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UNHCR: भारत के विभाजन में निहित मानवीय विरासत का जश्न

UNHCR: भारत के विभाजन में निहित मानवीय विरासत का जश्न

1947 में भारत का विभाजन, आधुनिक इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण और दुखद घटनाओं में से एक था. यह घटना इतिहास में सबसे बड़े सामूहिक विस्थापनों में से एक का कारण बनी, जिसमें लाखों लोगों को हिंसक संघर्षों और साम्प्रदायिक दंगों के मद्देनज़र अपने घर, सामान और आजीविका छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.

अमृतसर और दिल्ली में स्थित विभाजन संग्रहालय, 1947 की उन्हीं दर्दनाक घटनाओं की याद दिलाते हैं जब देश के विभाजन के साथ ही लाखों लोग रातों-रात शरणार्थी बन गए थे. संग्रहालय का मुख्य सन्देश यह है कि ‘हमें अतीत से सीखना चाहिए, ताकि ऐसा दोबारा न हो.’ दोनों संग्रहालयों में, आख़िरी गैलरी ‘द गैलरी ऑफ़ होप’ बेहतर भविष्य के लिए समर्पित है, जो सभी समुदायों के, शान्ति से एक साथ रहने की प्रेरणा देती है.

सहनसक्षमता के प्रतीक शरणार्थी

मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) की 75वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम की थीम थी – “भारत की मानवीय विरासत: सहनसक्षमता और आश्रय.” इसमें अपने घरों से भागने के लिए मजबूर लोगों के नुक़सान, सहनसक्षमता और उम्मीदों की कहनियाँ पेश की गईं.

कार्यक्रम में शामिल संयुक्त राष्ट्र के रैज़िडेंट कोऑर्डिनेटर शॉम्बी शार्प ने कहा, “मानवाधिकार, नस्ल, लिंग, राष्ट्रीयता, जातीयता, भाषा, धर्म या किसी अन्य स्थिति की परवाह किए बिना, सभी मनुष्यों के लिए निहित अधिकार हैं. जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति व आश्रय माँगने के अधिकार भी मूल मानवाधिकार हैं.”

उन्होंने, मानवाधिकारों के जुड़े सभी मुद्दों, ख़ासतौर पर सतत विकास सहयोग लक्ष्यों को हासिल करने की राह पर, भारत सरकार का समर्थन करने की, संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबद्धता की पुष्टि की. 

UNHCR के मिशन प्रमुख अरेटी सियानी ने, दुनिया भर में रिकॉर्ड विस्थापन संख्या पर प्रकाश डालते हुए कहा, “दुनिया में विस्थापित लोगों की संख्या अब 11 करोड़ 40 लाथ से अधिक है. कुल मिलाकर, 3 करोड़ 60 लाख से अधिक जन शरणार्थी हैं, और 6 करोड़ 20 लाख लोग देशों के भीतर ही रूप से विस्थापित हैं.

उन्होंने कहा, “भारत ने अपनी आज़ादी के बाद से, पड़ोसी देशों के बहुत से, विस्थापित लोगों को शरण दी है. मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा और विस्थापितों के लिए भारत की मानवीय विरासत की 75वीं वर्षगाँठ, हमें सभी मनुष्यों के अधिकारों को बनाए रखने की दिशा में काम करना जारी रखने की तात्कालिकता की याद दिलाती है.”

“साथ ही यह अवसर, समुदायों और संस्थानों के बीच संवाद सुनिश्चित करने की दिशा में मिलकर काम करने की हमारी उस साझा ज़िम्मेदारी की भी याद दिलाता है कि शरणार्थियों के साथ मानवता का व्यवहार किया जाए, उनके अधिकारों का सम्मान और सुरक्षा हो एवं उन्हें पर्याप्त सहायता व समाधान प्रदान किए जाएँ. ”

अतीत से सबक़

विभाजन संग्रहालय की अध्यक्ष लेडी किश्वर देसाई ने बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए अतीत से सीखने के महत्व पर बल दिया. वहीं, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय में कलानिधि प्रभाग के प्रोफ़ेसर, डीन व निदेशक रमेश गौड़ ने, स्मृतियों को संरक्षित और संग्रहित करने की आवश्यकता दोहराई, ताकि उनसे भविष्य में सबक़ हासिल किया जा सके. 

उन्होंने कहा, “साँस्कृतिक विरासत सभी की है. शरणार्थियों, विस्थापित लोगों और प्रवासियों का भी, समस्त साझी विरासत पर समान अधिकार है. हमें अपने इतिहास से बहुत कुछ सीखना है, यही कारण है कि दस्तावेज़ों, कहानियों, मौखिक इतिहास पर आधारित डिजिटल अभिलेखागार का निर्माण, हमारे अतीत को संरक्षित करने के साथ-साथ, हमारे वर्तमान तथा भविष्य को बेहतर बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.”

कार्यक्रम में एक पैनल चर्चा भी हुई, जिसमें संयुक्त राष्ट्र, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, संस्कृति मंत्रालय के गणमान्य व्यक्तियों ने शिरकत की. इसके बाद, भारत में विभाजन के दो पीड़ितों की कहानियाँ, उनकी ही ज़ुबानी पेश की गईं.

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