SEBI ने म्यूल अकाउंट्स (Mule Accounts) के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है। हाल में सेबी की तरफ से जारी किए गए आदेश से पता चलता है कि कुछ बैंकर्स और वेल्थ मैनेजर्स आईपीओ और डेट इश्यू के सब्सिक्रिप्शन के डेटा को बढ़ाने के लिए म्यूल अकाउंट्स का इस्तेमाल कर रहे थे। सेबी को संदेह है कि ऐसे म्यूल अकाउंट्स के जरिए लगाई गई बोली (Bid) फाइनल एलॉटमेंट तक वापस ले ली जाती है या इस तरह से अप्लिकेशन फॉर्म भरा जाता है कि वह खुद ही रिजेक्ट हो जाता है। मनीकंट्रोल आपको इस पूरे मामले को समझाने की कोशिश कर रहा है।
म्यूल अकाउंट का मतलब क्या है?
म्यूल अकाउंट का मतलब ऐसे अकाउंट से है, जिसे ओपन एक व्यक्ति करता है लेकिन ऑपरेट दूसरा व्यक्ति करता है। ऐसे अकाउंट्स का इस्तेमाल अक्सर मनी लाउंड्रिंग या टैक्स चोरी के लिए होता है। म्यूल अकाउंट एक बैंक अकाउंट या एक डीमैट अकाउंट हो सकता है, जिसमें शेयर रखे जाते हैं। रेगुलेटर्स के सख्त नियम है कि हर बैंक या डीमैंट अकाउट को ऑपरेट करने का अधिकार सिर्फ उस व्यक्ति के पास है, जिसके नाम पर उसे खोला गया है। इसका मतलब है कि अकाउंट ओपन करने के लिए जिस व्यक्ति का KYC हुआ है वही इसका इस्तेमाल कर सकता है।
स्टॉक मार्केट्स में म्यूल अकाउंट का इस्तेमाल किस तरह होता है?
हर आईपीओ में कुछ शेयरों के लिए कोटा होता है। कुछ शेयर रिटेल और अमीर निवेशक (HNI) के लिए रिजर्व होते हैं। पिछले कुछ सालों में आईपीओ की मांग काफी बढ़ी है। कई बार शेयरों का रिटेल इनवेस्टर्स का कोटा 10-20 गुना तक सब्सक्राइब होता है। आम तौर पर एक इनवेस्टर्स सिर्फ एक बोली लगा सकता है। लेकिन, ऐसा लगता है कि कुछ इनवेस्टर्स अपने दोस्तों या रिश्तेदारों के साथ मिलकर कई बोली लगा रहे हैं। बोली लगाने के लिए पैसा असली इनवेस्टर्स की तरफ से म्यूल अकाउंट को उपलब्ध कराया जाता है। अगर म्यूल अकाउंट को शेयर एलॉट होते हैं तो लिस्टिंग के दिन असली इनवेस्टर्स उन्हें बेच देता है। मुनाफा उसकी जेब में आ जाता है। म्यूल अकाउंट के मालिक को मुनाफे में 20-30 फीसदी हिस्सा मिल जाता है।
SEBI म्यूल अकाउंट के खिलाफ कार्रवाई क्यों कर रहा है?
सेबी को जांच में पता चला है कि कुछ इनवेस्टमेंट बैंकर आईपीओ और डेट इश्यू में सब्सक्रिप्शन के डेटा को बढ़ाने के लिए ऐसे म्यूल अकाउंट्स का इस्तेमाल कर रहे थे। आम तौर पर ऐसे इश्यू में निवेशकों के लिए बोली लगाने के लिए तीन दिन का समय होता है। अगर आईपीओ को इनवेस्टर्स का ज्यादा रिस्पॉन्स नहीं मिलता है तो बैंकर्स बोली लगाने के लिए म्यूल अकाउंट का इस्तेमाल करते हैं। इससे इश्यू के ज्यादा सब्सक्राइब होने को लेकर झूठी धारणा बन जाती है। यह देखकर कई भोलेभाले निवेशक इश्यू में पैसे लगा बैठते हैं। सब्सक्रिप्शन के अच्छे लेवल पर पहुंच जाने के बाद बैंकर्स म्यूल अकाउंट के जरिए लगाई गई बोली वापस ले लेते हैं। कुछ मामलों में सेबी ने पाया है कि इनवेस्टर्स जानबूझकर म्यूल अकाउंट के जरिए अप्लिकेशन भरने में गलती करते हैं। इससे एलॉटमेंट के समय अप्लिकेशन रिजेक्ट हो जाता है।
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