इसराइली संसद क्नैसेट ने हाल ही में दो विधेयक पारित किए हैं, जिनके तहत इसराइली क्षेत्र में यूएन एजेंसी UNRWA की गतिविधियों पर प्रतिबन्ध लगाने की बात कही गई है. साथ ही, प्रशासनिक एजेंसियों पर भी उसके साथ किसी तरह के सम्पर्क की मनाही है.
इसराइल ने आधिकारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र महासभा अध्यक्ष को नए क़ानून की जानकारी देते हुए बताया था कि 90 दिनों के भीतर एजेंसी के साथ सहयोग समाप्त कर दिया जाएगा.
महासभा अध्यक्ष यैंग ने अनौपचारिक बैठक को सम्बोधित करते हुए ध्यान दिलाया कि यूएन महासभा ने 1949 में इसे स्थापित किया गया था. “महासभा अध्यक्ष होने के तौर पर मेरा यह दायित्व है” कि यूएन के सभी सदस्य देशों द्वारा अन्तरराष्ट्रीय क़ानून, यूएन चार्टर व यूएन प्रस्तावों का सम्मान किया जाए.
मगर, इसराइली क़ानूनों को अमल में लाए जाने की स्थिति में यूएन एजेंसी के शासनादेश (mandate) पर एक प्रकार से विराम लग जाएगा.
इसके मद्देनज़र, यूएन महासभा प्रमुख ने इसराइल सरकार से अपने तयशुदा दायित्वों का सम्मान किए जाने, और महासभा के शासनादेश के अनुरूप UNRWA को अपना कामकाज जारी रखने की अनुमति देने का आग्रह किया है.
“UNRWA को उसका कामकाज करने से रोकना विनाशकारी होगा. इसका अर्थ होगा कि फ़लस्तीनी शरणार्थियों को वो जीवनरक्षक सहायता नहीं मिल पाएगी, जिसकी उन्हें आवश्यकता है.”
“यह क़तई भी स्वीकार्य नहीं है. यूएन एजेंसी पर ऐसा कोई हमला, दो-राष्ट्र समाधान पर किया गया हमला है.”
संगठन के लिए स्याह घड़ी
फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूएन एजेंसी के महाआयुक्त (UNRWA) फ़िलिपे लज़ारिनी ने कहा कि वह महासभा हॉल में सदस्य देशों के प्रतिनिधियों को एक अंधकार भरे समय में सम्बोधित कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि इसराइली क्नैसेट में पारित हुए क़ानूनों से उनके संगठन के अस्तित्व पर एक बड़ा ख़तरा उत्पन्न हो गया है. यदि इन्हें अमल में लाया गया तो लाखों फ़लस्तीनियों के जीवन में उथलपुथल मच जाएगी.
फ़िलिपे लज़ारिनी के अनुसार, ग़ाज़ा पट्टी में युद्ध की शुरुआत से ही, इसराइल ने UNRWA को ख़त्म करना अपना एक युद्ध उद्देश्य बनाया है, और क्नैसेट में पारित हुए विधेयक इसी मक़सद को पूरा करते हैं.
“मगर, इसकी मंशा UNRWA और संयुक्त राष्ट्र को कमज़ोर बनाने से कहीं आगे तक जाती है.” इसके ज़रिये, फ़लस्तीनियों के स्व-निर्धारण के अधिकार और एक न्यायसंगत राजनैतिक समाधान की आकाँक्षा का अन्त करने की कोशिश की जा रही है.
भयावह हालात
महाआयुक्त लज़ारिनी ने कहा कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह पहली बार जब किसी नागरिक आबादी पर इतनी भीषण बमबारी की गई है. साथ ही, मानवीय सहायता पर सख़्त पाबन्दी है, जिससे ग़ाज़ा में नारकीय हालात व्याप्त हैं.
अब तक 43 हज़ार से अधिक फ़लस्तीनी मारे गए हैं, जिनमें से अधिकाँश महिलाँए व बच्चे हैं, मगर हज़ारों के अभी मलबे में दबे होने की आशंका है.
“फ़लस्तीन की क़रीब पूरी आबादी विस्थापित हो चुकी है.” वहीं, इसराइल से ग़ाज़ा ले जाए गए बन्धकों को लम्बी अवधि से, ख़ौफ़नाक ढंग से रखा गया है.
UNRWA प्रमुख के अनुसार, उनके संगठन के परिसरों को ध्वस्त या क्षतिग्रस्त किया गया है और अब तक 239 कर्मचारी अपनी जान गँवा चुके हैं.
तीन अहम माँग
उन्होंने दोहराया कि फ़लस्तीनियों के लिए इस स्याह घड़ी में, इसराइली संसद के क़दम से UNRWA पर संकट है, जोकि आम नागरिकों को सहारा दे रही है.
इस पृष्ठभूमि में, फ़िलिपे लज़ारिनी ने यूएन महासभा में सदस्य देशों के समक्ष अपनी तीन माँगें पेश की हैं.
पहला, UNRWA के विरुद्ध क़ानून को लागू होने से रोकने के लिए क़दम उठाए जाने होंगे.
दूसरा, किसी भी प्रकार के राजनैतिक बदलाव की दिशा में आगे बढ़ने के तहत, यह सुनिश्चित करना होगा कि UNRWA की भूमिका स्पष्ट की जाए
तीसरा, सदस्य देशों को UNRWA के लिए वित्तीय सहायता बनाए रखनी होगी और यह सोचकर बन्द करने से बचना होगा कि इसराइली पाबन्दी लागू होने के बाद उनका संगठन अपने कामकाज में सक्षम नहीं होगा.