उद्योग/व्यापार

SEBI, NSE और NSDL को देना पड़ सकता है ₹1,400 करोड़ से अधिक का मुआवजा, कार्वी ब्रोकिंग मामले में नया आदेश

सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI), नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) और नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरीज (NSDL) को आने वाले दिनों में करीब 1,400 करोड़ रुपये मुआवजे के तौर पर देने पड़ सकते हैं। दरअसल सिक्योरिटीज अपीलेट ट्राइब्यूनल (SAT) ने बुधवार 20 दिसंबर को कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग मामले में एक आदेश जारी किया है। इस आदेश के मुताबिक, तीनों संस्थाओं को कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग के गिरवी रखे शेयरों को उन बैंकों या वित्तीय संस्थाओं को लौटाने का आदेश दिया गया है, जिनके पास इन्हें गिरवी रखा गया था। शेयर न लौटाने की स्थिति में शेयर की वैल्यू पर 10% प्रतिशत सालाना ब्याज के साथ मुआवजा देने को कहा गया है।

एक्सिस बैंक, ICICI बैंक, बजाज फाइनेंस, HDFC बैंक और इंडसइंड बैंक ने इस मामले में अपीलेट ट्राइब्यूनल का दरवाजा खटखटाया था। यह अपील मार्केट रेगुलेटर के उस निर्देश के बाद की गई थी, जिसमें उसने कार्वी के गिरवी रखी गए शेयरों को क्लाइंट निवेशकों को वापस ट्रांसफर करने के लिए कहा था। नियामक ने पाया था कि ब्रोकरेज ने ग्राहकों के पैसों का दुरुपयोग किया था और ग्राहकों की सिक्योरिटीज को गिरवी रखा था। इसलिए, रेगुलेटर ने डिपॉजिटरी से गिरवी रखी गई सिक्योरिटीज को ट्रासंफर नहीं करने को कहा था।

लेंडर्स ने कहा कि उन्होंने गिरवी रखे शेयरों के बदले कार्वी को एडवांस लोन दिए थे। जब कार्वी ने डिफॉल्ट किया, तब लेंडर्स उन गिरवी रखे शेयरों को भुनाना चाहते थे, लेकिन SEBI ने 22 सितंबर, 2019 को एक अंतरिम आदेश पारित करके उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। साथ ही उसने डिपॉजिटरी को सिक्योरिटीज का ट्रांसफर नहीं करने का निर्देश दिया।

यह भी पढ़ें- Stock Market Crash: शेयर बाजार में क्यों मचा हाहाकार? ये हैं 5 बड़े कारण

सेबी के 13 दिसंबर 2019 को जारी आदेश में लेंडर्स की बकाया रकम का जिक्र है। इसके मुताबिक, कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग पर बजाज फाइनेंस का 344.49 करोड़ रुपये, आईसीआईसीआई बैंक का 642.25 करोड़ रुपये, एचडीएफसी बैंक का 280.5 करोड़ रुपये और इंडसइंड बैंक का 159.16 करोड़ रुपये बकाया था।

वहीं SAT के आदेश में AXIS बैंक का लंबित बकाया 80.64 करोड़ रुपये दर्ज किया गया है। कुल बकाये की रकम 1,433 करोड़ रुपये से अधिक है। सेबी ने 13 दिसंबर 2019 के आदेश में माना था कि लेंडर्स की ओर से मांगी गई राहत “सही नहीं” है और इसका उपाय सक्षम क्षेत्राधिकार वाले सिविल न्यायालय के समक्ष है।

Source link

Most Popular

To Top