घोसी लोकसभा क्षेत्र, कभी ये वामपंथियों का मजबूत गढ़ हुआ करता था। यहां कांग्रेस भी खूब फलीफूली। धीरे-धीरे कम्युनिस्टों का असर यहां कम हुआ। इस सीट पर उत्तर प्रदेश सरकार के तीन मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव में पर लगी हुई है। एक मंत्री हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बहुत नजदीकी माने जाने वाले एके शर्मा। दूसरे बड़बोले मंत्री हैं ओमप्रकाश राजभर और तीसरे हैं पिछले साल घोसी उप-चुनाव में हारने के बावजूद योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री बनने वाले दारा सिंह चौहान। तीनों मंत्री इसी इलाके के हैं। तीनों मंत्री रात दिन एक किए हुए हैं और किसी तरह इस सीट पर सपा और BSP को मात देना चाहते हैं।
साल 2014 में यहां भारतीय जनता पार्टी जीती और 2019 में सपा से गठबंधन के चलते इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी के अतुल राय ने कब्जा कर लिया, लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट को सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी यानी ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के लिए छोड़ दिया और ओमप्रकाश राजभर ने अपने बेटे अरविंद राजभर को मैदान में उतार दिया है। लेकिन अरविंद राजभर के लिए भी यहां का मैदान इतना आसान नहीं है, क्योंकि समाजवादी पार्टी ने यहां पर राजीव राय को टिकट देकर लड़ाई को रोचक बना दिया है।
14 बार भूमिहार, राजभर और चौहान जीते
वास्तव में बात राजीव राय की नहीं है, बल्कि यहां के समीकरणों की है। यहां हुए कुल 17 बार हुए चुनाव में 14 बार इस सीट पर राय यानी भूमिहार, राजभर और चौहान जीते। चौहान अति पिछड़े वर्ग में आते हैं। ये क्षत्रिय नहीं हैं, लेकिन अपने को पृथ्वीराज चौहान का वंशज मानते हैं।
इसीलिए जाति समीकरणों को देखते हुए समाजवादी पार्टी ने यहां पर यह दांव चला, लेकिन इस सीट पर अति पिछड़े भी बहुत हैं और उन्हीं के बल पर ओमप्रकाश राजभर चुनावी समीकरण बदलकर ये लड़ाई जीत जाना चाहते हैं।
जहां तक समाजवादी पार्टी की बात है, तो उसके लिए समीकरण पक्ष में भी हैं, लेकिन कुछ तथ्य उसको परेशान भी करते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में अतुल राय इसलिए जीते थे, क्योंकि वो BSP के टिकट पर मैदान में थे और इस सीट पर लगभग 3 लाख से ज्यादा दलितों ने बड़ी संख्या में उनका समर्थन किया था।
BSP ने की लड़ाई रोचक बनाने की कोशिश
स बार बहुजन समाज पार्टी ने यहां पर बालकृष्ण चौहान को टिकट देकर इस लड़ाई को रोचक बनाने का प्रयास किया है। बालकृष्ण चौहान कांग्रेस में थे और चुनाव लड़ने के लिए बसपा में आ गए। बहुजन समाज पार्टी को भरोसा है कि अति पिछड़े चौहान मतदाताओं में से ज्यादातर उनके पक्ष में आएंगे। इसके साथ ही दलित मायावती के नाम पर वोट दे देंगे और वह लड़ाई जीत जाएंगे।
मऊ के बोध राम कहते हैं कि कोई कुछ करे या कहे, लेकिन दलित मतदाताओं का ज्यादातर वोट मायावती के साथ जाएगा। दलित बाल कृष्ण चौहान को ही वोट देंगे, लेकिन बाल कृष्ण चौहान के रास्ते में एक बड़ी बाधा है। पिछले साल घोसी के उपचुनाव में दारा सिंह चौहान समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी से भारी अंतर से हार गए थे।
कैसे मतदाताओं को लुभा रहे दारा सिंह चौहान?
इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश सरकार में दारा सिंह चौहान को मंत्री बनाया और उन्हें विधान परिषद भेजा। अब दारा सिंह चौहान अपने लोगों से यानि अपने सजातीय मतदाताओं से ये अपील कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हारने के बावजूद उन्हें विधान परिषद भेजा और मंत्री बनाया।
ये नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी के अति पिछड़े वर्ग के साथ लगाव के कारण हुआ। इसलिए पिछड़ा समाज भी उनके साथ खड़ा हो जाए। उनकी ऐसी बातों का असर भी हो रहा है।
उधर सवर्ण मतदाता राजभर के बयानों से नाराज है। नाराजगी अभी भी है। इसलिए अरविंद राजभर को सवर्ण मतदाता का कितना वोट मिलेगा और कितना नहीं अभी कहना मुश्किल है। जहां तक समाजवादी पार्टी की बात है, राजीव राय को भूमिहारों के एक वर्ग का समर्थन मिल रहा है और मुस्लिम और यादव का वोट भी उनके पाले में जा रहा है।
कमल के लिए छड़ी के लिए वोट मांग रहे BJP कार्यकर्ता
घोसी लोकसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता अब प्रचार में लग गए हैं, लेकिन यहां पर वो कमल के लिए नहीं बल्कि छड़ी चुनाव चिन्ह के लिए वोट मांग रहे हैं। छड़ी चुनाव चिन्ह ओम प्रकाश राजभर की पार्टी का है। राजीव राय किसी तरह सवर्ण समाज के वोटों को अपनी ओर खींचने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन घोसी के ही रविंद्र तिवारी कहते हैं कि ओमप्रकाश राजभर से नाराजगी है, लेकिन समाजवादी पार्टी से कोई प्रेम भी नहीं है।
चुनाव आते-आते मतदाता योगी और मोदी के नाम पर एकजुट हो सकता है। इसलिए फिलहाल अरविंद राजभर बहुत बेहतर लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन चुनौती बड़ी है। हालांकि, संतराम यादव कहते हैं कि अभी तक राजीव राय सभी से आगे चल रहे हैं। वो नहीं मानते कि बहुजन समाज पार्टी लड़ाई में है और दावा करते हैं कि बसपा का वोट सपा के पक्ष में जाएगा।
जबकि यहां के दलित पूरी तरह बसपा के साथ खड़े दिखाई देते हैं। दलित मतदाताओं से बात करने पर ये साफ हो जाता है कि वे बसपा को ही वोट देंगे। मऊ के दीपू कहते हैं कि विपक्ष बहन मायावती की पार्टी और उसके मतदाताओं के बारे में भ्रम फैला रहा है।
सपा कैसे पूरी करेगी इस कमी को?
इसीलिए सवाल यह है कि बहुजन समाज पार्टी का जो वोट 2019 में बसपा प्रत्याशी को मिला था, वो इस बार सपा को नहीं मिल रहा है, इसलिए उसकी कमी कैसे पूरी होगी? 2019 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के अतुल राय ने भारतीय जनता पार्टी के हरि नारायण राजभर को लगभग एक लाख बाइस हजार वोटों से हरा दिया था। जबकि 2014 में हरि नारायण राजभर चुनाव जीते थे।
मऊ के ही किशन राय कहते हैं कि यहां की लड़ाई बहुत कठिन है। समाजवादी पार्टी यह मानकर चल रही है कि उसकी सीट मजबूत है और यह आकलन 2019 के चुनाव के आधार पर और पिछले साल हुए घोसी विधानसभा उपचुनाव के परिणाम के देखते हुए कर रही है। लेकिन अब स्थितियों में बदलाव है। इसलिए यहां पर यह लड़ाई इतनी आसान नहीं है। लड़ाई कठिन है और बहुजन समाज पार्टी ने इसी त्रिकोणीय बना दिया है।
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