वह राजनीति के कुशल खिलाड़ी हैं, लेकिन BJP को छोड़कर सभी दलों में परिक्रमा कर चुके हैं। उनकी कोशिश यही है कि किसी तरह वह इस बार लोकसभा पहुंचे। इसके पहले उनके कई प्रयास विफल हो चुके हैं। इसलिए अगर वह चुनाव जीतते हैं, तो उन्हें भी संजीवनी मिलेगी और कांग्रेस को भी।

भारतीय जनता पार्टी की ओर से एक बार फिर राघव लखन पाल शर्मा भाग्य आजमा रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी ने एक बड़े बिजनेसमैन माजिद अली को मैदान में उतारा है। राघव लखनपाल भी राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं। यह जिला चंद्रशेखर आजाद रावण का भी है, जो दलित राजनीति के नए मसीहा हैं और वह सारे प्रयास कर रहे हैं कि किसी तरह दलित मतदाता मायावती से टूटकर उनके साथ आ जाए। अब वो कितना साथ आएंगे यह तो समय ही बताएगा।

चुनाव के पहले वह I.N.D.I.A. गठबंधन की जमकर पैरोकारी करते थे, लेकिन अब वैसे मुखर नहीं दिख रहे हैं और नगीना लोकसभा क्षेत्र में चुनाव लड़ने चले गए हैं।

क्या होगा इस बार सहारनपुर में?

पिछले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) में बहुजन समाज पार्टी ने यहां पर झंडा गाड़ा था। उसके प्रत्याशी हाजी फजलुर रहमान चुनाव जीत गए थे, लेकिन अगर जमीनी आकलन किया जाए, तो स्थिति साफ हो जाती है। इस बार विपक्ष के लिए सीट थोड़ी मुश्किल जरूर है। भले ही सामाजिक समीकरण उनके पक्ष में दिख रहे हों।

पिछले चुनाव में BSP, समाजवादी पार्टी और RLD के बीच गठबंधन था, लेकिन इसके बावजूद यहां पर कठिन लड़ाई हुई थी। इस बार BSP बिना गठबंधन के चुनाव लड़ रही है और उनकी कोशिश है कि माजिद अली को मुस्लिम वोट भी मिले और दलित वोट भी, जिनकी संख्या यहां काफी है।

किस तरह बंट सकता है दलित मुस्लिम वोट?

सहारनपुर के ही मोहम्मद ताहिर कहते हैं कि मुस्लिम वोट कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद को जाएगा, लेकिन माजिद अली को भी कुछ वोट जरूर मिलेगा। क्यों? इसके जवाब में वह कहते हैं कि माजिद अली गड़ा समाज से हैं और इस समाज के लोग उन्हें वोट देंगे। दलितों का वोट भी बसपा को ही मिलेगा। जबकि इमरान मसूद मुस्लिम मतदाताओं के भरोसे हैं। वह आक्रामक प्रचार कर रहे हैं।

वास्तव में रशीद मसूद के परिवार के इमरान मसूद की आम लोगों में काफी लोकप्रियता है और जनाधार है। वह लगातार राजनीति में सक्रिय भी हैं। लोगों से मिलते हैं। उनकी समस्याएं हल करते हैं। इसलिए इमरान मसूद का काफी नाम भी है। अब इमरान मसूद मुस्लिम मतदाताओं के अलावा कौन सा वोट पाएंगे यह सवाल बड़ा है।

सहारनपुर के ही देव शर्मा कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता की इमरान मसूद मुसलमानों के अलावा कोई अतिरिक्त वोट पाएंगे। उन्हें मुस्लिम वोट ही मिलेगा, जबकि राघव लखन पाल शर्मा को सभी वर्गों का वोट मिल रहा है, यहां तक दलितों का भी।

इमरान मसूद सक्रिय, लेकिन नहीं मिल रहा वोट!

इमरान मसूद कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह मुस्लिम वोटों का बंटवारा न हो और पिछड़े वर्ग का कुछ वोट उन्हें भी मिल जाए, लेकिन सहारनपुर के रामपुर मनिहार के रहने वाले दिनेश सैनी कहते हैं कि मुझे नहीं लगता की दूसरे मतदाताओं में कोई बहुत बड़ा बंटवारा इमरान मसूद कर पा रहे है।

मसूद जनता के बीच बहुत ही सक्रिय रहते हैं, लेकिन उन्हें वोट नहीं मिल रहा है। मसूद के ही एक समर्थक कहते हैं कि नेताजी ने कई पार्टियां बदली हैं, इसलिए चुनाव में उसका भी असर दिखेगा। लेकिन इसके बावजूद एक बात साफ दिख रही है कि मुस्लिम मतदाता उनकी तरफ तेजी से मुड़ा है। वैसे भी मुसलमानों के बीच इमरान मसूद काफी लोकप्रिय रहे हैं। इसके साथ ही वह बिना भेदभाव के दूसरें वर्गों का भी काम करते हैं, इसलिए हो सकता है कुछ वोट मिल जाए।

चंद्रशेखर के लिए भी खबर अच्छी नहीं

जबकि हजारी जाटव कहते हैं कि उनका वोट हाथी को जाएगा, वह जीते या ना जीते लेकिन दलितों का एक बड़ा वर्ग अभी भी मायावती के साथ है। चुनाव में आजाद पार्टी के नेता भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर उर्फ रावण क्या असर डालेंगे? इस पर वह कहते हैं कि दलितों के बीच उनका असर है, लेकिन वोट फिलहाल मायावती के पक्ष में ही जा रहा है।

साफ लग रहा है की दलितों के बीच चंद्रशेखर को लेकर अपनत्व तो है, लेकिन यह खबर भी फैली हुई है कि मायावती का वोट काटने को कोशिश चंद्रशेखर कर रहे हैं। इसलिए BSP के समर्थक ‘बहन जी’ के नाम पर हाथी पर ही जा रहे हैं।

सहारनपुर में अब तक त्रिकोणीय मुकाबला

फिलहाल यहां पर चुनावी लड़ाई बहुत रोचक हो रही है। अब तक यह लड़ाई त्रिकोणीय है। यह कहना मुश्किल है कि इसमें कोई बदलाव होगा भी या नहीं। बहुजन समाज पार्टी मुस्लिम मतदाताओं को यह समझाने में लगी है कि दलित वोट माजिद अली को मिल रहा है और अगर मुस्लिम भी दे दें, तो BJP को हराया जा सकता है।

दूसरी तरफ कांग्रेस यह समझा रही है कि BSP लड़ाई में ही नहीं है, इसलिए अपना वोट बर्बाद न करें। आखिर में जाकर यह लड़ाई कांग्रेस के इमरान मसूद और भाजपा के राघव लखन पाल के बीच सिमट रही है, लेकिन बसपा इसे खारिज करती है।

राघव लखन पाल 2014 में सहारनपुर से ही सांसद थे, लेकिन पिछला चुनाव वह हार गए थे। अब वह किसी तरह इस लड़ाई को जीतना चाहते हैं और चुनावी लड़ाई भी बड़ी रोचक हो रही है।

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